संन्यासी ने जीते 65 लाख, कहा विज्ञान ही धर्म है
महज कुछ हजार रुपए बैंक अकाउंट में रखने वाले एक संन्यासी को ज्यामिति में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए 65 लाख रुपये के पुरस्कार से नवाजा गया है. ये पुरस्कार उन्हें ज्यामितीय समूह सिद्धांत, न्यून आयामी टोपोलॉजी और जटिल ज्यामिति के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया गया है. इस संन्यासी को प्रोफेसर महन महाराज के नाम से जाना जाता है. ऐसा पहली बार नहीं है कि महन महाराज को ऐसे किसी सम्मान से नवाजा गया है. इससे पहले साल 2011 में भी उन्हें भारत के सर्वोच्च विज्ञान सम्मान "शांति स्वरूप भटनागर अवार्ड" से पुरस्कृत किया जा चुका है.
महन महाराज 1998 में 47 साल की उम्र में संन्यासी बन रामकृष्ण मिशन के मठ से जुड़ गए थे. उस दौरान वह कैलिफोर्निया में पीएचडी कर रहे थे. महन महाराज मुंबई स्थित प्रसिद्ध टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च संस्थान में नियुक्त हैं. इस बेहद सम्मानित प्रोफेसर को गणित के क्षेत्र में इंफोसिस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. वह कहते हैं, "हम बिल्कुल अराजनीतिक हैं. विज्ञान स्वभाव से ही अराजनैतिक है."
एक ही वक्त में विज्ञान और आस्था दोनों को साथ लेकर चलने वाले प्रोफेसर महान को इसमें कुछ भी बेतुका नहीं लगता. वह कहते हैं, "मेरे गणितीय जीवन के संदर्भ में बात करें तो इसमें बिल्कुल कोई विरोधाभास नहीं है." वह कहते हैं कि वह गेरुआ वस्त्र इसलिए पहनते हैं कि यह उन्हें तपस्वी जीवन शैली की याद दिलाता है और इसका धर्म से ना के बराबर नाता है. वह कहते हैं, "मैं किसी संगठित धर्म का पालन नहीं करता. अगर आप मेरे सिर पर बंदूक रख कर (मेरा धर्म) पूछेंगे तो शायद मैं विज्ञान कहूं."
प्रेषित समय :20:12:34 PM / Sun, Nov 22nd, 2015
पलपलइंडिया के अनुसार << सूर्य की किरण >>
महन महाराज 1998 में 47 साल की उम्र में संन्यासी बन रामकृष्ण मिशन के मठ से जुड़ गए थे. उस दौरान वह कैलिफोर्निया में पीएचडी कर रहे थे. महन महाराज मुंबई स्थित प्रसिद्ध टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च संस्थान में नियुक्त हैं. इस बेहद सम्मानित प्रोफेसर को गणित के क्षेत्र में इंफोसिस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. वह कहते हैं, "हम बिल्कुल अराजनीतिक हैं. विज्ञान स्वभाव से ही अराजनैतिक है."
एक ही वक्त में विज्ञान और आस्था दोनों को साथ लेकर चलने वाले प्रोफेसर महान को इसमें कुछ भी बेतुका नहीं लगता. वह कहते हैं, "मेरे गणितीय जीवन के संदर्भ में बात करें तो इसमें बिल्कुल कोई विरोधाभास नहीं है." वह कहते हैं कि वह गेरुआ वस्त्र इसलिए पहनते हैं कि यह उन्हें तपस्वी जीवन शैली की याद दिलाता है और इसका धर्म से ना के बराबर नाता है. वह कहते हैं, "मैं किसी संगठित धर्म का पालन नहीं करता. अगर आप मेरे सिर पर बंदूक रख कर (मेरा धर्म) पूछेंगे तो शायद मैं विज्ञान कहूं."
प्रेषित समय :20:12:34 PM / Sun, Nov 22nd, 2015
पलपलइंडिया के अनुसार << सूर्य की किरण >>
No comments:
Post a Comment