परिवर्तन के पुरोधा - Pioneers of Revolution
किसी भी हिन्दू को गुरु तेग बहादुरजी का बलिदान नहीं भूलना चाहिए।
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नवंबर 11, 1675को औरंगजेब जब गुरु तेग बहादुरजी से इस्लाम कबूल नहीं करवाया पाया तो जल्लाद ने उनका धड़ अलग करवा दिया। और इससे पहिले गुरु का होंसला तोड़ने के लिए उन्हें बहुत कष्ट दिए गए। उनके सामने ही उनके सेवादारों भाई दयालाजी, भाई मतिदास और भाई सतीदास की बहुत यातनाएँ देकर निर्मम हत्या कर दी गयी थी। लेकिन फिर भी गुरु इस्लाम अपनाने के लिये नहीं माने। समस्त हिन्दू समाज की सांसे अटकी हुई थीं, क्योंकि अगर गुरु इस्लाम कबूल कर लेते तो फिर सब हिन्दुओं को मुस्लिम बनना होता। इसलिए गुरु ने तिलक और जनेऊ की रक्षा के लिए अपने जीवन को बलिदान कर दिया, लेकिन मुगलिया अत्याचार के सामने झुकने से साफ इंकार कर दिया।
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किसी भी हिन्दू को गुरु का बलिदान नही भूलना चाहिए। और अपने बच्चों को इतिहास से अवगत ज़रूर कराना चाहिए, जिससे उन्हें हिन्दू होने का गर्व हमेशा रहे।
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नवंबर 11, 1675को औरंगजेब जब गुरु तेग बहादुरजी से इस्लाम कबूल नहीं करवाया पाया तो जल्लाद ने उनका धड़ अलग करवा दिया। और इससे पहिले गुरु का होंसला तोड़ने के लिए उन्हें बहुत कष्ट दिए गए। उनके सामने ही उनके सेवादारों भाई दयालाजी, भाई मतिदास और भाई सतीदास की बहुत यातनाएँ देकर निर्मम हत्या कर दी गयी थी। लेकिन फिर भी गुरु इस्लाम अपनाने के लिये नहीं माने। समस्त हिन्दू समाज की सांसे अटकी हुई थीं, क्योंकि अगर गुरु इस्लाम कबूल कर लेते तो फिर सब हिन्दुओं को मुस्लिम बनना होता। इसलिए गुरु ने तिलक और जनेऊ की रक्षा के लिए अपने जीवन को बलिदान कर दिया, लेकिन मुगलिया अत्याचार के सामने झुकने से साफ इंकार कर दिया।
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किसी भी हिन्दू को गुरु का बलिदान नही भूलना चाहिए। और अपने बच्चों को इतिहास से अवगत ज़रूर कराना चाहिए, जिससे उन्हें हिन्दू होने का गर्व हमेशा रहे।
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