महाराणा प्रताप की कुलदेवी सुंधा माता
भारतीय इतिहास में वीरता के लिए प्रसिद्ध अमर नायक थे 'महाराणा प्रताप'। राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। वह सिसोदिया राजवंश के महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जीवत कंवर के पुत्र थे।
भारतीय इतिहास में वीरता के लिए प्रसिद्ध अमर नायक थे 'महाराणा प्रताप'। राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। वह सिसोदिया राजवंश के महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जीवत कंवर के पुत्र थे।
प्रताप का बचपन का नाम 'कीका' था। प्रताप बचपन से ही बहादुर थे। बड़ा होने पर वे एक महापराक्रमी पुरुष बनेंगे, यह सभी जानते थे। सर्वसाधारण शिक्षा लेने से खेलकूद एवं हथियार बनाने की कला सीखने में उनकी रुचि अधिक थी।
इतिहास में उल्लेख मिलता है कि वर्ष 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मेवाड़ शासक इतिहास पुरुष महाराणा प्रताप ने विपत्ति के दिनों में सुंधा माता की शरण ली थी। सुंधा माता महाराणा प्रताप की कुलदेवी थीं। सुंधा माता मंदिर जालौर जिला मुख्यालय से करीब 105 किलोमीटर एवं भीनमाल उपखंड से 35 किलोमीटर दूर रानीवाड़ा तहसील के दांतलावास गांव के पास यह ऐतिहासिक एवं प्राचीन तीर्थस्थल है।
अरावली पर्वतमाला के इस पहाड़ का नाम सुंधा होने के कारण इस देवी को सुंधा माता के नाम से भी जाना जाता है। मां की प्रतिमा बिना धड़ के होने कारण इसे अधदेश्वरी भी कहा जाता है।
सुंधा माता मंदिर राजस्थान का वही स्थान है जहां देवी-देवताओं की खंडित मूर्ति को इस स्थान पर रख जाते हैं। सुंधा पर्वत का पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से भी कम महत्व नहीं है। त्रिपुर राक्षस का वध करने के लिए आदि देव की तपोभूमि यहीं मानी जाती है।
इतिहास में उल्लेख मिलता है कि वर्ष 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मेवाड़ शासक इतिहास पुरुष महाराणा प्रताप ने विपत्ति के दिनों में सुंधा माता की शरण ली थी। सुंधा माता महाराणा प्रताप की कुलदेवी थीं। सुंधा माता मंदिर जालौर जिला मुख्यालय से करीब 105 किलोमीटर एवं भीनमाल उपखंड से 35 किलोमीटर दूर रानीवाड़ा तहसील के दांतलावास गांव के पास यह ऐतिहासिक एवं प्राचीन तीर्थस्थल है।
अरावली पर्वतमाला के इस पहाड़ का नाम सुंधा होने के कारण इस देवी को सुंधा माता के नाम से भी जाना जाता है। मां की प्रतिमा बिना धड़ के होने कारण इसे अधदेश्वरी भी कहा जाता है।
सुंधा माता मंदिर राजस्थान का वही स्थान है जहां देवी-देवताओं की खंडित मूर्ति को इस स्थान पर रख जाते हैं। सुंधा पर्वत का पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से भी कम महत्व नहीं है। त्रिपुर राक्षस का वध करने के लिए आदि देव की तपोभूमि यहीं मानी जाती है।
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