*सन्तान का शिक्षण कब से प्रारम्भ करूं?*
एक सन्त के पास एक गर्भवती महिला आयी जिसका एक बच्चा और था जो साढ़े तीन वर्ष का था।उसने सन्त से पूँछा, महाराज मेरा बेटा साढ़े तीन वर्ष का हो गया है स्कूल में इसका दाखिला करवाना चाहती हूँ, उपाय बताएं कि कब से इसका शिक्षण शुरू करूं।
सन्त ने कहा, बेटी तू साढ़े चार साल लेट हो गयी। इसका शिक्षण तो गर्भ से ही शुरु करना चाहिए था। ख़ैर इसके समय जो देर की थी अब वर्तमान गर्भ के साथ देर मत करना।
स्त्री ने कहा, जो जन्मा ही नहीं वो पढ़ेगा कैसे? सीखेगा कैसे? सँस्कारवान बनेगा कैसे?
सन्त बोले ये बताओ, तुम्हारे बच्चे का शरीर भीतर कैसे बन रहा है? टीका रोगप्रतिरोधक किसको लगता है?
स्त्री बोली, मैं गर्भस्थ शिशु के लिए सन्तुलित भोजन करती हूँ। मेरे रक्त मांस से इसका निर्माण हो रहा है। मैं जो खाऊँगी वो इसे मिलेगा। मुझे लगा रोग प्रतिरोधक टीका और इंजेक्शन स्वतः इस तक पहुंचेगा।
सन्त बोले - इसी तरह बेटी तेरे द्वारा पढ़ा और सुना गया ज्ञान बच्चे तक पहुंचेगा। तेरे चिंतन, विचारों और भावनाओं से बच्चे का मन-मष्तिष्क बनेगा। इसलिए आज से ही सन्तुलित विचार हेतु स्वाध्याय शुरू कर दें। अच्छे भावों के निर्माण हेतु भजन और ध्यान करना शुरू कर दे।
प्रत्येक गर्भिणी के लिए सन्तुलित पोषण हेतु आहार और सन्तुलित विचार हेतु स्वाध्याय दोनों बहुत जरूरी है। सन्तुलित आहार शरीर स्वस्थ बनाएगा और सन्तुलित विचार स्वस्थ मन बनाएगा। गर्भस्थ शिशु के अन्तःकरण की निर्मलता हेतु ध्यान, प्रेरक भजन के साथ महापुरुषों की कहानियां पढ़ना और सुनना जरूरी है। गर्भोत्सव सँस्कार में गर्भिणी को यह शिक्षा पुरोहित/परिजन बहने देती है। अतः पुंसवन-गर्भ सँस्कार या तो आश्रम में करवा लो या इन बहनों को घर बुलवा के गर्भ सँस्कार करवा लो। गर्भस्थ शिशु का भी सँस्कार शाला में एडमिशन होगा जिसमें तुम पढ़ोगी और इस साढ़े तीन वर्ष के बालक को स्कूल में एडमिशन दिलवा दो जहां ये पढ़ेगा। दोनों सन्तानो के अच्छे संस्कार हेतु व्यवस्था करो।
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