केरल की नंबूदरीपाद से केंद्र की मोरारजी सरकार गिरानें में था वेटिकन और सीआईए का हाथ !
इस बार मोदी सरकार को गिराने चक्रव्यूह !
आज कांग्रेस उतनी शशक्त नहीं है वरना मोदी सरकार को वेटिकन और सीआईए के जरिये कब का गिरा चुकी होती। कांग्रेस के पक्ष में कभी चर्च तो कभी कठमुल्ले मोदी सरकार के खिलाफ फतवे जारी करते रहते हैं, एंटी इंडिया, मोदी हैटर पत्रकारों का समूह मोदी सरकार पर पहले से हमलावर है!
सीआईए और वेटिकन ने ऐसा पहली बार नहीं किया बल्कि देश की राजनीति को अस्थिर करने के लिए लिए यह गठजोड़ भारत में अपने मोहरे कांग्रेस का शुरु से उपयोग करता रहा है! इसके साक्ष्य के तौर पर केरल की नंबूदरीपाद सरकार और केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी की सरकार है। वैसे तो दोनों सरकारों के गिरने के कई कारण हैं लेकिन मुख्य षड्यंत्र वेटिकन और सीआईए ने कांग्रेस के कंधे पर बंदूक रखकर रचा था।
केरल में 1959 में नंबूदरीपाद सरकार को हटाने के लिए ही उसी सार लिबरेशन स्ट्रगल चलाया गया था। इस संघर्ष में लोनप्पन नंबदान और पादरी जोसेफ वडाक्कन ने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था। नंबदान ने अपनी आत्मकथा द ट्रेवलिंग बिलीवर तथा पादरी वडक्कन ने अपनी आत्मकथा एन्टे कुथिपम किथप्पम में उन कारकों को सूचीबद्ध किया है जिसकी वजह से लिबरेशन संघर्ष का शुभारंभ हुआ और सरकार को बेदखल करने का मार्ग प्रशस्त किया गया है।
केरल में 1959 में नंबूदरीपाद सरकार को हटाने के लिए ही उसी सार लिबरेशन स्ट्रगल चलाया गया था। इस संघर्ष में लोनप्पन नंबदान और पादरी जोसेफ वडाक्कन ने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था। नंबदान ने अपनी आत्मकथा द ट्रेवलिंग बिलीवर तथा पादरी वडक्कन ने अपनी आत्मकथा एन्टे कुथिपम किथप्पम में उन कारकों को सूचीबद्ध किया है जिसकी वजह से लिबरेशन संघर्ष का शुभारंभ हुआ और सरकार को बेदखल करने का मार्ग प्रशस्त किया गया है।
ये दोनों किताबें मातृभूमि बुक्स से प्रकाशित हुई थी। इस संघर्ष के लिए आर्थिक खर्च का बोझ भी वेटिकन ने ही उठाया था, ताकि सरकार बदलने के बाद उससे कहीं ज्यादा पैसा ऐंठा जा सके।भारतीय राजनीति में कांग्रेस के माध्यम से वेटिकन की भूमिका शुरू से ही अहम मानी जाती रही है।
मुख्यधारा का मीडिया हमेशा से ही कांग्रेस की करतूतों से आंखे चुराता आ रहा है। वैसे भी केरल में सत्ता किसी भी पार्टी के पास हो लेकिन चाबी हमेशा से ही वेटिकन के पास ही रही है। इसलिए भी मीडिया की नजर उस तरफ नहीं होती है। केरल से राज्यसभा की तीन सीटें खाली हैं क्योंकि तीनों मौजूदा सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो गया है।
उम्मीद थी कि कांग्रेस राज्यसभा के उप सभापति पी जे कुरियन का कार्यकाल फिर बढ़ा देगी क्योंकि उनका टर्म पूरा हो गया है। उन्हें ईसाई धर्म के प्रमुख गुटों में से एक मार्थोमा चर्च का समर्थन भी प्राप्त है, क्योंकि वे इसी समुदाय से आते हैं। लेकिन केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने केरल कांग्रेस (मणि गुट) को सीट देने का फैसला कर लिया। जबकि वे वर्तमान में कोट्टायम लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन कैथोलिक चर्च ने पार्टी अध्यक्ष के एम मणि के बेटे जोस के मणि को राज्यसभा भेजने का फरमान सुना दिया तो केपीसीसी को झुकना पड़ा।
इतिहास पर लिखी किताब के लिए पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित अमेरिकी लेखक जेराल्ड पॉस्नर ने अपनी किताब ‘गोड्स बैंकर्स‘ में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि दुनिया में कहीं भी वेटिकन के लिए किसी सरकार ने कार्यालय जारी रखने को स्वीकार नहीं किया। लेकिन उन्होंने भारत का उल्लेख नहीं किया है। इससे संकेत स्पष्ट हैं कि भारत ने पोप के कार्यालय को स्वीकार किया था। तभी तो भारत का प्रधानमंत्री कौन होना चाहिए यह तय करने में पोप और उनके कार्डिनल की हिस्सेदारी रही है? भारत में वेटिकन का प्रतिनिधित्व करने वाली टेरेसा नाम की एक कैथोलिक नन थी। जिसे इस देश में मदर टेरेसा के नाम से जाना जाता है।
उसका असली रंग 1979 में तब उजागर हो गया जब प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की अगुवाई में तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने एक निजी सदस्य को कनवर्जन को गैरकानूनी और अपराध घोषित करने संबंधी बिल पेश करने की अनुमति दी थी। यह बिल ओ पी त्यागी ने पेश किया था। इस बिल में कहा गया था कि देश में किसी भी नागरिक को अपने धर्म को बदलने के लिए मजबूर / दृढ़ता / नकदी या अन्य किसी प्रकार से प्रेरित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
उम्मीद थी कि कांग्रेस राज्यसभा के उप सभापति पी जे कुरियन का कार्यकाल फिर बढ़ा देगी क्योंकि उनका टर्म पूरा हो गया है। उन्हें ईसाई धर्म के प्रमुख गुटों में से एक मार्थोमा चर्च का समर्थन भी प्राप्त है, क्योंकि वे इसी समुदाय से आते हैं। लेकिन केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने केरल कांग्रेस (मणि गुट) को सीट देने का फैसला कर लिया। जबकि वे वर्तमान में कोट्टायम लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन कैथोलिक चर्च ने पार्टी अध्यक्ष के एम मणि के बेटे जोस के मणि को राज्यसभा भेजने का फरमान सुना दिया तो केपीसीसी को झुकना पड़ा।
इतिहास पर लिखी किताब के लिए पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित अमेरिकी लेखक जेराल्ड पॉस्नर ने अपनी किताब ‘गोड्स बैंकर्स‘ में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि दुनिया में कहीं भी वेटिकन के लिए किसी सरकार ने कार्यालय जारी रखने को स्वीकार नहीं किया। लेकिन उन्होंने भारत का उल्लेख नहीं किया है। इससे संकेत स्पष्ट हैं कि भारत ने पोप के कार्यालय को स्वीकार किया था। तभी तो भारत का प्रधानमंत्री कौन होना चाहिए यह तय करने में पोप और उनके कार्डिनल की हिस्सेदारी रही है? भारत में वेटिकन का प्रतिनिधित्व करने वाली टेरेसा नाम की एक कैथोलिक नन थी। जिसे इस देश में मदर टेरेसा के नाम से जाना जाता है।
उसका असली रंग 1979 में तब उजागर हो गया जब प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की अगुवाई में तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने एक निजी सदस्य को कनवर्जन को गैरकानूनी और अपराध घोषित करने संबंधी बिल पेश करने की अनुमति दी थी। यह बिल ओ पी त्यागी ने पेश किया था। इस बिल में कहा गया था कि देश में किसी भी नागरिक को अपने धर्म को बदलने के लिए मजबूर / दृढ़ता / नकदी या अन्य किसी प्रकार से प्रेरित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
कैथोलिक चर्च ही वह पहला संस्थान था जिसने इस बिल को चुनौती दी थी। मदर चेरेसा का मार्मिक चेहरे के पीछे छिपा धार्मिक कट्टरपन सामने आ गया। उसने इस बिल के विरोध में आंदोलन करने की धमकी देते हुए उस बिल को तत्काल वापस करने की मांग की।
इस कदम के बाद से ही मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सुचारू रूप से चल रही जनता पार्टी की सरकार हिचकोले खाने लगी। पूरे देश के ईसाई प्रतिष्ठानों ने बंद का आयोजन किया और विशेष प्रार्थना सभांए आयोजित की। प्रार्थना का तत्कला असर भी हुआ।
आरोप है कि वेटिकन और सीआईए के षड्यंत्र की वजह से ही जनता पार्टी की सरकार में आंतरिक लड़ाई शुरू हो गई, इस बिल के विरोध में सबसे पहले देश के मार्क्सवादियों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद ही देश में मीडिया, मार्क्सवादियों, मुसलमानों और मेथनान (चर्च) का एक ध्रुव बन गया। इसका इतना प्रभावी गठबंधन हो गया कि जनता पार्टी बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले जयप्रकाश नारायण भी दर्शक मात्र बने रहे । मोरारजी देसाई की सरकार को कनवर्जन विरोधी बिल के कारण ही वेटिकन के पोप के कोप का शिकार होना पड़ा।
वेटिकन कांग्रेस के शासन के अलावा किसी की सरकार में सहज नहीं रहता। उसके लिए कांग्रेस की सरकार ही हमेशा मुफीद साबित हुई है। तभी तो इस बार मोदी सरकार के कार्यकाल में वह बदहवास सा हो गया है। वेटिकन ने तो मोदी सरकार के खिलाफ अभियान चलाने की खुलेआम घोषणा तक कर दी है। इसलिए इस बार मोदी सरकार का सामना कांग्रेस या किसी विपक्षी पार्टियों से नहीं होने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधे वेटिकन से लड़ना है।
वेटिकन कांग्रेस के शासन के अलावा किसी की सरकार में सहज नहीं रहता। उसके लिए कांग्रेस की सरकार ही हमेशा मुफीद साबित हुई है। तभी तो इस बार मोदी सरकार के कार्यकाल में वह बदहवास सा हो गया है। वेटिकन ने तो मोदी सरकार के खिलाफ अभियान चलाने की खुलेआम घोषणा तक कर दी है। इसलिए इस बार मोदी सरकार का सामना कांग्रेस या किसी विपक्षी पार्टियों से नहीं होने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधे वेटिकन से लड़ना है।
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