Thursday, 5 November 2015

पुलिस के लिए दौड़ते-दौड़ते बन गए तूफानी बॉलर....

 उमेश यादव , आज वे टीम इंडिया के पेस आक्रमण के मुखिया हैं। लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उमेश ने जो संघर्ष किया वह काबिले तारीफ है। उनको देखकर आज देश के कई किशोर खिलाड़ी तेज गेंदबाज बनने का सपना देख रहे हैं। उनके पिता कोयला खान में काम करते थे और वहां से अपनी जज्बे के बूते उमेश ने देश के सबसे सूखे प्रदेश विदर्भ को क्रिकेट के नक्शे पर स्थापित किया। इस साल खेले गए वर्ल्ड कप में वे टीम इंडिया की ओर से सबसे कामयाब गेंदबाज थे और टीम के सेमीफाइनल तक पहुंचने में उनका बड़ा योगदान था। इस बीच उमेश ने ऎसा समय भी देखा जब कुछ भी उनके पक्ष में नहीं हो रहा था। वे पुलिस में जाना चाहते थे लेकिन उनकी मंजिल क्रिकेट थी।
उमेश ने टेनिस बॉल से गेंद फेंकना शुरू किया और वे काफी तेज गति से बॉलिंग करते थे। उनके पिता कोयला खदान में काम करते थे और उमेश का बचपन खदान के पास बने घरों में ही बीता। गरीबी के चलते उमेश 12वीं पास करने के बाद वे काम की तलाश करने लगे। इसके चलते वे इससे आगे नहीं पढ़ पाए लेकिन उनके पिता नहीं चाहते थे उनका बेटा कोयला मजदूर बने। इसके बाद उमेश सरकारी नौकरी की तैयारी करने लगे। उन्हें फौज और पुलिस की भर्तियों में हिस्सा लिया लेकिन सफल नहीं हो पाए। इस दौरान वे छोटे-मोटे क्रिकेट टूर्नामेंट खेलते थे और टीम के जीतने या मैन ऑफ द मैच चुने जाने पर उन्हें 8 से 10 हजार रूपये मिलते थे जो महीने-दो महीने चलते थे। अपने एक दोस्त के कहने पर वे लैदर बॉल से खेलने लगे।
बिना स्पाइक के जूतों के मैच खेला और तीन विकेट लिए
क्लब क्रिकेट न खेल पाने की वजह से उन्हें कॉलेज टीम में जगह न मिली इसके चलते उन्होंने विदर्भ जिमखाना ज्वॉइन कर लिया। पहले ही मैच में उन्होंने बिना स्पाइक के जूतों के मैच खेला और तीन विकेट लिए। जिमखाना के लिए उन्होंने जबरदस्त प्रदर्शन किया जिसके चलते उनका नाम विदर्भ रणजी टीम के लिए लिया जाने लगा। लैदर बॉल से खेलने के कुछ ही महीनों में उन्हें विदर्भ टीम में जगह मिल गई। विदर्भ के लिए खेलने के बाद उन्हें दलीप ट्रॉफी के लिए सेंट्रल जोन की टीम में चुना गया। इस मैच में उन्होंने राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण समेत पांच विकेट लिए।
2008 में दिल्ली डेयरडेविल्स की टीम ने उनको दो करोड़ में खरीदा। 2010 में उमेश ने वनडे में डेब्यू किया और अगले ही साल उन्हें टेस्ट खेलने का मौक मिला। विदर्भ की ओर से टीम इंडिया में खेलने वाले वे खिलाड़ी हैं। पुलिस में ना जाने के बारे में वे बताते हैं कि मैं केवल दो नंबर से पुलिस कांस्टेबल नहीं बन पाया। एक तरह से तो अच्छा ही हुआ। 2012 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर उन्होंने 153 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गेंद डाली थी। इस साल वर्ल्ड कप में उन्होंने अपनी पेस और बाउंस के बूते 18 विकेट निकाले और टीम को सेमीफाइनल तक पहुंचाया।

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