पांडव कालीन प्रतिमा :
यहां है देश का इकलौता मंदिर, जहां पत्नी के साथ हैं शनि देव
बैगा आदिवासी इस मंदिर को ओगन पाट के नाम से जानते हैं।
छत्तीसगढ़ का राजधानी से 117 किमी दूर कवर्धा में शनिदेव का एक ऐसा देवालय भी है, जहां वे अपनी पत्नी देवी स्वामिनी के साथ पूजे जाते हैं। इतना ही नहीं जहां देश के प्रमुख शनि मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश को लेकर विवाद रहे हैं, वहीं देश में शनिदेव की एकमात्र इस सपत्नीक प्रतिमा की पूजा से महिलाओं को भी कोई रोक-टोक नहीं है।
- कवर्धा जिला मुख्यालय से भोरमदेव मार्ग पर 15 किलोमीटर दूर ग्राम छपरी, फिर 500 मीटर आगे चलने पर प्राचीन मड़वा महल है।
- यहां से जंगलों के बीच से होता हुआ 4 किमी का टेढ़ा-मेढ़ा पथरीला रास्ता और संकरी नदी के उतार-चढ़ाव हिस्से को पार करने के बाद आता है ग्राम करियाआमा।
- इस गांव की प्रसिद्धि यही है कि यहां देश का एकमात्र ऐसा शनि देवालय है, जहां पत्नी के साथ उनकी पूजा होती है। शनिदेव की प्रतिमा पांडव कालीन बताई जाती है।
- ज्येष्ठ माह की अमावस्या को यानी इस बार 4 जून को भगवान शनिदेव की जयंती मनाई जाएगी। इसे लेकर करियाआमा में भी विशेष तैयारी की गई है।
हटी धूल तो सामने आई अनूठी प्रतिमा
- पुरोहित श्री शर्मा के मुताबिक वे काफी लंबे समय से भगवान शनिदेव की पूजा करने के लिए करियाआमा जाते रहे हैं।
- लगातार तेल डालने की वजह से प्रतिमा पर धूल-मिट्टी की काफी मोटी परत जम चुकी थी।
- एक दिन इस प्रतिमा को साफ किया गया, तो वहीं शनिदेव के साथ उनकी पत्नी देवी स्वामिनी की भी प्रतिमा मिली।
बिना तेल चढ़ाए नहीं बढ़ती थी बैलगाड़ी
- पुराने समय में इलाके में बसे बैगा आदिवासी इस मंदिर को ओगन पाट के नाम से जानते थे। उस समय मंदिर के चारों ओर दीवार नहीं बनी थी।
- छत्तीसगढ़ी में ओगन का मतलब तेल से भरे बांस के टुकड़े से है। इसका उपयोग बैलगाड़ी के पहियों में लगातार तेल डालने के लिए किया जाता था।
- मान्यता अनुसार शनिदेवालय के समीप से गुजरते ही बैलगाड़ी रुक जाती थी। उस दौरान बैगा बांस के टुकड़े में भरे तेल को शनिदेव की प्रतिमा में चढ़ाते थे। तब बैलगाड़ी आगे बढ़ती थी।
पति-पत्नी मिलकर करते हैं यहां पूजा
- इस देवालय को देश का एकमात्र सपत्नीक शनिदेवालय का दर्जा मिला है। बाकी स्थानों पर शनिदेव की एकल प्रतिमा स्थापित है।
- इस शनिदेवालय की ख्याति इसलिए भी है, कि यहां पति-पत्नी दोनों एक साथ शनिदेव की पूजा कर सकते हैं। जबकि भारत के प्राचीन शनि मंदिरों में से एक शिंगणापुर (महाराष्ट्र) में महिलाओं के प्रवेश पर काफी विरोध है।
- मैकल पर्वत से घिरे, जंगल के बीच और संकरी नदी के किनारे स्थापित हाेने के कारण इस शनि मंदिर का अपना टूरिज्म के एंगल से अपनी अहमियत है।
पांडवों के वनवास काल के दौरान हुई थी स्थापना
- प्राचीन बूढ़ा महादेव मंदिर के पुरोहित पंडित अर्जुन शर्मा के मुताबिक ग्राम करियाआमा में स्थापित शनिदेवालय पूर्वकालीन है। इसकी स्थापना पांडवों ने की थी।
- ऐसा माना जाता है कि वनवास काल के दौरान पांडवों ने कुछ समय भाेरमदेव के आसपास जंगल में भी बिताया था।
- उस समय भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर उन्होंने ग्राम करियाआमा में भगवान शनिदेव की प्रतिमा की स्थापना की थी।
दूर-दूर से आते हैं लोग
मान्यता अनुसार मनोकामना पूर्ति के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु ग्राम करियाआमा स्थित शनिदेवालय पहुंचते हैं। यहां हर साल जयंती पर भगवान शनिदेव का अभिषेक कर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा के बाद आस-पास के गांव के लोगों को खाना खिलाया जाता है। मंदिर समिति देवालय को विकसित करने का प्रयास कर रही है।
कर्णकांत श्रीवास्तव Jun 04, 2016 bhaskar news के अनुसार << सूर्य की किरण >>
यहां है देश का इकलौता मंदिर, जहां पत्नी के साथ हैं शनि देव
बैगा आदिवासी इस मंदिर को ओगन पाट के नाम से जानते हैं।
छत्तीसगढ़ का राजधानी से 117 किमी दूर कवर्धा में शनिदेव का एक ऐसा देवालय भी है, जहां वे अपनी पत्नी देवी स्वामिनी के साथ पूजे जाते हैं। इतना ही नहीं जहां देश के प्रमुख शनि मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश को लेकर विवाद रहे हैं, वहीं देश में शनिदेव की एकमात्र इस सपत्नीक प्रतिमा की पूजा से महिलाओं को भी कोई रोक-टोक नहीं है।
- कवर्धा जिला मुख्यालय से भोरमदेव मार्ग पर 15 किलोमीटर दूर ग्राम छपरी, फिर 500 मीटर आगे चलने पर प्राचीन मड़वा महल है।
- यहां से जंगलों के बीच से होता हुआ 4 किमी का टेढ़ा-मेढ़ा पथरीला रास्ता और संकरी नदी के उतार-चढ़ाव हिस्से को पार करने के बाद आता है ग्राम करियाआमा।
- इस गांव की प्रसिद्धि यही है कि यहां देश का एकमात्र ऐसा शनि देवालय है, जहां पत्नी के साथ उनकी पूजा होती है। शनिदेव की प्रतिमा पांडव कालीन बताई जाती है।
- ज्येष्ठ माह की अमावस्या को यानी इस बार 4 जून को भगवान शनिदेव की जयंती मनाई जाएगी। इसे लेकर करियाआमा में भी विशेष तैयारी की गई है।
हटी धूल तो सामने आई अनूठी प्रतिमा
- पुरोहित श्री शर्मा के मुताबिक वे काफी लंबे समय से भगवान शनिदेव की पूजा करने के लिए करियाआमा जाते रहे हैं।
- लगातार तेल डालने की वजह से प्रतिमा पर धूल-मिट्टी की काफी मोटी परत जम चुकी थी।
- एक दिन इस प्रतिमा को साफ किया गया, तो वहीं शनिदेव के साथ उनकी पत्नी देवी स्वामिनी की भी प्रतिमा मिली।
बिना तेल चढ़ाए नहीं बढ़ती थी बैलगाड़ी
- पुराने समय में इलाके में बसे बैगा आदिवासी इस मंदिर को ओगन पाट के नाम से जानते थे। उस समय मंदिर के चारों ओर दीवार नहीं बनी थी।
- छत्तीसगढ़ी में ओगन का मतलब तेल से भरे बांस के टुकड़े से है। इसका उपयोग बैलगाड़ी के पहियों में लगातार तेल डालने के लिए किया जाता था।
- मान्यता अनुसार शनिदेवालय के समीप से गुजरते ही बैलगाड़ी रुक जाती थी। उस दौरान बैगा बांस के टुकड़े में भरे तेल को शनिदेव की प्रतिमा में चढ़ाते थे। तब बैलगाड़ी आगे बढ़ती थी।
पति-पत्नी मिलकर करते हैं यहां पूजा
- इस देवालय को देश का एकमात्र सपत्नीक शनिदेवालय का दर्जा मिला है। बाकी स्थानों पर शनिदेव की एकल प्रतिमा स्थापित है।
- इस शनिदेवालय की ख्याति इसलिए भी है, कि यहां पति-पत्नी दोनों एक साथ शनिदेव की पूजा कर सकते हैं। जबकि भारत के प्राचीन शनि मंदिरों में से एक शिंगणापुर (महाराष्ट्र) में महिलाओं के प्रवेश पर काफी विरोध है।
- मैकल पर्वत से घिरे, जंगल के बीच और संकरी नदी के किनारे स्थापित हाेने के कारण इस शनि मंदिर का अपना टूरिज्म के एंगल से अपनी अहमियत है।
पांडवों के वनवास काल के दौरान हुई थी स्थापना
- प्राचीन बूढ़ा महादेव मंदिर के पुरोहित पंडित अर्जुन शर्मा के मुताबिक ग्राम करियाआमा में स्थापित शनिदेवालय पूर्वकालीन है। इसकी स्थापना पांडवों ने की थी।
- ऐसा माना जाता है कि वनवास काल के दौरान पांडवों ने कुछ समय भाेरमदेव के आसपास जंगल में भी बिताया था।
- उस समय भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर उन्होंने ग्राम करियाआमा में भगवान शनिदेव की प्रतिमा की स्थापना की थी।
दूर-दूर से आते हैं लोग
मान्यता अनुसार मनोकामना पूर्ति के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु ग्राम करियाआमा स्थित शनिदेवालय पहुंचते हैं। यहां हर साल जयंती पर भगवान शनिदेव का अभिषेक कर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा के बाद आस-पास के गांव के लोगों को खाना खिलाया जाता है। मंदिर समिति देवालय को विकसित करने का प्रयास कर रही है।
कर्णकांत श्रीवास्तव Jun 04, 2016 bhaskar news के अनुसार << सूर्य की किरण >>
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