Friday, 22 June 2018


मंत्र दो तरह के होते है। एक बीज मंत्र – जैसे – ‘ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं चामुण्डाय फट स्वाहा ।’ – इस प्रकार की मन्त्रों को बीज मंत्र कहा जाता है। ‘ॐ’ रूद्र बीज है, ‘ह्रीं’ मायाबीज है, ‘श्रीं’ श्री बीज है, ‘क्रीं’ कामबीज है, चामुण्डाय – देवता का नाम है, फट ‘स्फोट’ बीज है ।
इन बीजों का सम्बन्ध शरीर के ऊर्जाचक्र की भिन्न-भिन्न स्थिति और अंगों से सम्बंधित है । ‘ह्रीं’ कहने से ह्रदय केंद्र से पूरे शरीर में आवृति होती है। ‘श्रीं’ कहने से ह्रदय केंद्र में कम्पन होता है। इसी प्रकार ‘क्रीं’ ’ मूलाधार क्षेत्र को कम्पित करता है। इस कम्पनावृत्ति से ऊर्जा क्षेत्र प्रभावित होता है और उसकी शक्ति बढती है। यह ऊर्जात्मक शक्ति ही मन या शरीर में सगुण शक्ति को उत्पन्न करती है। बीज मंत्र इसी प्रकार आचार्यों एवं ऋषियों द्वारा निर्मित किये गये है। इसमें कम्पनावृत्ति का महत्त्व होता है। कम्पनावृत्ति का ज्ञान गुरु कराता है । यह नहीं होने पर जीवन भर मंत्र जप से भी कोई लाभ न होगा।
दूसरे प्रकार के मंत्र भावात्मक होते है। ये चौपाई, कवच, स्रोत आदि के रूप में होते है। शाबर मंत्र भी इसी श्रेणी के मंत्र है। इनकी शक्ति भाव में होती है। जिस प्रकार संगीत के धुन या गीत से भावात्मक प्रवाह उत्पन्न होते है, इनसे भी होते है। पर इसमें एक भारी गलती हो रही है। आज लोग संस्कृत नहीं जानते और बिना अर्थ समझे इन मन्त्रों का पाठ या जप करने लगते है। इसका कोई मतलब नहीं है। तोता भी ऐसे मंत्र जप सकता है। इसका कोई प्रभाव नहीं होता। प्रत्येक पंक्ति या पद का अर्थ समझ कर उस भाव में डूब कर मंत्र जपने से ही लाभ हो सकता है। बीज मन्त्रों का भी वास्तविक लाभ भाव रूप देवता में डूब कर ही प्राप्त किया जा सकता है।
अरून शुक्ला

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