लेखक: Alka Dwivedi
पता नहीं कितने साल पहले एक उदारवादी हिन्दू को नापने का पैमाना इज़ाद किया गया था, लेकिन आज हमारे पास आप के उदारवादी होने के मापदंड बहुत स्पष्ट है। हम एक-एक करके देखेंगे, कि आप उदारवादिता में कहाँ ठहरते हैं?
#उदारवादी हिन्दू होने की पहली विशेषता-
आप के उदारवादी हिन्दू होने का सबसे पहला मापदंड यह है कि पूरे साल हिन्दू और हिंदुत्व को जम कर कोसिए और कभी कभी अंत में कह दीजिये, “मैं गर्व से कहता हूँ कि मैं हिन्दू हूँ!” अगर आप लगातार यह कर सकते है तो वाकई आप एक लिबरल हिन्दू का दर्ज़ा पाने के हक़दार हैं। हमारे मीडिया के भाई बंधुओ को तो इसमें गज़ब की निपुणता हासिल है। वह हर हिन्दू रीति रिवाज़ पर सवाल उठाते है, और अंत में एक लाइन, बिना नागा किये चिपका देते है, “मै एक प्राउड हिन्दू हूँ !” अब आप की मर्ज़ी की आप इस गर्व से भरी घोषणा का अचार कैसे डालें। हाँ, एक लिबरल हिन्दू आप तभी कहलाएंगे, जब आप हिंदुत्व को अपमानित करने का कोई भी मौका न चूकें, जैसे जंगल में एक सियार ‘हुआ… हुआ’ चिल्लाता है, और थोड़ी देर में बाकी सभी सियार भी सुर से सुर मिलाने लगते है, आप में यह क्षमता भी होनी चाहिए। और सबसे बड़ी बात है, “टाइमिंग”, इसका ध्यान रखना होगा।
#उदारवादी हिन्दू होने की दूसरी विशेषता-
अब एक उदारवादी हिन्दू होने के दूसरी क्षमता की जाँच करते है, कि आप की क्रिएटिविटी यानि रचनात्मक दक्षता और कल्पनाशक्ति कितनी है। इस बार होली में सभी दकियानूसी हिन्दू, ‘पानी बचाऒ’, ‘गुलाल से ही होली मना लो’, ‘गुझिया खा कर मना लो’ पर ही अटके रह गए। और इन्ही के इर्द गिर्द अपना कैंपेन बनाते रह गए। लिबरल हिन्दुओं की कल्पना की उड़ान का क्या कहना। इन्होने ‘सीमेन भरे गुब्बरे’ की थ्योरी चला दी और दकियानूसी लोग ‘पानी बचाने का ही मजाक़ उड़ाते रह गए’। अगर आप ‘सीमेन भरे गुब्बारे की’ एक-एक क्रिया ध्यान से सोचे, तो बताइये, आप को लिबरल हिन्दुओं की कल्पनाशक्ति की दाद देनी पड़ेगी या नहीं? ईमानदारी से बताइयेगा। क्या एक दकियानूसी हिन्दू कल्पना की इतनी ऊँची उड़ान भर सकता है?
वह तो बिचारा इसी पर अटक कर रह जायेगा, माँ ने पढ़ लिया तो? बहन ने देख लिया तो? पिट जाऊंगा। लेकिन लिबरल हिन्दू सभी रिश्तों से ऊपर उठे व्यक्ति होते है। वह रिश्तो के खोखले बंधन को नहीं मानते। वह तो यह ‘सीमेन भरे गुब्बारे की थ्योरी’ अपने की परिवार के सदस्य से फ्लोट करवा सकते है। वह ‘लार्जर गूड’ का सोचते है। अगर आप में यह क्षमता कूट-कूट कर भरी है, तो आप उदारवादी ज़मात के सदस्य हो सकते हैं।
उदारवादी हिन्दू होने की एक मूलभूत आवश्यकता है, ‘आत्म सम्मान’, ‘सही गलत’, ‘सच क्या है’। इन सभी छोटी मोटी बातों से किनारा कर लीजिये। उदाहरण के लिए, ‘सीमेन भरे गुब्बारे की थ्योरी‘ देखिये। जांच होने पर यह झूठी पाई गई। कोई शर्मसार हुआ? किसी को आत्मग्लानि हुई? किसी ने माफ़ी मांगी? आप की चमड़ी इतनी मोटी होनी चाहिए की शर्म भी शर्मसार हो जाये। अब ‘लार्जर गुड’ की लिए इतना तो करना ही पड़ेगा।
#उदारवादी हिन्दू होने की तीसरी विशेषता-
लिबरल (उदारवादी) हिन्दू होने की तीसरी विशेषता है, एक बहुत की कुलीन वर्ग है, (जिसको लिबरल भी ब्रह्मास्त्र की तरह उपयोग करते है) रैशनलिस्ट का। आप को इस वर्ग का समर्थक होना चाहिए। ये इतने ज्यादे लिबरल होते है, कि रोज़-रोज़ वाले लिबरल भी इनके आगे पानी भरते है। वह बस जब कोई भी हथियार काम न करे, तब इनकी शरण में जाते है। अगर आप को इनका स्तर जानना हो तो आप ये आर्टिकल पढ़ सकते है। मुझमें लिखने की योग्यता नहीं है। ”URINATE ON HINDU IDOLS ?” लिबरल्स के लिए ये रैशनलिस्ट किसी संत सरीखे होते है। उनके चरणों में यह ज्ञान प्राप्त करने जाते है। अगर आप इस स्तर तक पहुंच सकते है तो यक़ीनन ‘लिबरल हिँदु’ का ख़िताब आप का है।
अगर आप उदारवादी हिन्दू वर्ग की सदस्यता चाहते है तो, हर आने वाले तीज त्यौहार पर नज़र जमा कर रखिये और उसका मनोरंजक हिस्सा यानि ‘फन पार्ट’ पूरी तरह तहस नहस कर दीजिये। सिर्फ उसके आध्यात्मिक पहलू पर जोर डालिये, ताकि बच्चे उस त्यौहार से सबसे पहले किनारा कर लें और वो हाशिये पर आ जाएँ। उत्साह पूरी तरह से ख़तम हो जाये। जैसे दीपावली पूजा करके और दिए जला कर मना लीजिये। वैसे दिए जलाने वाला पार्ट भी कट हो जाये तो और अच्छा है। दिए भी मत जलाइए, प्रदूषण होता है। दूसरों को भी प्रेरित करिये कि वह भी न जलाये। अगली दिवाली पर मन का दिया जलाइए और बच्चों से भी वही जलवाइये। लेकिन शिवरात्रि आये, तो शिवलिंग पे आप का ज्ञान, सांसारिक होना चाहिये। अपना पूरा विज्ञान उड़ेल दे शिवलिंग पर। तब अध्यात्म भूल जाएं। प्रतीकात्मकता को तिलंजलि दे दे। तो समय देख कर, चोला बदलतें रहें, अगर आप उदारवादी हिन्दू कहलाना चाहते है तो।
#उदारवादी हिन्दू होने की चौथी विशेषता-
एक आखिरी लक्षण बताना चाहती हूँ । अगर आप उदारवादी और प्राउड हिन्दू बनना चाहते है तो, ‘अल्टरनेट साहित्य‘ लिखिए। ‘अल्टरनेट साहित्य‘ का एक ही नियम है, कि “कोई नियम नहीं है” जो मर्ज़ी आये लिखिए। हज़ारो साल पहले लिखी गयी रामायण और महाभारत को ‘लॉस वेगास’ के पैमाने पर तोलिये और कहिये कि यह दकियानूसी है, हाँ अन्य धर्म ग्रंथो में बिना ‘संदर्भ‘ यानि ‘कॉन्टेक्स्ट‘ के कभी भी बात मत करिये। लेकिन हिन्दू धर्म ग्रंथो के लिए आज कैलिफोर्निया में जो नया क़ानून बना है उससे तुलना कीजिये और अपने आराध्य राम और कृष्ण को लानत भेजिए। दुर्गा और काली जी को कुछ भी कहिये कोई रोक टोक नहीं है। सब “फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन” के अंतर्गत जायज़ ठहरा दिया जायेगा। बस लिबरल हिन्दू कहलाने के यही छोटे मोटे पैमाने है, जिन पर आप को खरा उतरना होगा।
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