ऑपरेशन जिब्राल्टर ....
लाल बहादुर शास्त्री 9 जून, 1964 को भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने थे। उनके कार्यकाल की मुख्य घटना 1965 के युद्ध में पाकिस्तान की शर्मनाक हार थी। दरअसल 1962 में चीन के साथ युद्ध में भारत की हार के बाद पाकिस्तान ने सोचा कि अच्छा मौका है।
पाकिस्तान ने भारत को कम करके आंका था। उसका मानना था कि चीन से 1962 की जंग हारने के बाद भारत किसी लड़ाई के लिए तैयार नहीं होगा। पाकिस्तान की अयूब खान सरकार ने इस मौके का फायदा उठाने की सोची। भारत से कश्मीर छीनने के मकसद से उसने लड़ाई की तैयारी शुरू कर दी थी।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति अय्यूब खान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर छेड़कर और भारतीय सेना की कम्यूनिकेशन लाइन को ध्वसत करने के लिए 1965 के ग्रीष्म ऋतु में कश्मीर में अपने हजारों सैनिकों को भेजा। दूसरी ओर कश्मीरी मुस्लिमों को यह कहकर भड़काने की कोशिश की उनकी मातृभूमि पर भारतीय सेना ने कब्जा कर रखा है। लेकिन पाकिस्तान का यह मकसद पूरा नहीं हो सका।
क्योकि कश्मीरी किसानों और गुज्जर चरवाहों ने ही सबसे पहले दुश्मन फौज की घुसपैठ की खबर भारतीय सेना को दी। जब भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई की तो पाकिस्तानियों के हैरत का ठिकाना नहीं रहा और उनका ऑपरेशन जिब्राल्टर ताश के पत्तों की तरह बिखर गया। लड़ाई खत्म होने के बाद पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर बातचीत के लिए जब वह ताशकंद के लिए रवाना हो रहे थे तो एक पत्रकार ने उनसे पूछा, ‘सर, आपका कद बहुत ही छोटा है लेकिन राष्ट्रपति अय्यूब बहुत ही लम्बे हैं, आप उनका सामना कैसे करेंगे?
शास्त्रीजी ने तुरंत हिंदी में जवाब दिया, ‘वह सिर झुकाकर बात करेंगे और मैं सिर उठाकर बात करूंगा।’ सवाल पूछने वाला अवाक रह गया।
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