Friday, 13 November 2015

टीपू सुल्तान को अगर स्थानीय समाज के लोग अत्याचारी, असहिष्णु, धर्मद्रोही, हिन्दू विरोधी मानते हैं तो क्या वहां की सरकार को उनकी बातें नहीं सुननी चाहिये? सिद्धरमैया जिद्द क्यों और किसके लिये कर रहे हैं? टीपू की जयंती से किसको आनंद मिलेगा?
लोकतांत्रिक सरकार को उनकी बातें भी सुनना चहिये जिनके साथ अन्याय हुआ, जिन्हें पंथ आधार पर अत्याचार सहना पडा। अगर वे अत्याचारी की जयंती नहीं मनाना चाहते हैं तो सरकार को क्या पडी है! विकास के नाम पर किसी भी पूजा स्थल को तोडने की सरकार या संघ की दलील को ठीक से समझने की जरूरत है। पूजा स्थल अगर बाधक है तो उसे हटाने के लिये समाज से चर्चा, सहमति और सहयोग भी आवश्य है, टीपू ने मन्दिरें तोडी, क्या उसी तरह मस्जिदें भी तोडी? तोडने-तुडवाने के पहले किसी से बात भी की?
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देश भर मे ४४ पर सीमटने वाली कांग्रेस का टीपू सुल्तान जयंती मनाना षडयंत्र है ईसके पहले कभी नही मनायी अभी मना रहे हो..






 
*करोडो में पहुँचाया मिटटी कारोबार*
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मनसुख भाई,गुजरात के एक कुम्हार परिवार से है।प्रारंभिकजीवन बेहद गरीबी में गुजरा।माँ-बाप जो भी मिट्टी के बर्तन बनाते थे,आप उन्हें मेलो में बेचा करते थे।कई बार आपने कोई अन्य पेशा अपनाने की सोची लेकिन हर बार यह सोच कर रह जाते कि पुरखो का पेशा है।आगे बढने की लालसा में थी ही,लिहाजा मिटटी में ही कुछ नये प्रयोग करने लगे।सबसे पहले आपने मिटटी का तवा बनाया जो पांच रुपये का बिकता था,शुरू में केवल लागत निकल पाती थी,लेकिन आपने हिम्मत नही हारी।धीरे धीरे तवालोकप्रिय होने लगा,आपकी रचनात्मकता भी खत्म नही हुई।मिट्टी के फ्रिज,वाटर कूलर,यहाँ तक कि ठन्डे रहने वाले घर।आज आपका कारोबार पांच सौ करोड का है,।
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