Saturday, 2 January 2016

नकारात्मक राजनीति के विरुद्ध जन आंदोलन जरुरी
वर्ष 2015 में उभरी नकारात्मक राजनीति ने हमारी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया। राहुल गांधी की उद्धण्ड़ टीम ने संसद के दोनो सदनो में एक तरह से उपद्रव कर संसदीय लोकतंत्र को अपमानित किया। संवैधानिक व्यवस्था को चुनौती देते हुए यह साबित करने की कोशिश की कि चाहे जनता ने हमे शासन करने के अयोग्य ठहरा दिया, किन्तु हम अपने आपको अयोग्य नहीं मानते।
भारत का शाही राजनीतिक परिवार संविधान और न्यायिक व्यवस्था से ऊपर है। शाही परिवार के वफादार सेवक यह मानते हैं कि भारत पर शासन करने का राज परिवार का अधिकार भारत की जनता छीन नहीं सकती। परिवार के किसी सदस्य को अपराधिक षड़यंत्र और धोखाधड़ी के आरोप में भारत की न्याय व्यवस्था न्यायालय में बुलाने का समन नहीं जारी कर सकती, क्योंकि परिवार के स्वमाीभक्तों का ऐसा मानना है कि राजशाही परम्परा में राजा को न तो कटघरें में खड़ा किया जा सकता है ओर न ही उसे दंड़ित किया जा सकता है।
गुजरे साल में नकारात्मक राजनीति को ऊंचार्इ पर पहुंचाने का श्रेय अरविंद केजरीवाल को भी जाता है। दिल्ली की जनता ने प्रचण्ड़ बहुमत दे कर उन्हें काम करने का जनादेश दिया था, परन्तु वे यह मान बैठे है कि झूठ, प्रपंच और बतंगड़ के प्रपोगंड़े से पूरे भारत की जनता को प्रभावित कर भारत का शीर्षस्थ राजपुरुष बना जा सकता है। पंजाब और दिल्ली के अलावा कहीं पर भी इस पार्टी का अस्तित्व नहीं है किन्तु पूरे भारत को अपना प्रभाव क्षेत्र मानने की यह महाशय धृष्टता कर रहे हैं। यही कारण है कि जनता के लिए काम करने के बजाय केन्द्र सरकार के विरुद्ध एक खुला संघर्ष छेड़ रखा है। प्रचार माध्यमों का सहारा ले उद्धण्ड़ शख्स यह साबित करने का प्रयास कर रहा है कि उसका कद प्रधानमंत्री के कद से भी ऊंचा है।
टीवी चेनलों को केजरीवाल ने अपनी नकारात्मक राजनीति को चमकाने का माध्यम बना रखा है। विदेशी मालिकों के समाचार चेनलों को केजरीवाल के रुप में भारत की केन्द्र सरकार को अस्थिर करने, उसे अलोकप्रिय बनाने और सरकार के विरुद्धषड़यंत्रकारी दुष्प्रचार के लिए केजरीवाल के रुप में एक मोहरा हाथ लग गया है, जिसका ये चेनल बखूबी से उपयोग कर रहे हैं। केजरीवाल भी यह मान बैठे हैं कि टीवी चेनलों को नकारात्मक राजनीति का भोंपू बनाने से उन्हें राष्ट्रीय नेता की मान्यता मिल गर्इ है।

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