Wednesday, 13 June 2018

क्या हमारे पूर्वजों के भी कुछ कारनामे हैं ? कुछ एसे कारनामे जिनपर हम गर्व कर सकें ?
जवाब है ..... हाँ ...हैं .....एसे कई कारनामे जिन्होंने इस देश को ही नहीं विश्व इतिहास को भी प्रभावित किया, जिनके कारण आज हम और हमारी संस्कृति जीवित है और हम अपना सिर ऊंचा करके खडे हो सकते हैं .
--तो क्या थे वे कारनामे ?
--कौन थे वे जिन्होंने इन्हें अंजाम दिया और हम उनसे अंजान हैं ??
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समय - 723 ई.
भारत
मुहम्मद बिन कासिम की पराजय के बाद खलीफा हाशिम के आदेश पर #जुनैद_इब्न_अब्द ने मुहम्मद बिन कासिम के अधूरे काम को पूरा करने का बीडा उठाया . बेहद शातिर दिमाग जुनैद समझ गया था कि कश्मीर के महान योद्धा शासक #ललितादित्य_मुक्तापीड और कन्नौज के #यशोवर्मन से वह नहीं जीत सकता , इसीलिये उसने दक्षिण में गुजरात के रास्ते से राजस्थान और फिर मध्यभारत को जीतकर ( और शायद फिर कन्नौज की ओर) आगे बढने की योजना बनाई . और अपनी सेना के दो भाग किये -
१-स्वयं #जुनैद के नेतृत्व में मालवा की ओर
२-एक सेना गुजरात की ओर
३-एक सेना कश्मीर की ओर काँगड़े की तरफ।
४- एक सेना कन्नौज की ओर
कश्मीर और कन्नौज पर आक्रमण संभवतः ललितादित्य व यशोवर्मन को उलझाने के लिए भेजी गयीं थीं।
-- यद्यपि कश्मीर व कन्नौज के शासकों ने अरब सेनाओं को आसानी से हरा दिया था परन्तु पश्चिमी भारत में फिर भी अरब तूफान की तरह आगे बढ़े
--नांदीपुरी में दद्द द्वारा स्थापित गुर्जरों का प्राचीन राज्य
--मंडोर का हरिश्चंद्र द्वारा स्थापित प्राचीन राज्य ,
--चित्तोड का मोरी राज्य इस तूफान में उखड गये।
यहाँ तक कि अरब उज्जैन तक आ पहुँचे और अरबों को लगने लगा कि वे स्पेन ,ईरान और सिंध की कहानी भी यहाँ बस दुहराने ही वाले हैं ..स्थित सचमुच भयावनी हो चुकी थी ..और ....तब ....तब भारत के गौरव को बचाने के लिये अपने यशस्वी पूर्वजों के नाम पर वे अपने सुयोग्य नेतृत्व में उठ खडे हुए . वे थे ---
!!!!!!!!!!!!!!!!!! "#प्रतिहार" !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
और प्रतिहारों के उस सुयोग्य नेता का नाम था --
--------------- "नागभट्ट प्रथम"----------------
--- वे खुद को रघुवंशी कहते थे .
--- वे खुद को श्रीराम के भाई लक्ष्मण का वंशज मानते थे
--- वे धर्मरक्षा के लिये अग्निकुंड से जन्म के मिथक के कारण अग्निवंशी राजपूत भी कहलाते थे।
--- वे शायद गुप्त और वर्धन साम्राज्य के सबसे विश्वसनीय और प्रतिष्ठापूर्ण सैनिक सेवा "प्रतिहार" बटालियन के पीढीगत योद्धा थे, इसीलिये वे अपनी पीढ़ीगत सैनिक पदवी "प्रतिहार" नाम से ही पहचाने जाते थे।
--दद्द गुर्जर से छीने गये गुर्जरत्रा को अपना गढ़ बनाने के कारण प्रतिद्वद्वियों द्वारा तिरस्कारपूर्वक 'गुर्जरप्रतिहार' भी कहे जाते थे।
वे भारतीय इतिहास के रंगमंच पर एसे समय उभरे जब भारत अब तक के ज्ञात सबसे भयंकर खतरे का सामना कर रहा था। भारत संस्कृति और धर्म , उसकी ' हिंद ' के रूप में पहचान खतरे में थी। अरबों के रूप में " इस्लाम " हिंदुत्व " को निगलने के लिये बेचैन था।
#नागभट्ट प्रतिहार के नेतृत्व में दक्षिण के चालुक्य राजा #विक्रमादित्य द्वितीय और नागदा के गुहिलौत वंश के 'राणा खुम्माण अथवा कालभोज' जिन्हें इतिहास "#बप्पा रावल" के नाम से जानता है, के साथ एक संघ बनाया गया। संभवतः यशोवर्मन और ललितादित्य भी अपने राष्ट्रीय कर्तव्य से पीछे नहीं हटे और उन्होंने भी इस संघ को सैन्य सहायता भेजी। मुकाबला फिर भी गैरबराबरी का था ----
--- 100000 मुस्लिम योद्धा v/s 40000 हिंदू योद्धा
परंतु दो बिंदुओं में तत्कालीन हिंदू योद्धा मुस्लिमों से ही नहीं वरन संसार भर में सर्वश्रेष्ठ थे और वह थे- #हथियार व #तकनीक जिसका श्रेय जाता था उस युग के लौह शिल्पियों व तक्षणों को जिन्हें आज #लुहारऔर #सुथार कहा जाता है और सुथार तो स्वयं को आज भी गर्वपूर्वक प्रतिहारों का वंशज मानते हैं।
इन शिल्पियों द्वारा निर्मित भारी दुधारी खांडा एक वार में पूरे शरीर को शिरस्त्राण सहित चीर देता था वहीं उनके द्वारा निर्मित स्टील की प्लेटों व चेनमेल का कवच अरबी तलवारों के लिये अभेद्य था।
साथ ही उत्कृष्ट था ब्राह्मणों द्वारा शताब्दियों के अनुभवों से समृद्ध व संचित व्यूहों व रणनीतिक चालों के ज्ञान से प्रशिक्षित सैन्य नेतृत्व।
और फिर शुरू हुयी कई युद्धों की श्रंखला जिसे मुस्लिम और वामिये इतिहासकार छुपाते आये हैं -
........... " The Battle of Rajsthaan " .............
- मालवा में नागभट्ट ने जुनैद को उज्जैन से खदेड दिया।
- कई युद्धों के बाद अंततः नागभट्ट और बप्पा रावल ने मरुस्थल व अपने भूगोल का लाभ उठाते हुए निरंतर खदेड़ते हुए जुनैद को घेर लिया और फिर राजस्थान की सीमा पर हुआ संयुक्त हिंदू सैन्य और अरबों का निर्णायक युद्ध जो भारत में अरबों की किस्मत का फैसला करने वाला था।
सैन्य रूप से अरब अभी भी भारी बढत में थे।उनके 30000 घुड्सवार , ऊँटसवार और पैदल सेना के मुकाबले में हिंदूसैन्य केवल 6000 घुडसवार और पैदल।
पर अरबों की संख्या पर राजपूतों का दुधारी खांडा बहुत भारी पडा। नागभट्ट और बप्पा रावल की उत्कृष्ट रणनीति और हिंदू योद्धाओं की वीरता ने मुस्लिम सेना को ना केवल बुरी तरह मात दी बल्कि भारत में अरबों का सबसे महान जनरल जुनैद जान बचाकर भाग गया और कुछ समय बाद मर गया।
-भागती मुस्लिम सेनाओं का क्रूरतापूर्वक सिंधु तक पीछा किया गया और उनका सफाया किया गया।
जुनैद के बाद उसके स्थानापन्न गवर्नर #तमिन ने एक कोशिश और की सौराष्ट्र की ओर से ।
परंतु सौराष्ट्र क्षेत्र में विक्रमादित्य चालुक्य के युवराज व सेनापति पुलिकेशिन ने अरब सेनाओं को बुरी तरह रौंद दिया और कृतज्ञ जनता ने उन्हें पुकारा #अवनिजनाश्रय ।
आखिरकार परिणाम मात्र इतना हुआ कि अरब सदैव के लिये सिंधु के उस पार धकेल दिये गये और मात्र एक टापूनुमा शहर "मनसुरा" तक सीमित होकर रह गये जिसके अवशेष वर्तमान में उसी स्थान पर आज भी हैं।
इस तरह ना केवल विश्व को यह बताया गया कि हिंदुत्व के योद्धा, शारीरिक बल में श्रेष्ठ हैं बल्कि यह भी कि उनके हथियार, उनकी युद्ध तकनीक और रणनीति विश्व में सर्वश्रेष्ठ है .
इस तरह भारत की सीमाओं को सुरक्षित रखते हुए उन्होंने अपना नाम सार्थक किया --
---"" प्रतिहार "" ' The door keepers of India ' ----.
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स्रोत -
१- श्रेण्य युग - आर . सी. मजूमदार
२- मध्यकालीन भारत - सं. हरिश्चंद्र वर्मा
३- प्राचीन भारत का राजनैतिक और सांस्कृतिक इतिहास - डॉ. विमलचंद्र पांडे
४- अरब यात्री सुलेमान और अल मसूदी के उद्धरण
५- अल बलाधुरी के उद्धरण
६- ग्वालियर अभिलेख
७-बालभारत-- राजशेखर

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