आज़ाद हिन्द फौज के स्थापना की घोषणा हो चुकी थी .. सैनिकों की नियुक्ति चालू थी .. सेना के कपडे, भोजन, हथियार, दवा आदि के लिए धन की सख्त जरूरत थी .. कुछ धन जापानियों ने दिया लेकिन वो जरूरत के जितना नहीं था ... नेताजी ने आह्वान किया ...
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लोग नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सिक्को और गहनों में तौल रहे थे ...
एक महिला आई जिसने फोटो फ्रेम तोड़ा, फ्रेम सोने का था और अंदर मृत पुत्र का फोटो था ... फ्रेम तराजू पर रख दिया ..
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लोग नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सिक्को और गहनों में तौल रहे थे ...
एक महिला आई जिसने फोटो फ्रेम तोड़ा, फ्रेम सोने का था और अंदर मृत पुत्र का फोटो था ... फ्रेम तराजू पर रख दिया ..
एक ग्वाला आया और उसने सारी गाय आज़ाद हिन्द फौज को दे दिया िससे सैनिकों को दूध मिल सके ..
कुछ जवान आये जिन्होंने पुछा वर्दी कहाँ है और बन्दूक कहाँ है ...
कुछ बुजुर्ग आए और अपने इकलोते पुत्र को नेताजी के छाया में रख दिया ..
बुजुर्ग घायल सैनिकों की सेवा और कुली के काम करने को प्रवेश ले लिए ..
कुछ युवतियाँ आईं और उन्होंने रानी झाँसी रेजिमेंट में प्रवेश लिया ..
कुछ 45 पार महिलाऐं आई और रानी झाँसी रेजिमेंट में सीधे प्रवेश नहीं पाने के जगह पर रसोइया और नर्स बन गईं ...
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आखिर कौन थे ये लोग ... यही थे आम लोग .. मलेशिया, सिंगापुर, बर्मा, फिजी, थाईलैंड और अन्य दक्षिणी एशिया में रहने वाले भारतीय थे ... जिन्होंने भारत के बारे में अपने उन बुजुर्गों से सुना था जिनको अँगरेज़ गुलाम बनाकर लाए थे ... जो कुली, मजदूर, जमादार आदि के रूप में काम करते थे .. जो वर्षों से अपने देश नहीं जा सके थे .. लेकिन अपने बच्चों - पीढ़ियों के दिल में भारत बसा दिया था उन्होंने अपने गाँव, कसबे शहर की कहानियाँ बताकर ....आज उन कहानियों ने चमत्कार कर दिया था .. वो कहानियाँ नहीं थी - देश की माटी का बुलावा था जो सीने में छिपा था .. आज नेताजी के आह्वान ने उस जवालामुखी को फोड़ दिया है .
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किसी की कोई जात नहीं थी .. बस सब भारतीय थे ... दासता का दंश झेलते हुए .. अपने देश से पानी के जहाज़ में ठूँस कर जबरदस्ती यहाँ लाए गए थे .. जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया था ... बस भारत और अपने माटी को जिन्दा रखा था दिल में ... भारत को आज़ादी दिलाने में हज़ारों उन भारतोयों का लहू शामिल है जो कभी लौट नहीं पाए .. वहीँ वीरगति को प्राप्त हो गए .. जिनके भारत में रहे वाले परिवारों को आज तक नहीं पता कि उनका एक लाल देश के लिए बलिदान हो गया था कब का .. जिनका नाम हमें आपको पता ही नहीं ... जिनको अन्तिम संस्कार भी नसीब नहीं हुआ ... जो न ही उन विदेश की धरती पर अपना घर या छाप बना पाए थे कि उनका कोई रिकॉर्ड रखता ...
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यहाँ तक का पोस्ट प्रोफेसर कपिल कुमार, निदेशक - सेण्टर फॉर फ्रीडम स्ट्रगल एंड डायस्पोरा स्टडीज, ईग्नू के वाल से ... अंग्रेजी पोस्ट का हिंदी अनुवाद है मेरे द्वारा ...
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ये पोस्ट समर्पित है उन अनाम आज़ादी पाने के दीवाने, बलिदानी और महान सैनिकों को ... उनके ऋणी हैं हम .... न उनका नाम पता है, न जात पता है ... तो हे आज़ाद भारत के लोगों एक हो जाओ ... आओ नेता जी के सपनो का भारत बनाए .... आओ उन अनाम बलिदानियों के लहू का ऋण चुकाएँ ...
कुछ जवान आये जिन्होंने पुछा वर्दी कहाँ है और बन्दूक कहाँ है ...
कुछ बुजुर्ग आए और अपने इकलोते पुत्र को नेताजी के छाया में रख दिया ..
बुजुर्ग घायल सैनिकों की सेवा और कुली के काम करने को प्रवेश ले लिए ..
कुछ युवतियाँ आईं और उन्होंने रानी झाँसी रेजिमेंट में प्रवेश लिया ..
कुछ 45 पार महिलाऐं आई और रानी झाँसी रेजिमेंट में सीधे प्रवेश नहीं पाने के जगह पर रसोइया और नर्स बन गईं ...
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आखिर कौन थे ये लोग ... यही थे आम लोग .. मलेशिया, सिंगापुर, बर्मा, फिजी, थाईलैंड और अन्य दक्षिणी एशिया में रहने वाले भारतीय थे ... जिन्होंने भारत के बारे में अपने उन बुजुर्गों से सुना था जिनको अँगरेज़ गुलाम बनाकर लाए थे ... जो कुली, मजदूर, जमादार आदि के रूप में काम करते थे .. जो वर्षों से अपने देश नहीं जा सके थे .. लेकिन अपने बच्चों - पीढ़ियों के दिल में भारत बसा दिया था उन्होंने अपने गाँव, कसबे शहर की कहानियाँ बताकर ....आज उन कहानियों ने चमत्कार कर दिया था .. वो कहानियाँ नहीं थी - देश की माटी का बुलावा था जो सीने में छिपा था .. आज नेताजी के आह्वान ने उस जवालामुखी को फोड़ दिया है .
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किसी की कोई जात नहीं थी .. बस सब भारतीय थे ... दासता का दंश झेलते हुए .. अपने देश से पानी के जहाज़ में ठूँस कर जबरदस्ती यहाँ लाए गए थे .. जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया था ... बस भारत और अपने माटी को जिन्दा रखा था दिल में ... भारत को आज़ादी दिलाने में हज़ारों उन भारतोयों का लहू शामिल है जो कभी लौट नहीं पाए .. वहीँ वीरगति को प्राप्त हो गए .. जिनके भारत में रहे वाले परिवारों को आज तक नहीं पता कि उनका एक लाल देश के लिए बलिदान हो गया था कब का .. जिनका नाम हमें आपको पता ही नहीं ... जिनको अन्तिम संस्कार भी नसीब नहीं हुआ ... जो न ही उन विदेश की धरती पर अपना घर या छाप बना पाए थे कि उनका कोई रिकॉर्ड रखता ...
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यहाँ तक का पोस्ट प्रोफेसर कपिल कुमार, निदेशक - सेण्टर फॉर फ्रीडम स्ट्रगल एंड डायस्पोरा स्टडीज, ईग्नू के वाल से ... अंग्रेजी पोस्ट का हिंदी अनुवाद है मेरे द्वारा ...
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ये पोस्ट समर्पित है उन अनाम आज़ादी पाने के दीवाने, बलिदानी और महान सैनिकों को ... उनके ऋणी हैं हम .... न उनका नाम पता है, न जात पता है ... तो हे आज़ाद भारत के लोगों एक हो जाओ ... आओ नेता जी के सपनो का भारत बनाए .... आओ उन अनाम बलिदानियों के लहू का ऋण चुकाएँ ...
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