Saturday, 14 November 2015

 
.सन 1705 .गुरु गोविन्द सिंह के बड़े दो पुत्र तो चमकौर के युद्ध में शहीद हो गए थे. और दो छोटे पुत्र जोरावर सिंह (आयु 8 साल) और फतह सिंह (आयु 5 साल) जब अपनी दादी के साथ सिरसा नदी पार कर रहे तो अपने लोगों से बिछड़ गए थे. जिनको मुसलमान सूबेदार वजीर खान ने ठन्डे बुर्ज में सरहिंद में कैद कर लिया था. |
वजीर खान ने पहिले तो बच्चों को इस्लाम काबुल करने के लिए लालच दिया. जब बच्चे नहीं माने तो मौत की धमकी भी दी. लेकिन बच्चों ने कहा कि, "हमारे दादा जी ने धर्म कि रक्षा के लिए Delhi में अपना सर कटवा लिया था. हम मुसलमान कैसे बन सकते हैं? हम तेरे इस्लाम पर थूकते हैं."(गुरु तेगबहादुर ने 1675 में हिन्दू धर्म कि रक्षा के लिए अपना सर कटवा लिया था)
बच्चों का जवाब सुनकर वजीर खान आग बबूला हो गया. उसने दौनों बच्चों को एक दीवाल में जिन्दा चिनवाने का आदेश दे दिया. और उन्हें शहीद कर दिया. जब गुरू गोविन्द सिंह को बच्चों के दीवाल में चिनवाए जाने की खबर मिली तो वह हताश नहीं हुए. गुरुजी चाहते थे कि लोग अपनी कायरता को त्याग करके निर्भय होकर अत्याचारी मुगलों का मुकाबला करें. तभी धर्म कि रक्षा हो सकेगी. इसके लिए गुरूजी ने अस्त्र -शस्त्र की उपासना की रीति चलाई. 
(देश के गद्दारो ने राष्ट्रीय बाल दिन अपने नाम पर हाई-जेक कर लिया.. असली बाल दिन तो ये चार बच्चो के नाम पर ही रहेगा ..!!)

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