इंडिया_बनने_से_पहले भारतवर्ष_में_महिलाएं
बीबीसी और अन्य विदेशी सर्वेयर ये मानते है कि महिलाओं की स्थिति भारत मे बहुत खराब है यहाँ की लचर कानून व्यवस्था और प्रशासन बहुत लापरवाह है, महिलाओं को आजादी नही है ब्ला ब्ला। कल मैंने एक पोस्ट डाली थी कि अन्य धर्म महिलाओं के लिए कितने उदार है और इनमे महिलाओ की स्थिति क्या है जहाँ आपने देखा कि अन्य मतों में महिलाओं को सिर्फ भोग , पुरुषों से कमतर और बच्चे पैदा करने की मसीन माना जाता है । सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) में महिलाओं की स्थिति क्या है ये आज आपसे बताने की बात कही थी तो आइए देखते है कि इंडिया से पहले के "भारतवर्ष " में महिलाओ की क्या स्थिति थी और क्या स्थान था , आइये आज वामपंथी विचारधारा का एक खंडन करते है जिसमे उनके अनुसार वैदिक काल से ही महिलाओ का शोषण और शमन किया जाता रहा है ---
वैदिक_काल_मे_महिला_वर्गीकरण
प्राचीन समय में स्त्रियाँ का वर्गीकरण का आधार इनके द्वारा चुने गए कार्यक्षेत्रों पर निर्भर था जिसका चयन करने के लिए ये स्वच्छंद थी इनके आधार पर इन्हें 2 भागो में बांटा गया --
1- #सद्योवधू --जो गृहस्थ का संचालन करती थीं, उन्हें ‘सद्योवधू' कहते थे ।।
2 - #ब्रह्मवादिनी -- जो वेदाध्ययन, ब्रह्म उपासना आदि के पारमार्थिक कार्यों में प्रवृत्त रहती थीं, उन्हें ‘ब्रह्मवादिनी’ कहते थे।।
ब्रह्मवादिनी और सद्योवधू के कार्यक्रम तो अलग- अलग थे, पर उनके मौलिक धर्माधिकारों में कोई अन्तर न था। देखिये— हारीत धर्म सूत्र --
द्विविधा: स्त्रिया:। ब्रह्मवादिन्य: सद्योवध्वश्च।
तत्र ब्रह्मवादिनीनामुपनयनम्, अग्रीन्धनं वेदाध्ययनं
स्वगृहे च भिक्षाचर्येति। सद्योवधूनां तूपस्थिते विवाहे
कथञ्चिदुपनयनमात्रं कृत्वा विवाह: कार्य:।।
अर्थात -
ब्रह्मवादिनी और सद्योवधू ये दो स्त्रियाँ होती हैं। इनमें से ब्रह्मवादिनी- यज्ञोपवीत, अग्निहोत्र, वेदाध्ययन तथा स्वगृह में भिक्षा करती हैं। सद्योवधुओं का भी यज्ञोपवीत आवश्यक है। वह विवाहकाल उपस्थित होने पर करा देते हैं।
शतपथ ब्राह्मण में याज्ञवल्क्य ऋषि की धर्मपत्नी मैत्रेयी को ब्रह्मवादिनी कहा है—
तयोर्ह मैत्रेयी ब्रह्मवादिनी बभूव। —शत०ब्रा० 14/7/3/1
#वैदिक_काल_मे_महिलाए_जो_प्रसिद्ध ऋषियों के समान ही प्रसिद्ध थी लेकिन जब हमने अपना अतीत ही भुला दिया तो इन्हें कौन याद रखे --
ऋग्वेद की ऋषिकाओं की सूची बृहद् देवता के दूसरे अध्याय में इस प्रकार है—
घोषा गोधा विश्ववारा, अपालोपनिषन्निषत्।
ब्रह्मजाया जुहूर्नाम अगस्त्यस्य स्वसादिति:॥ 84॥
इन्द्राणी चेन्द्रमाता च सरमा रोमशोर्वशी।
लोपामुद्रा च नद्यश्च यमी नारी च शश्वती॥ 85॥
श्रीर्लाक्षा सार्पराज्ञी वाक्श्रद्धा मेधा च दक्षिणा।
रात्री सूर्या च सावित्री ब्रह्मवादिन्य ईरिता:॥ 86॥
अनुवाद --
घोषा, गोधा, विश्ववारा, अपाला, उपनिषद्, निषद्, ब्रह्मजाया (जुहू), अगस्त्य की भगिनी, अदिति, इन्द्राणी और इन्द्र की माता, सरमा, रोमशा, उर्वशी, लोपामुद्रा और नदियाँ, यमी, शश्वती, श्री, लाक्षा, सार्पराज्ञी, वाक्, श्रद्धा, मेधा, दक्षिणा, रात्री और सूर्या- सावित्री आदि सभी ब्रह्मवादिनी हैं।
इनके द्वारा दिया गया ज्ञान ऋग्वेद में स्थित है --
ऋग्वेद के 10- 139, 39, 40, 91, 95, 107 , 109, 154, 159, 189 , 5 अध्याय का 8 वा , 8वे अध्याय का 9 मंत्र आदि की मन्त्रदृष्टा ये ऋषिकाएँ हैं।
महिलाओं को वैदिक भारत मे आज से कही ज्यादा अधिकार थे हालांकि एक से ज्यादा उदाहरण दिया जा सकता है लेकिन सिर्फ 1 -1 उदाहरण से अपनी बात रखूंगा --
वैदिक_काल_मे_महिलाओं_को_अधिकार
पुत्र_के_समान_ही_पुत्री_को_अधिकार --
यथैवात्मा तथा पुत्र: पुत्रेण दुहिता समा। -मनु० 9/130
आत्मा के समान ही सन्तान है। जैसा पुत्र वैसी ही कन्या, दोनों समान हैं।
स्त्री_पुरुष_दोनों_समान_है --
एतावानेव पुरुषो यज्जायात्मा प्रजेति ह।
विप्रा: प्राहुस्तथा चैतद्यो भत्र्ता सा स्मृतांगना॥
-मनु० 9/45
पुरुष अकेला नहीं होता, किन्तु स्वयं पत्नी और सन्तान मिलकर पुरुष बनता है।
अथो अद्र्धो वा एष आत्मन: यत् पत्नी।
अर्थात् पत्नी पुरुष का आधा अंग है।
अ यज्ञो वा एष योऽपत्नीक:। —तैत्तिरीय सं० 2/2/2/6
अर्थात् बिना पत्नी के यज्ञ नहीं होता है।
अथो अर्धो वा एष आत्मन: यत् पत्नी।
—तैत्तिरीय सं० 3/3/3/5
अर्थात्- पत्नी पति की अर्धांगिनी है, अत: उसके बिना यज्ञ अपूर्ण है।
शिक्षा_का_अधिकार --
माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धीमत्ता और विद्याबल का उपहार दें । वे उसे ज्ञान का दहेज़ दें । जब कन्याएं बाहरी उपकरणों को छोड़ कर, भीतरी विद्या बल से चैतन्य स्वभाव और पदार्थों को दिव्य दृष्टि से देखने वाली और आकाश और भूमि से सुवर्ण आदि प्राप्त करने कराने वाली हो तब सुयोग्य पति से विवाह करे ।। अथर्ववेद 14/1/6
ब्रह्मचर्य सूक्त के इस मंत्र में कन्याओं के लिए भी ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने के लिए कहा गया है । यह सूक्त लड़कों के समान ही कन्याओं की शिक्षा को भी विशेष महत्त्व देता है । कन्याएं ब्रह्मचर्य के सेवन से पूर्ण विदुषी और युवती होकर ही विवाह करें।। अथर्ववेद 11/5/18
शाशक_बनने_का_अधिकार --
स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार है । यजुर्वेद 20/9
स्त्रियों की भी सेना हो । स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें ।यजुर्वेद 17/45
शासकों की स्त्रियां अन्यों को राजनीति की शिक्षा दें । जैसे राजा, लोगों का न्याय करते हैं वैसे ही रानी भी न्याय करने वाली हों ।यजुर्वेद 10/26
पति_के_चुनाव_के_लिए_स्वछंदता --
स्त्रियों की इस बात की पूरी आज़ादी थी कि वे अपना जीवनसाथी चुन सकें. इसके बावजूद उनके कुंवारे रहने की भी पूरी आज़ादी थी।
प्रधानो नाम राजर्षिव्र्यक्तं ते श्रोत्रमागत:।
कुले तस्य समुत्पन्नां सुलभां नाम विद्धि माम्
साऽहं तस्मिन् कुले जाता भर्तर्यसति मद्विधे।
विनीता मोक्षधर्मेषु चराम्येकामुनिव्रतम्॥ —महा०शान्ति पर्व 320/181/183
मैं सुप्रसिद्ध क्षत्रिय कुल में उत्पन्न सुलभा हूँ। अपने अनुरूप पति न मिलने से मैंने गुरुओं से शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त करके संन्यास ग्रहण किया है।
#वैवाहिक_बलात्कार_बिना_मर्जी_सम्बंध_बनाने__की_निषिद्धता -
सेक्स या संभोग तब निषिद्ध विषय नहीं था। लोग इस विषय पर खुल कर बातचीत किया करते थे।
महाभारत में इस बात का जिक्र है कि यदि कोई स्त्री किसी के साथ नज़दीकी नहीं चाहती है तो कोई पुरुष किसी प्रकार के दबाव का इस्तेमाल नहीं कर सकता, पुरुषों से ऐसी हमेशा अपेक्षा की जाती थी कि वे ख़ुद को संयमित रखेंगे और सही के राह पर चलेंगे, पुरुष को ऐसी कोई छूट नहीं थी कि वह किसी स्त्री से दुर्व्यवहार करे और उस पर हाथ उठाए। (कामशास्त्र )
इसके अतिरिक्त शंकराचार्य और मंडन मिश्र की पत्नी के वीच काम शास्त्रम पर हुआ संवाद ।।
विधवा_स्त्री_को_भी_समान_अधिकार --
या स्त्री भत्र्रा वियुक्तापि स्वाचारै: संयुता शुभा।
सा च मन्त्रान् प्रगृह्णातु सभत्र्री तदनुज्ञया॥
—भविष्य पुराण उत्तर पर्व 4/13/63
उत्तम आचरण वाली विधवा स्त्री वेद- मन्त्रों को ग्रहण करे और सधवा स्त्री अपने पति की अनुमति से मन्त्रों को ग्रहण करे।
निष्कर्ष -- स्त्रियों को पुरुषों के समान ही अधिकार था शिक्षा , युद्ध व अन्य कार्य करने के लिए महिलाओ को भी पुरुषों के समान अधिकार मिला हुआ था पुत्र पुत्री समान थे दोनो में कोई अन्तर नही किया जाता था दोनो को समान सम्मान भी ।।
महिलाओं_को_विशेष_सम्मान_प्राप्त_है_सनातन_धर्म_मे --
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।-अथर्ववेद
जिस कुल में नारियों कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण, दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं।
अब जिस #मनुस्मृति को महिलाओ के अधिकारों का हनन करने वाला प्रचारित किया जाता रहा है कुछ उदाहरण उससे भी देखते है --
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।56।।
जहां स्त्रीजाति का आदर-सम्मान होता है, उनकी आवश्यकताओं-अपेक्षाओं की पूर्ति होती है, उस स्थान, समाज, तथा परिवार पर देवतागण प्रसन्न रहते हैं । जहां ऐसा नहीं होता और उनके प्रति तिरस्कारमय व्यवहार किया जाता है, वहां देवकृपा नहीं रहती है और वहां संपन्न किये गये कार्य सफल नहीं होते हैं ।
शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।।57।।
जिस कुल में पारिवारिक स्त्रियां दुर्व्यवहार के कारण शोक-संतप्त रहती हैं उस कुल का शीघ्र ही विनाश हो जाता है, उसकी अवनति होने लगती है । इसके विपरीत जहां ऐसा नहीं होता है और स्त्रियां प्रसन्नचित्त रहती हैं, वह कुल प्रगति करता है ।
जामयो यानि गेहानि शपन्त्यप्रतिपूजिताः ।
तानि कृत्याहतानीव विनश्यन्ति समन्ततः ।।58।।
जिन घरों में पारिवारिक स्त्रियां निरादर-तिरस्कार के कारण असंतुष्ट रहते हुए शाप देती हैं, यानी परिवार की अवनति के भाव उनके मन में उपजते हैं, वे घर कृत्याओं के द्वारा सभी प्रकार से बरबाद किये गये-से हो जाते हैं ।
विशेष --
आश्चर्य यह है कि प्रगतिशीलता का लेबल चिपकाए नारीवादी संगठनो की विचारक और नेत्रियां ''फेमिनिस्ट'' या नारीवादी तो कहलाना चाहती है लेकिन उनका महिला उत्थान से कोई लेना देना नहीं है , बस एक सुखी दाम्पत्य जीवन को बर्बाद करने में कोई कसर नही रखती ।
यही तथाकथित आधुनिक महिलाये जो उच्च वर्गीय पार्टियों में अल्प वस्त्रों और शराब की चुस्कियों के साथ पुरूष के साथ डांस पार्टियों का मजा उठाते हुए पुरूष के समान अधिकार प्राप्त करने, उसके साथ बराबरी में खड़ा होने और आधुनिक होने का दम भरती है और आसानी से बिना जाने बाजार वाद और पुरूष शोषण का शिकार हो जाती है।इस तरह के बाजार वाद में नारी की स्वतंत्र अस्मिता, पहचान और जरूरतें कहीं शोरगुल में दब जाती हैं और पुरूष के समान अधिकार दिए जाने की धुन में ''#पुरूष_टाइप_महिला'' का चित्र उभर आता है। यह महिला बड़ी आसानी से बाजारवादी साम्राज्य वाद की भेंट चढ़ जाती है।
प्राचीनकाल में गार्गी, मैत्रेयी, मदालसा, अनसूया, अरुन्धती, देवयानी, अहल्या, कुन्ती, सतरूपा, वृन्दा, मन्दोदरी, तारा, द्रौपदी, दमयन्ती, गौतमी, अपाला, सुलभा, शाश्वती, उशिजा, सावित्री, लोपामुद्रा, प्रतिशेयी, वैशालिनी, बैंदुला, सुनीति, शकुन्तला, पिङ्गला, जरुत्कार, रोहिणी, भद्रा, विदुला, गान्धारी, अञ्जनी, सीता, देवहूति, पार्वती, अदिति, शची, सत्यवती, सुकन्या, शैव्या आदि महासतियाँ वेदज्ञ देवियाँ विद्वत्ता, साहस, शौर्य, दूरदर्शिता, नीति, धर्म, साधना, आत्मोन्नति आदि पराक्रमों में अपने ढंग की अनोखी जाज्वल्यमान तारिकाएँ थीं ,जिन्हें आज याद करने की आवश्यकता है , आप बिना पुरुष टाइप की महिला बने बिना भी एक प्रगतिशील और आधुनिक महिला का दर्जा प्राप्त कर सकती है इसके लिए आपको दिखावा करने की जरूरत नही है ।।
लोगो को इतना तो पता है ही किसे सम्मान देना है लेकिन क्या आपको पता है कि सम्मान लेना कैसे है ?????
साभार -- अजेष्ठ त्रिपाठी जी I
बीबीसी और अन्य विदेशी सर्वेयर ये मानते है कि महिलाओं की स्थिति भारत मे बहुत खराब है यहाँ की लचर कानून व्यवस्था और प्रशासन बहुत लापरवाह है, महिलाओं को आजादी नही है ब्ला ब्ला। कल मैंने एक पोस्ट डाली थी कि अन्य धर्म महिलाओं के लिए कितने उदार है और इनमे महिलाओ की स्थिति क्या है जहाँ आपने देखा कि अन्य मतों में महिलाओं को सिर्फ भोग , पुरुषों से कमतर और बच्चे पैदा करने की मसीन माना जाता है । सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) में महिलाओं की स्थिति क्या है ये आज आपसे बताने की बात कही थी तो आइए देखते है कि इंडिया से पहले के "भारतवर्ष " में महिलाओ की क्या स्थिति थी और क्या स्थान था , आइये आज वामपंथी विचारधारा का एक खंडन करते है जिसमे उनके अनुसार वैदिक काल से ही महिलाओ का शोषण और शमन किया जाता रहा है ---
वैदिक_काल_मे_महिला_वर्गीकरण
प्राचीन समय में स्त्रियाँ का वर्गीकरण का आधार इनके द्वारा चुने गए कार्यक्षेत्रों पर निर्भर था जिसका चयन करने के लिए ये स्वच्छंद थी इनके आधार पर इन्हें 2 भागो में बांटा गया --
1- #सद्योवधू --जो गृहस्थ का संचालन करती थीं, उन्हें ‘सद्योवधू' कहते थे ।।
2 - #ब्रह्मवादिनी -- जो वेदाध्ययन, ब्रह्म उपासना आदि के पारमार्थिक कार्यों में प्रवृत्त रहती थीं, उन्हें ‘ब्रह्मवादिनी’ कहते थे।।
ब्रह्मवादिनी और सद्योवधू के कार्यक्रम तो अलग- अलग थे, पर उनके मौलिक धर्माधिकारों में कोई अन्तर न था। देखिये— हारीत धर्म सूत्र --
द्विविधा: स्त्रिया:। ब्रह्मवादिन्य: सद्योवध्वश्च।
तत्र ब्रह्मवादिनीनामुपनयनम्, अग्रीन्धनं वेदाध्ययनं
स्वगृहे च भिक्षाचर्येति। सद्योवधूनां तूपस्थिते विवाहे
कथञ्चिदुपनयनमात्रं कृत्वा विवाह: कार्य:।।
अर्थात -
ब्रह्मवादिनी और सद्योवधू ये दो स्त्रियाँ होती हैं। इनमें से ब्रह्मवादिनी- यज्ञोपवीत, अग्निहोत्र, वेदाध्ययन तथा स्वगृह में भिक्षा करती हैं। सद्योवधुओं का भी यज्ञोपवीत आवश्यक है। वह विवाहकाल उपस्थित होने पर करा देते हैं।
शतपथ ब्राह्मण में याज्ञवल्क्य ऋषि की धर्मपत्नी मैत्रेयी को ब्रह्मवादिनी कहा है—
तयोर्ह मैत्रेयी ब्रह्मवादिनी बभूव। —शत०ब्रा० 14/7/3/1
#वैदिक_काल_मे_महिलाए_जो_प्रसिद्ध ऋषियों के समान ही प्रसिद्ध थी लेकिन जब हमने अपना अतीत ही भुला दिया तो इन्हें कौन याद रखे --
ऋग्वेद की ऋषिकाओं की सूची बृहद् देवता के दूसरे अध्याय में इस प्रकार है—
घोषा गोधा विश्ववारा, अपालोपनिषन्निषत्।
ब्रह्मजाया जुहूर्नाम अगस्त्यस्य स्वसादिति:॥ 84॥
इन्द्राणी चेन्द्रमाता च सरमा रोमशोर्वशी।
लोपामुद्रा च नद्यश्च यमी नारी च शश्वती॥ 85॥
श्रीर्लाक्षा सार्पराज्ञी वाक्श्रद्धा मेधा च दक्षिणा।
रात्री सूर्या च सावित्री ब्रह्मवादिन्य ईरिता:॥ 86॥
अनुवाद --
घोषा, गोधा, विश्ववारा, अपाला, उपनिषद्, निषद्, ब्रह्मजाया (जुहू), अगस्त्य की भगिनी, अदिति, इन्द्राणी और इन्द्र की माता, सरमा, रोमशा, उर्वशी, लोपामुद्रा और नदियाँ, यमी, शश्वती, श्री, लाक्षा, सार्पराज्ञी, वाक्, श्रद्धा, मेधा, दक्षिणा, रात्री और सूर्या- सावित्री आदि सभी ब्रह्मवादिनी हैं।
इनके द्वारा दिया गया ज्ञान ऋग्वेद में स्थित है --
ऋग्वेद के 10- 139, 39, 40, 91, 95, 107 , 109, 154, 159, 189 , 5 अध्याय का 8 वा , 8वे अध्याय का 9 मंत्र आदि की मन्त्रदृष्टा ये ऋषिकाएँ हैं।
महिलाओं को वैदिक भारत मे आज से कही ज्यादा अधिकार थे हालांकि एक से ज्यादा उदाहरण दिया जा सकता है लेकिन सिर्फ 1 -1 उदाहरण से अपनी बात रखूंगा --
वैदिक_काल_मे_महिलाओं_को_अधिकार
पुत्र_के_समान_ही_पुत्री_को_अधिकार --
यथैवात्मा तथा पुत्र: पुत्रेण दुहिता समा। -मनु० 9/130
आत्मा के समान ही सन्तान है। जैसा पुत्र वैसी ही कन्या, दोनों समान हैं।
स्त्री_पुरुष_दोनों_समान_है --
एतावानेव पुरुषो यज्जायात्मा प्रजेति ह।
विप्रा: प्राहुस्तथा चैतद्यो भत्र्ता सा स्मृतांगना॥
-मनु० 9/45
पुरुष अकेला नहीं होता, किन्तु स्वयं पत्नी और सन्तान मिलकर पुरुष बनता है।
अथो अद्र्धो वा एष आत्मन: यत् पत्नी।
अर्थात् पत्नी पुरुष का आधा अंग है।
अ यज्ञो वा एष योऽपत्नीक:। —तैत्तिरीय सं० 2/2/2/6
अर्थात् बिना पत्नी के यज्ञ नहीं होता है।
अथो अर्धो वा एष आत्मन: यत् पत्नी।
—तैत्तिरीय सं० 3/3/3/5
अर्थात्- पत्नी पति की अर्धांगिनी है, अत: उसके बिना यज्ञ अपूर्ण है।
शिक्षा_का_अधिकार --
माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धीमत्ता और विद्याबल का उपहार दें । वे उसे ज्ञान का दहेज़ दें । जब कन्याएं बाहरी उपकरणों को छोड़ कर, भीतरी विद्या बल से चैतन्य स्वभाव और पदार्थों को दिव्य दृष्टि से देखने वाली और आकाश और भूमि से सुवर्ण आदि प्राप्त करने कराने वाली हो तब सुयोग्य पति से विवाह करे ।। अथर्ववेद 14/1/6
ब्रह्मचर्य सूक्त के इस मंत्र में कन्याओं के लिए भी ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने के लिए कहा गया है । यह सूक्त लड़कों के समान ही कन्याओं की शिक्षा को भी विशेष महत्त्व देता है । कन्याएं ब्रह्मचर्य के सेवन से पूर्ण विदुषी और युवती होकर ही विवाह करें।। अथर्ववेद 11/5/18
शाशक_बनने_का_अधिकार --
स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार है । यजुर्वेद 20/9
स्त्रियों की भी सेना हो । स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें ।यजुर्वेद 17/45
शासकों की स्त्रियां अन्यों को राजनीति की शिक्षा दें । जैसे राजा, लोगों का न्याय करते हैं वैसे ही रानी भी न्याय करने वाली हों ।यजुर्वेद 10/26
पति_के_चुनाव_के_लिए_स्वछंदता --
स्त्रियों की इस बात की पूरी आज़ादी थी कि वे अपना जीवनसाथी चुन सकें. इसके बावजूद उनके कुंवारे रहने की भी पूरी आज़ादी थी।
प्रधानो नाम राजर्षिव्र्यक्तं ते श्रोत्रमागत:।
कुले तस्य समुत्पन्नां सुलभां नाम विद्धि माम्
साऽहं तस्मिन् कुले जाता भर्तर्यसति मद्विधे।
विनीता मोक्षधर्मेषु चराम्येकामुनिव्रतम्॥ —महा०शान्ति पर्व 320/181/183
मैं सुप्रसिद्ध क्षत्रिय कुल में उत्पन्न सुलभा हूँ। अपने अनुरूप पति न मिलने से मैंने गुरुओं से शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त करके संन्यास ग्रहण किया है।
#वैवाहिक_बलात्कार_बिना_मर्जी_सम्बंध_बनाने__की_निषिद्धता -
सेक्स या संभोग तब निषिद्ध विषय नहीं था। लोग इस विषय पर खुल कर बातचीत किया करते थे।
महाभारत में इस बात का जिक्र है कि यदि कोई स्त्री किसी के साथ नज़दीकी नहीं चाहती है तो कोई पुरुष किसी प्रकार के दबाव का इस्तेमाल नहीं कर सकता, पुरुषों से ऐसी हमेशा अपेक्षा की जाती थी कि वे ख़ुद को संयमित रखेंगे और सही के राह पर चलेंगे, पुरुष को ऐसी कोई छूट नहीं थी कि वह किसी स्त्री से दुर्व्यवहार करे और उस पर हाथ उठाए। (कामशास्त्र )
इसके अतिरिक्त शंकराचार्य और मंडन मिश्र की पत्नी के वीच काम शास्त्रम पर हुआ संवाद ।।
विधवा_स्त्री_को_भी_समान_अधिकार --
या स्त्री भत्र्रा वियुक्तापि स्वाचारै: संयुता शुभा।
सा च मन्त्रान् प्रगृह्णातु सभत्र्री तदनुज्ञया॥
—भविष्य पुराण उत्तर पर्व 4/13/63
उत्तम आचरण वाली विधवा स्त्री वेद- मन्त्रों को ग्रहण करे और सधवा स्त्री अपने पति की अनुमति से मन्त्रों को ग्रहण करे।
निष्कर्ष -- स्त्रियों को पुरुषों के समान ही अधिकार था शिक्षा , युद्ध व अन्य कार्य करने के लिए महिलाओ को भी पुरुषों के समान अधिकार मिला हुआ था पुत्र पुत्री समान थे दोनो में कोई अन्तर नही किया जाता था दोनो को समान सम्मान भी ।।
महिलाओं_को_विशेष_सम्मान_प्राप्त_है_सनातन_धर्म_मे --
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।-अथर्ववेद
जिस कुल में नारियों कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण, दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं।
अब जिस #मनुस्मृति को महिलाओ के अधिकारों का हनन करने वाला प्रचारित किया जाता रहा है कुछ उदाहरण उससे भी देखते है --
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।56।।
जहां स्त्रीजाति का आदर-सम्मान होता है, उनकी आवश्यकताओं-अपेक्षाओं की पूर्ति होती है, उस स्थान, समाज, तथा परिवार पर देवतागण प्रसन्न रहते हैं । जहां ऐसा नहीं होता और उनके प्रति तिरस्कारमय व्यवहार किया जाता है, वहां देवकृपा नहीं रहती है और वहां संपन्न किये गये कार्य सफल नहीं होते हैं ।
शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।।57।।
जिस कुल में पारिवारिक स्त्रियां दुर्व्यवहार के कारण शोक-संतप्त रहती हैं उस कुल का शीघ्र ही विनाश हो जाता है, उसकी अवनति होने लगती है । इसके विपरीत जहां ऐसा नहीं होता है और स्त्रियां प्रसन्नचित्त रहती हैं, वह कुल प्रगति करता है ।
जामयो यानि गेहानि शपन्त्यप्रतिपूजिताः ।
तानि कृत्याहतानीव विनश्यन्ति समन्ततः ।।58।।
जिन घरों में पारिवारिक स्त्रियां निरादर-तिरस्कार के कारण असंतुष्ट रहते हुए शाप देती हैं, यानी परिवार की अवनति के भाव उनके मन में उपजते हैं, वे घर कृत्याओं के द्वारा सभी प्रकार से बरबाद किये गये-से हो जाते हैं ।
विशेष --
आश्चर्य यह है कि प्रगतिशीलता का लेबल चिपकाए नारीवादी संगठनो की विचारक और नेत्रियां ''फेमिनिस्ट'' या नारीवादी तो कहलाना चाहती है लेकिन उनका महिला उत्थान से कोई लेना देना नहीं है , बस एक सुखी दाम्पत्य जीवन को बर्बाद करने में कोई कसर नही रखती ।
यही तथाकथित आधुनिक महिलाये जो उच्च वर्गीय पार्टियों में अल्प वस्त्रों और शराब की चुस्कियों के साथ पुरूष के साथ डांस पार्टियों का मजा उठाते हुए पुरूष के समान अधिकार प्राप्त करने, उसके साथ बराबरी में खड़ा होने और आधुनिक होने का दम भरती है और आसानी से बिना जाने बाजार वाद और पुरूष शोषण का शिकार हो जाती है।इस तरह के बाजार वाद में नारी की स्वतंत्र अस्मिता, पहचान और जरूरतें कहीं शोरगुल में दब जाती हैं और पुरूष के समान अधिकार दिए जाने की धुन में ''#पुरूष_टाइप_महिला'' का चित्र उभर आता है। यह महिला बड़ी आसानी से बाजारवादी साम्राज्य वाद की भेंट चढ़ जाती है।
प्राचीनकाल में गार्गी, मैत्रेयी, मदालसा, अनसूया, अरुन्धती, देवयानी, अहल्या, कुन्ती, सतरूपा, वृन्दा, मन्दोदरी, तारा, द्रौपदी, दमयन्ती, गौतमी, अपाला, सुलभा, शाश्वती, उशिजा, सावित्री, लोपामुद्रा, प्रतिशेयी, वैशालिनी, बैंदुला, सुनीति, शकुन्तला, पिङ्गला, जरुत्कार, रोहिणी, भद्रा, विदुला, गान्धारी, अञ्जनी, सीता, देवहूति, पार्वती, अदिति, शची, सत्यवती, सुकन्या, शैव्या आदि महासतियाँ वेदज्ञ देवियाँ विद्वत्ता, साहस, शौर्य, दूरदर्शिता, नीति, धर्म, साधना, आत्मोन्नति आदि पराक्रमों में अपने ढंग की अनोखी जाज्वल्यमान तारिकाएँ थीं ,जिन्हें आज याद करने की आवश्यकता है , आप बिना पुरुष टाइप की महिला बने बिना भी एक प्रगतिशील और आधुनिक महिला का दर्जा प्राप्त कर सकती है इसके लिए आपको दिखावा करने की जरूरत नही है ।।
लोगो को इतना तो पता है ही किसे सम्मान देना है लेकिन क्या आपको पता है कि सम्मान लेना कैसे है ?????
साभार -- अजेष्ठ त्रिपाठी जी I
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