Thursday, 5 November 2015

"दादी, आप कृष्ण सुदामा और उनकी मित्रता की कहानी पचासों बार सुना चुकी हो। आप मुझे आज ये सुनाओ कि भगवान श्रीकृष्ण अगर सबकुछ जानते थे तो सुदामा की जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी में कैसे गुजरा?"


"ये बड़ा अच्छा सवाल पूछा संजू तूने। चल आज वो ही कहानी सुनाती हूँ।"


"हाँ, दादी सुनाओ।"


"एक बात हमेशा याद रखना बेटा "मिल बाँट कर खाना, बैकुंठ में जाना।"


"मतलब?"


"अगर तुम्हारे पास कोई खाने की चीज हो तो कभी अकेले अकेले मत खाना।"


"अच्छा, ऐसा क्यों? मैं तो चॉकलेट अकेला ही खा जाता हूँ, हाँ राजू भैया हमेशा मेरे लिए बचा कर रखते हैं।"


"अपने विद्यार्थी जीवन में कृष्ण और सुदामा को उनके गुरु संदीपनी मुनि की पत्नी ने जंगल में समिधा चुनने भेजा था।"


"ये 'समिधा' क्या होता हैं?"


"अरे, तुझे समिधा नहीं मालूम? तेरे दादाजी जब हवन करते हैं ना, उसमें अग्नि प्रज्वलित करने के लिए जो छोटी छोटी लकड़ियाँ रखी जाती है ना, उसको समिधा कहते हैं।"


"अच्छा, और हाँ मन्त्र बोलने के बाद 'स्वाहा' बोलते समय हवन कुण्ड में घीं और हवन सामग्री डाली जाती है। ये मालूम था मुझे। किन्तु 'समिधा' नहीं मालूम था। आगे सुनाओ दादी।"


"(हंसकर) तो कृष्ण और सुदामा दोनों जंगल की तरफ समिधा चुनने के लिए चल दिए। गुरु माता ने रास्ते में खाने के लिए गुड़ और चने सुदामा को दिए। सुदामा ने अपनी धोती के बगल में एक कपडे में बाँध कर रख लिए। कृष्ण उस समय अपनी बांसुरी लेने के लिए कुटिया में गए हुए थे।"


"फिर क्या हुआ?"


"जंगल में समिधा इकट्ठी कर लेने के बाद जैसे ही वापस चलने लिए दोनों दोस्त सोचने लगे कि एकाएक बहुत तेज मूसलाधार वर्षा शुरू हो गई। दोनों बारिश से बचने के लिए एक वृक्ष पर चढ़ गए। बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। धीरे धीरे रात हो गई, अमावस्या की रात होने की वजह से कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था। दोनों दोस्त आपस में बातें करने लगे। भविष्य की योजनाएं बनाने लगे। बातें करते करते ही कृष्ण ने अपनी बांसुरी निकाली और बजाने लगे।"


"उनको भूख नहीं लगी?"


" अरे वो ही बता रही हूँ। कृष्ण जब बांसुरी बजाने में मगन थे, सुदामा को होशियारी सूझी। सुदामा ने सोचा कि चने और गुड़ तो बहुत थोड़े हैं. कृष्ण को दूंगा तो मैं भूखा रह जाऊँगा। उन्होंने धीरे से वो छोटी सी पोटली खोली और उसमें से गुड चने निकाल कर चुपचाप खाने लगे।"


"अच्छा, अकेले ही अकेले खाने लगे। जैसे मैं चॉकलेट अकेला खा जाता हूँ। कृष्ण कुछ बोले नहीं?"


"हाँ, चने खाने की 'कड़ड़ कड़ड़' की आवाज आने लगी तो कृष्ण ने बांसुरी बजाना छोड़ सवाल पूछा - ' क्या खा रहे हो सुदामा?' "


" चोरी पकड़ा गई तो सुदामा ने क्या जवाब दिया दादी? कृष्ण भी तो अपने बालापन में माखन चोरी करते थे।"


"किन्तु कृष्ण अपने दोस्तों के साथ माखन मिल बाँट कर खाते थे। सुदामा अपने दोस्त को छोड़ कर अकेले ही गुड़ चना खा रहे थे। रात को भूख तो दोनों को ही लगी थी। यहां सुदामा गलती कर गए। "
"अच्छा अच्छा ठीक है, फिर आगे क्या हुआ? सुदामा बोले क्या?"


"संजू, तू बीच बीच में बहुत बोलता है। अब बोलेगा तो कहानी अधूरी छोड़ दूंगी।"


" अरे अब नहीं बोलूंगा यार दादी, आप भी ना बच्चे की जरा सी बात पर गुस्सा होने लगते हो।"


"(मुस्कुराकर) कहानी सुनाने की लय बिगड़ने लगती है बेटा।"


"अब नहीं बोलूंगा, कान पकड़ता हूँ। "


"हाँ तो सुदामा ने कह दिया - ' कुछ नहीं कृष्णा, मुझे ठण्ड लग रही है ना, इसलिए मेरे दांत बज रहे हैं।' कृष्ण मुस्कुराकर वापस अपनी बांसुरी बजाने में मगन हो गए। इस तरह सुदामा ने अपना अकेले का पेट भर लिया और कृष्ण भूखे रह गए। उसके पहले कृष्ण कभी भूखे नहीं रहे थे।"


"फिर?"


"सुबह जब बारिश थमी तो दोनों वापस आश्रम आ गए, बात आई गई हो गई। पढ़ाई पूरी करने के बाद सभी विद्यार्थी अपने अपने घर चले गए। श्रीकृष्ण तो राजा बन गए और सुदामा अपने गाँव आ गए।"


"उनकी दोनों की आपस में फिर बरसों बरस बात नहीं हुई ना । भूख और गरीबी से तंग आकर सुदामा अपनी पत्नी की सलाह पर अपने बच्चों का ख़याल करके कृष्ण से मिलने गए थे। इतनी कहानी सुनाई तो आगे भी सूना ही दो दादी।"


"हाँ, सुदामा की पत्नी ने कहा - 'कभी भी किसी के घर खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।' इसलिए एक छोटी सी पोटली में तांदुल(चावल के टुकड़े) बांधकर कृष्ण के लिए उपहार स्वरुप भेजा।"
"द्वारकाधीश श्री कृष्ण भगवान ने सुदामा का बहुत स्वागत किया। मेरी स्कूल की किताब में भी कवि नरोत्तमदास की चार लाइन पढ़ी है। सुनाऊँ दादी।"


"हाँ सुना दे। बिना सुनाये कौन सा मान जाएगा मेरा संजू बेटा?"


"देख सुदामा की दीन दशा, करुणा कर के करूणानिधि रोये, पानी परात को हाथ छुयो नहीं, नैनन के जल से पग धोये।"


"हाँ संजू, अतिथि सत्कार भी कृष्ण ने दुनिया को सिखाया है। 'अतिथि देवो भवः' कृष्ण (जो उस समय अपनी रानी के साथ स्वर्ण राजमहल में झूला झूल रहे थे) ने जैसे ही सुना कि कोई सुदामा नाम का गरीब ब्राह्मण आपसे मिलने आया है, दौड़ लगाते हुए महल के द्वार तक सुदामा को लेने स्वयं पहुंचे। बरसों बाद अपने मित्र से मिलकर उसकी दीन (गरीब) और दयनीय दशा देखकर उनकी आँखों में इतने आंसू आये कि सुदामा के पैर धुलाने के लिए लाये गए परात के पानी को हाथ भी लगाने की जरुरत नहीं पड़ी, कृष्ण ने अपने आंसुओं से ही सुदामा के पैर धो दिए।"


"फिर तांदुल निकालने में सुदामा को शर्म आने लगी।"


"राजा कृष्ण का ये वैभव देख सुदामा शर्माने लगे और तांदुल की पोटली छुपाने लगे।"


"कृष्ण भगवान समझ गए थे।"


"कृष्ण तो सब समझते हैं बेटा, वो उस रात जंगल में भी समझ गए थे। उन्होंने कहा - 'अच्छा सुदामा, छुपाने की आदत गई नहीं तुम्हारी, उस रात गुड़ चना छुपाया था, आज फिर कुछ छुपा रहे हो? अब तो मुझे छीन कर ही खाना होगा।' हा हा हा।"


". . . . और इस तरह कृष्ण भगवान एक एक करके दो मुट्ठी तांदुल कच्चे ही चबा गए।"


"हाँ, सुदामा के गाँव में उनकी झोपड़ी के स्थान पर सोने का महल बन गया और सुदामा को धन वैभव, सुख सम्पदा सब मिल गई। पत्नी बच्चे सब प्रसन्न रहने लगे।धन सम्पदा सुख समृद्धि वैभव आ जाने के बाद भी सुदामा अपनी पूरी जिंदगी कृष्ण भक्ति में ही लीन रहे। उन्हें गर्व रहा तो सिर्फ इस बात का - 'श्रीकृष्ण मेरा यार है।' "


"वाह दादी मजा आ गया।"


"भगवान भाव के भूखे होते हैं। इन चार बातों का हमेशा ख़याल रखना।


१."मिल बाँट कर खाना, बैकुंठ में जाना। जो अकेला खाता है वो दरिद्र रह जाता है, इसलिए दरिद्र नारायण की सेवा अपने साम्यर्थ के अनुसार करने के लिए हमेशा तैयार रहना।


२. कभी किसी के घर खाली हाथ नहीं जाना।


३. भाव सच्चे हो तो भगवान से कुछ मांगने की जरुरत नहीं होती। श्रीकृष्णा सब जानते हैं कि कब, किसको, कितना देना है।"


४. अतिथि देवो भवः।"


"मैं ध्यान रखूंगा दादी।"

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