Saturday, 2 January 2016

अमृता देवी और उन ३६३ महान लोगों को सत- सत नमन जिन्होंने वृक्षों को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया
उस आन्दोलन में पेड़ों को बचाने के लिए एक-दो नहीं नहीं बल्कि 363 महिलाओं-पुरुषों ने अपना बलिदान दे दिया....पर दुःख होता है उस आन्दोलन को कभी याद नहीं किया जाता..
.यहाँ तक की ज्यादातर भारतीय इस आन्दोलन को जानते भी नहीं....
सन 1730 में...जोधपुर(राजस्थान) के राजा को अपना आलिशान महल बनवाने के लिए इमारती लकड़ी की जरुरत थी...उसे पता चला की
खेजडली गाँव में खेजड़ी के मोटे-मोटे वृक्ष हैं....राजा ने उन वृक्षों को काटने के लिए अपनी सेना भेज दी....सेनिकों ने गावं में पहुच कर वृक्षों पर कुल्हाड़ी चलानी शुरू कर दी...कुल्हाड़ी की आवाज जब पास में रहने वाली एक महिला अमृता देवी ने सुनी...तो इसने वृक्षों को काटने का विरोध किया...और कहा की "ये वृक्ष हमरे बच्चे हैं...हमने इनको अपने बच्चों की तरह पाला है...." और ये कहकर वो वृक्ष से चिपक गयी....
सेनिकों ने कहा की हमने राजा की आज्ञा का पालन करना है...अगर तुम बीच से नहीं हटी तो हम तुम्हारा गला काट देंगे...पर अमृता देवी सामने से नहीं हटी....और सेनिकों की कुल्हाड़ी ने अमृता देवी का गला काट दिया...
इसके बाद अमृता देवी की तीन बेटियों वृक्षों से चिपक कर अपना बलिदान दे दिया...
ये खबर खेजडली गावं और आस-पास के गावों वालों को पता चली तो वो सब इस आन्दोलन में कूद गए...और आ-आ कर पेड़ों से चिपकते चले गए...और इस तरह 363 महान लोगों ने पेड़ों के लिए अपना बलिदान दे दिया...
कुछ वर्षों पूर्व जब दुनिया के एक महशूर पर्यावरणविद को इस घटना का पता चला तो उन्होंने कहा कि.." भारत के सब लोग अपनी बेटियों का नाम अमृता क्यों नहीं रखते...?

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