यहां साक्षात विराजती है मां 'गंगा', महाराजा माधोसिंह ने बनावाया था मंदिर
गोविंद देवजी मंदिर के पीछे जयनिवास उद्यान में बना गंगामाता मंदिर की स्थापत्य, शिल्प, खूबसूरती और विशेषताएं ही दर्शनीय नहीं हैं, बल्कि खास है इस मंदिर के निर्माण के पीछे महाराजा माधोसिंह द्वितीय की गंगा माता के प्रति अगाध आस्था। महाराजा ने मंदिर में गंगा माता की प्रतिमा की स्थापना के समय साक्षात गंगा मैया के दर्शन करने के लिए 10 किलो 812 ग्राम के सोने के कलश में गंगाजल भर कर रखवाया था, जो आज भी मौजूद है और खास बात यह कि 103 साल बाद भी इसमें से गंगाजल की एक भी बूंद भी कम नहीं हुई।
गंगा के उपासक थे माधोसिंह
जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह गंगा के अनन्य भक्त थे। उनकी दिनचर्या में गंगाजल इस कदर रच बस गया था कि खाने—पीने और पूजा में तो वे गंगाजल का इस्तेमाल करते थे ही थे, यहां तक कि वे गंगाजल से ही स्नान करते थे। इसके लिए महाराजा के लिए हरिद्वार से नियमित रूप से गंगाजल लाया जाता था। सवाई माधोसिंह अपनी रानियों के साथ हर साल गर्मी में गंगा किनारे विश्राम करने के लिए शाही रेल से जाया करते थे।
1910 में जब जयपुर शहर प्लेग की चपेट में आ गया तब भी महाराजा माधोसिंह गंगा माता से प्रार्थना करने के लिए हरिद्वार गए थे। प्रिंस एडवर्ड जब ब्रिटेन की गद्दी पर बैठे तब महाराजा माधोसिंह को भी निमंत्रण दिया गया था। तब महाराजा ने साथ में गंगाजल ले जाने के लिए दस हजार से ज्यादा चांदी के सिक्कों को गलाकर 17 मण चांदी से दो विशाल कलात्मक कलशों का निर्माण कराया। इनमें गंगाजल भर कर इंग्लैण्ड ले गए थे। इतना ही नहीं यात्रा से पहले पूरे जहाज को भी गंगाजल से धोकर शुद्ध किया गया था। ये विशाल कलश आज भी सिटी पैलेस के सर्वतोभद्र में रखे हुए हैं। गंगा माता के लिए अनंत आस्था के चलते उन्होंने गोविन्ददेव जी के मंदिर के पीछे जयनिवास उद्यान में गंगा माता के मंदिर का निर्माण करवाया। संवत 1971 में गंगा दशहरा के दिन मंदिर का पहला पाटोत्सव मनाया गया। वर्ष 1914 में गोविन्ददेव जी मंदिर के पीछे जयनिवास उद्यान परिसर में गंगा माता का भव्य मंदिर बनवाया था। मंदिर में 11 किलो के स्वर्ण कलश में गंगाजल भरवाकर यहां रखवाया। यहां लगे शिलालेख के अनुसार उस समय इस मंदिर के निर्माण पर 24 हजार रुपए खर्च हुए थे। इसके बाद मंंदिर में और काम कराने में 11444 रुपए खर्च किए गए।
मूर्ति के लिए बनाया मंदिर
=================
महाराजा सवाई माधोसिंह की पटरानी जादूनजी के पास जनानी ड्योढी महल में गंगामाता की एक मूर्ति थी। पटरानी की सेविकाएं गंगा माता की सेवा पूजा किया करती थी। रानी की इच्छा थी कि इस मूर्ति की पूजा निरंतर होती रहे। इसी कारण इस मंदिर के निर्माण का विचार महाराजा माधोसिंह को आया। उन्होंने मकराना से संगमरमर और करौली से लाल पत्थर मंगाकर मंदिर का निर्माण कराया।
दुर्लभ चित्र और शिलालेख
================
मंदिर में इस दुर्लभ और बेशकीमती स्वर्ण कलश के अलावा राधा कृष्ण और हरिद्वार की हर की पौड़ी के दुर्लभ और सुंदर चित्र सजे हैं। यहां कवि पंडित रामप्रसाद द्वारा गंगा की महिमा के लिए रचा गया शिलालेख आज भी ज्यों का त्यों है। मंदिर के भित्तिचित्र, शिल्प और स्थापत्य देखने योग्य है।
(स्टोरी: देवेन्द्र सिंह)
Rajasthan Patrika News 2017-06-03 के अनुसार << सूर्य की किरण >>
गंगा के उपासक थे माधोसिंह
जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह गंगा के अनन्य भक्त थे। उनकी दिनचर्या में गंगाजल इस कदर रच बस गया था कि खाने—पीने और पूजा में तो वे गंगाजल का इस्तेमाल करते थे ही थे, यहां तक कि वे गंगाजल से ही स्नान करते थे। इसके लिए महाराजा के लिए हरिद्वार से नियमित रूप से गंगाजल लाया जाता था। सवाई माधोसिंह अपनी रानियों के साथ हर साल गर्मी में गंगा किनारे विश्राम करने के लिए शाही रेल से जाया करते थे।
1910 में जब जयपुर शहर प्लेग की चपेट में आ गया तब भी महाराजा माधोसिंह गंगा माता से प्रार्थना करने के लिए हरिद्वार गए थे। प्रिंस एडवर्ड जब ब्रिटेन की गद्दी पर बैठे तब महाराजा माधोसिंह को भी निमंत्रण दिया गया था। तब महाराजा ने साथ में गंगाजल ले जाने के लिए दस हजार से ज्यादा चांदी के सिक्कों को गलाकर 17 मण चांदी से दो विशाल कलात्मक कलशों का निर्माण कराया। इनमें गंगाजल भर कर इंग्लैण्ड ले गए थे। इतना ही नहीं यात्रा से पहले पूरे जहाज को भी गंगाजल से धोकर शुद्ध किया गया था। ये विशाल कलश आज भी सिटी पैलेस के सर्वतोभद्र में रखे हुए हैं। गंगा माता के लिए अनंत आस्था के चलते उन्होंने गोविन्ददेव जी के मंदिर के पीछे जयनिवास उद्यान में गंगा माता के मंदिर का निर्माण करवाया। संवत 1971 में गंगा दशहरा के दिन मंदिर का पहला पाटोत्सव मनाया गया। वर्ष 1914 में गोविन्ददेव जी मंदिर के पीछे जयनिवास उद्यान परिसर में गंगा माता का भव्य मंदिर बनवाया था। मंदिर में 11 किलो के स्वर्ण कलश में गंगाजल भरवाकर यहां रखवाया। यहां लगे शिलालेख के अनुसार उस समय इस मंदिर के निर्माण पर 24 हजार रुपए खर्च हुए थे। इसके बाद मंंदिर में और काम कराने में 11444 रुपए खर्च किए गए।
मूर्ति के लिए बनाया मंदिर
=================
महाराजा सवाई माधोसिंह की पटरानी जादूनजी के पास जनानी ड्योढी महल में गंगामाता की एक मूर्ति थी। पटरानी की सेविकाएं गंगा माता की सेवा पूजा किया करती थी। रानी की इच्छा थी कि इस मूर्ति की पूजा निरंतर होती रहे। इसी कारण इस मंदिर के निर्माण का विचार महाराजा माधोसिंह को आया। उन्होंने मकराना से संगमरमर और करौली से लाल पत्थर मंगाकर मंदिर का निर्माण कराया।
दुर्लभ चित्र और शिलालेख
================
मंदिर में इस दुर्लभ और बेशकीमती स्वर्ण कलश के अलावा राधा कृष्ण और हरिद्वार की हर की पौड़ी के दुर्लभ और सुंदर चित्र सजे हैं। यहां कवि पंडित रामप्रसाद द्वारा गंगा की महिमा के लिए रचा गया शिलालेख आज भी ज्यों का त्यों है। मंदिर के भित्तिचित्र, शिल्प और स्थापत्य देखने योग्य है।
(स्टोरी: देवेन्द्र सिंह)
Rajasthan Patrika News 2017-06-03 के अनुसार << सूर्य की किरण >>
No comments:
Post a Comment