पटना:-धनश्यामपुर (दरभंगा) के उसराही सुपौल के चंद्रवीर यादव ने प्राकृतिक खेती की। पहले एक एकड़ में दो-तीन हजार रुपए रासायनिक खाद और कीटनाशक पर खर्च करने पड़ते थे। अब बिना खर्च के ही बेहतर उपज मिली। प्रयोग के तौर पर कुछ खेतों में इस तरह से खेती की। अब इन्होंने तय किया कि अगले वर्ष से सभी पांच एकड़ खेत में यही विधि अपनाएंगे। इस विधि से बैंगन की खेती में भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं करना पड़ा और खूब उपज मिली। इस जिले के उमेश कुमार राय व रामदेव यादव भी इस विधि से खेती करते हैं।
फसल की मिलेगी अधिक कीमत : हींग लगे न फिटकरी, रंग चढ़े चोखा। शून्य लागत पर प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों के लिए यह कहावत सच साबित हो रही है। बिना रासायनिक खाद व कीटनाशक के प्रयोग के सिर्फ गोबर व गोमूत्र के प्रयोग से अनाज व सब्जी का अधिक उत्पादन मिलने लगा है। अपने पास अगर एक गाय है, तो पांच एकड़ तक खेती के लिए खाद की चिंता नहीं रहेगी। बस गोबर और गुड़ से ही फसल लहलहाएगी। गुणवत्तापूर्ण अधिक उत्पादन भी मिलेगा।
पूर्ण प्राकृतिक खेती से फसल की कीमत भी अधिक मिलेगी। इस प्रकार से उगाई गई फसलों के सेवन से आप जहर खाने से बच जाएंगे। मिट्टी की उर्वरता भी बरकरार रहेगी। जीव-जंतु भी नष्ट नहीं होंगे। पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा और अपना स्वास्थ्य भी। धान की खेती के लिए तीन से चार बार गोबर, गोमूत्र, गुड़ व दाल के आटे का घोल छिड़काव कर बिना खाद के उपज ली जा सकती है। गेहूं, गन्ना, दलहन व सब्जी की खेती में भी यह प्रयोग उपयोगी है।
एक ग्राम गोबर में 300-500 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु : एक ग्राम गाय के गोबर में 300-500 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं। गाय के गोबर में गुड़ व अन्य पदार्थ डालकर किण्वन (फरमेंटेशन) से सूक्ष्म जीवाणु बढ़ाकर तैयार किया जीवामृत या घन जीवामृत जब खेत में पड़ता है, तो सूक्ष्म जीवाणु भूमि में उपलब्ध तत्वों से पौधों का भोजन निर्माण करते हैं।
ऐसे करें प्रयोग
बीजामृत बीज शोधन :
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5 किलो गोबर, 5 लीटर गोमूत्र, 50 ग्राम चूना, एक मुट्ठी मिट्टी, 20 लीटर पानी में मिला कर 24 घंटे रखें। दिन में दो बार लकड़ी से घोलें। इसे 100 किलो बीजों पर उपचार करें। छांव में सूखा कर बोएं।
जीवामृत :
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जीवामृत पौधों के लिए भोजन तैयार करते हैं। गोमूत्र 5 से 10 लीटर, गोबर 10 किलो, गुड़ एक से दो किलो, दलहन आटा एक से दो किलो, 100 ग्राम जीवाणु युक्त मिट्टी, 200 लीटर पानी मिलाकर ड्रम को जूट की बोरी से ढक कर छाया में रखें। सुबह-शाम डंडा से घड़ी की सूई की दिशा में घोलें। 48 घंटे बाद छान कर सात दिनों के अंदर प्रयोग करें। एक एकड़ में 200 लीटर जीवामृत पानी के साथ छिड़काव करना चाहिए। पहला छिड़काव बुआई के एक माह बाद एक एकड़ में 100 लीटर पानी 5 लीटर जीवामृत मिला कर। दूसरा 21 दिनों बाद एक एकड़ में 150 लीटर पानी व 10 लीटर जीवामृत मिला कर। तीसरा व चौथा छिड़काव 21-21 दिन बाद एक एकड़ में 200 लीटर पानी व 20 लीटर जीवामृत मिलाकर दें। आखिरी छिड़काव दाने की दूध की अवस्था में प्रति एकड़ में 200 लीटर पानी, 5-10 लीटर खट्टी छाछ मिला कर छिड़काव करना चाहिए।
घन जीवामृत
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गोबर 100 किलो, गुड़ एक किलो, दाल का आटा एक किलो, मिट्टी 100 ग्राम पांच लीटर गोमूत्र मिला कर 48 घंटे छाया में बोरी से ढककर रखें। इसके बाद छाया में ही फैलाकर सुखाएं। इसे छह माह तक प्रयोग कर सकते हैं। एक एकड़ में एक क्विंटल घन जीवामृत देना चाहिए।
बिहार में प्राकृतिक कृषि अभियान की कमेटी बनी है। इसके माध्यम से 9 मई को एकदिवसीय प्रशिक्षण पटना में होगा, जिसमें विभिन्न जिलों से किसानों को बुलाकर प्रशिक्षित किया जाएगा। जून में एक सप्ताह तक प्रत्येक प्रखंड से दो-दो किसानों को प्रशिक्षित किया जाएगा। इस तकनीक के प्रवर्तक सुभाष पालेकर किसानों को प्रशिक्षित करेंगे।
प्राकृतिक कृषि अभियान
यह विधि सफल है। छोटे पैमाने पर इस विधि से खेती तो हो सकती है, लेकिन बड़े पैमाने इस तकनीक के प्रयोग के लिए गोबर और गोमूत्र की उपलब्धता की समस्या आ सकती है।
http://www.bhaskar.com/ news/ BIH-PAT-HMU-a-cow-dung-in-f ive-acres-of-paddy-cultiva tion-4982539-NOR.html
फसल की मिलेगी अधिक कीमत : हींग लगे न फिटकरी, रंग चढ़े चोखा। शून्य लागत पर प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों के लिए यह कहावत सच साबित हो रही है। बिना रासायनिक खाद व कीटनाशक के प्रयोग के सिर्फ गोबर व गोमूत्र के प्रयोग से अनाज व सब्जी का अधिक उत्पादन मिलने लगा है। अपने पास अगर एक गाय है, तो पांच एकड़ तक खेती के लिए खाद की चिंता नहीं रहेगी। बस गोबर और गुड़ से ही फसल लहलहाएगी। गुणवत्तापूर्ण अधिक उत्पादन भी मिलेगा।
पूर्ण प्राकृतिक खेती से फसल की कीमत भी अधिक मिलेगी। इस प्रकार से उगाई गई फसलों के सेवन से आप जहर खाने से बच जाएंगे। मिट्टी की उर्वरता भी बरकरार रहेगी। जीव-जंतु भी नष्ट नहीं होंगे। पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा और अपना स्वास्थ्य भी। धान की खेती के लिए तीन से चार बार गोबर, गोमूत्र, गुड़ व दाल के आटे का घोल छिड़काव कर बिना खाद के उपज ली जा सकती है। गेहूं, गन्ना, दलहन व सब्जी की खेती में भी यह प्रयोग उपयोगी है।
एक ग्राम गोबर में 300-500 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु : एक ग्राम गाय के गोबर में 300-500 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं। गाय के गोबर में गुड़ व अन्य पदार्थ डालकर किण्वन (फरमेंटेशन) से सूक्ष्म जीवाणु बढ़ाकर तैयार किया जीवामृत या घन जीवामृत जब खेत में पड़ता है, तो सूक्ष्म जीवाणु भूमि में उपलब्ध तत्वों से पौधों का भोजन निर्माण करते हैं।
ऐसे करें प्रयोग
बीजामृत बीज शोधन :
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5 किलो गोबर, 5 लीटर गोमूत्र, 50 ग्राम चूना, एक मुट्ठी मिट्टी, 20 लीटर पानी में मिला कर 24 घंटे रखें। दिन में दो बार लकड़ी से घोलें। इसे 100 किलो बीजों पर उपचार करें। छांव में सूखा कर बोएं।
जीवामृत :
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जीवामृत पौधों के लिए भोजन तैयार करते हैं। गोमूत्र 5 से 10 लीटर, गोबर 10 किलो, गुड़ एक से दो किलो, दलहन आटा एक से दो किलो, 100 ग्राम जीवाणु युक्त मिट्टी, 200 लीटर पानी मिलाकर ड्रम को जूट की बोरी से ढक कर छाया में रखें। सुबह-शाम डंडा से घड़ी की सूई की दिशा में घोलें। 48 घंटे बाद छान कर सात दिनों के अंदर प्रयोग करें। एक एकड़ में 200 लीटर जीवामृत पानी के साथ छिड़काव करना चाहिए। पहला छिड़काव बुआई के एक माह बाद एक एकड़ में 100 लीटर पानी 5 लीटर जीवामृत मिला कर। दूसरा 21 दिनों बाद एक एकड़ में 150 लीटर पानी व 10 लीटर जीवामृत मिला कर। तीसरा व चौथा छिड़काव 21-21 दिन बाद एक एकड़ में 200 लीटर पानी व 20 लीटर जीवामृत मिलाकर दें। आखिरी छिड़काव दाने की दूध की अवस्था में प्रति एकड़ में 200 लीटर पानी, 5-10 लीटर खट्टी छाछ मिला कर छिड़काव करना चाहिए।
घन जीवामृत
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गोबर 100 किलो, गुड़ एक किलो, दाल का आटा एक किलो, मिट्टी 100 ग्राम पांच लीटर गोमूत्र मिला कर 48 घंटे छाया में बोरी से ढककर रखें। इसके बाद छाया में ही फैलाकर सुखाएं। इसे छह माह तक प्रयोग कर सकते हैं। एक एकड़ में एक क्विंटल घन जीवामृत देना चाहिए।
बिहार में प्राकृतिक कृषि अभियान की कमेटी बनी है। इसके माध्यम से 9 मई को एकदिवसीय प्रशिक्षण पटना में होगा, जिसमें विभिन्न जिलों से किसानों को बुलाकर प्रशिक्षित किया जाएगा। जून में एक सप्ताह तक प्रत्येक प्रखंड से दो-दो किसानों को प्रशिक्षित किया जाएगा। इस तकनीक के प्रवर्तक सुभाष पालेकर किसानों को प्रशिक्षित करेंगे।
प्राकृतिक कृषि अभियान
यह विधि सफल है। छोटे पैमाने पर इस विधि से खेती तो हो सकती है, लेकिन बड़े पैमाने इस तकनीक के प्रयोग के लिए गोबर और गोमूत्र की उपलब्धता की समस्या आ सकती है।
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