Friday, 22 June 2018

तुम जैसा देखते हो • वैसा बन जाते हो !!
राजा जनक ने एक धर्मसभा बुलाई थी। उसमें बड़े 2 पंडित आए, उसमें अष्टावक्र के पिता भी गए। अष्टावक्र आठ जगह से टेढ़ा था, इसलिए तो नाम पड़ा अष्टावक्र। दोपहर हो गई। अष्टावक्र की मां ने कहा कि तेरे पिता लौटे नहीं, भूख लगी होगी, तू जाकर उनको बुला ला।
अष्टावक्र गया। धर्मसभा चल रही थी, विवाद चल रहा था। अष्टावक्र अंदर गया। उसको आठ जगह से टेढ़ा देख कर सारे पंडितजन हंसने लगे। वह तो कार्टून मालूम हो रहा था। इतनी जगह से तिरछा आदमी देखा नहीं था। एक टांग इधर जा रही है, दूसरी टांग उधर जा रही है। एक हाथ इधर जा रहा है, दूसरा हाथ उधर जा रहा है। एक आंख इधर देख रही है, दूसरी आंख उधर देख रही है। उसको जिसने देखा वही हंसने लगा कि यह तो एक चमत्कार है। सब को हंसते देख यहां तक कि जनक को भी हंसी आ गई।
मगर एकदम से धक्का लगा, क्योंकि अष्टावक्र बीच दरबार में खड़ा होकर इतने जोर से खिलखिलाया कि जितने लोग हंस रहे थे सब एक सकते में आ गए और चुप हो गए।
जनक ने पूछा कि -
*मेरे भाई, और सब क्यों हंस रहे थे, वह तो मुझे मालूम है क्योंकि मैं खुद भी हंसा था मगर तुम क्यों हंसे?*
उसने कहा -
*मैं इसलिए हंसा कि ये चमार बैठ कर यहां क्या कर रहे हैं।*
अष्टावक्र ने चमार की परिभाषा की -
*क्योंकि इनको चमड़ी ही दिखाई पड़ती है। मेरा शरीर आठ जगह से टेढ़ा है, इनको शरीर ही दिखाई पड़ता है। ये सब चमार इकट्ठे कर लिए हैं और इनसे धर्मसभा हो रही है और ब्रह्मज्ञान की चर्चा हो रही है ? इनको अभी आत्मा दिखाई नहीं पड़ती। है कोई यहां जिसको मेरी आत्मा दिखाई पड़ती हो ? क्योंकि आत्मा तो एक भी जगह से टेढ़ी नहीं है।*
(वहां एक भी नहीं था। कहते हैं जनक ने उठ कर अष्टावक्र के पैर छुए और कहा कि आप मुझे उपदेश दें। इस तरह *अष्टावक्र गीता* का जन्म हुआ। और अष्टावक्र गीता भारत के ग्रंथों में अद्वितीय है। श्रीमद्भगवद्गीता से भी एक दर्जा ऊपर इसलिए मैने श्रीमद्भगवद्गीता को गीता और अष्टावक्र गीता को महागीता कहा है। उसका एक 2 वचन हीरों से तौला जाए यां हजारों हीरों से भी तौला जाए तो भी पलड़ा उस वचन का ही भारी रहेगा, हीरों का नहीं।
*तो तुम समझ लेना, जब तक तुम्हें शरीर ही दिखाई पड़ता है, अपना और दूसरों का, तब तक तुम चमार ही हो। मेरे हिसाब से सभी शूद्र पैदा होते हैं। कभी 2 कोई ब्राह्मण हो पाता है। कोई बुद्ध, कोई महावीर, कोई कृष्ण, कोई रैदास, कोई फरीद, कोई नानक। कभी 2 कोई ब्राह्मण हो पाता है, नहीं तो लोग शूद्र ही पैदा होते हैं और शूद्र ही मर जाते हैं। यह सूत्र तुम्हारे संबंध में भी है। तुम्हारे ही संबंध में है।।* ओशो

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