Wednesday, 6 January 2016

प्रकाश नारायण सिंह, कंटेंट एडिटर एबीपी न्यूज
धर्म के नाम पर वैमनस्यए है, हिंसा है, खून खराबा है, मौत है, धंधा है, सियासी मुनाफों से लेकर तेल के खेल तक. फिलहाल मेरी आंखें यही तो देख रही हैं. पता नहीं आपकी आंखें ‘हीरो’ और ‘विलेन’ को कैसे तलाश रही हैं? 
फ्रांस की राजधानी पेरिस में आतंकी हमले के बराक ओबामा ने मुस्लिम समुदाय से कहा वे अपने बच्चों को कट्टरपंथ की जद में आने से बचाएं. ओबामा ने कहा कि मुस्लिमों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके बच्चे इस्लामिक स्टेट का शिकार न बनें. मुस्लिम समुदाय की ओर से कट्टरता का जितना विरोध होना चाहिए उतना नहीं हो रहा है. मैं इस बयान का समर्थन करता हूं. पता नहीं इस्लाम में सुधार के लिए उठनी वालीं आवाजें इतनी कमजोर क्यों हैं? मुझे समझ नहीं आता ये सैकड़ों साल पुराने रीति रिवाज में सुधार से क्यों बचते हैं? इस्लाम में भी कुरीतियां हैं उसमें भी सुधार होना चाहिए इसके लिए कोई आंदोलन क्यों नहीं होता? हो सकता है मेरी जानकारी कमजोर हो..!

मेरे एक उदारवादी दोस्त ने उम्दा सवाल उठाया कि जो आईएस करता है या तालिबान करता है वह इस्लाम नहीं हो सकता. लेकिन जो शरिया के नाम पर सऊदी अरब में होता है वह इस्लाम है या नहीं? सउदी अरब में जो शरिया प्रैक्टिस हो रहा है वह ऑरिजिनल है या उसमें छेड़छाड़ किया गया है? खैर.. सोचिएगा जरूर. कुछ तो रांग नंबर लग रहा है जनाब. आप सोचेंगे कि इराक, ईरान, सीरिया, सऊदी, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से हमें क्या? तो जरा इधर ध्यान दीजिए…

पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में रविवार को मुस्लिम रैली में हिंसा भड़क उठी. यह रैली हिंदू महासभा के नेता कमलेश तिवारी के पैगंबर मोहम्मद के बारे में की गई कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के विरोध में निकाली गई थी. रैली में दो लाख से अधिक मुसलमान शामिल हुए. हिंसक भीड़ ने करीब दो दर्जन गाड़ियों में आग लगा दी. इसके अलावा मालदा जिले के कालियाचक पुलिस स्टेरशन पर हमला भी किया गया. ये लोग तिवारी की फांसी की मांग कर रहे हैं. 
अभी कुछ दिनों पहले यूपी में हजारों की संख्या में.. भोपाल, राजस्थान से लेकर बिहार तक के कई हिस्सों में प्रदर्शन का ऐसा ही झंडा बुलंद किया गया. अरे भई.. यूपी सरकार ने कानून के मुताबिक कमलेश तिवारी को तुरंत गिरफ्तार किया जो अधिकतम कानून सम्मत कार्रवाई हो सकती है, उसे किया गया है. वह जेल में है.. फिर सर कलम करने वालों को लाखों का ईनाम घोषणा देने का ऐलान करने वाले मौलानाओं को उदारवादी क्यों नहीं रोक रहे हैं. ऐसे प्रदर्शन की असली वजह क्या है? क्या यह देश अब ईशनिंदा के लिए सर कलम करने का कानून लाए?

विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों से सिर्फ एक सवाल. खुदा को खतरा कमलेश तिवारी के पोस्ट से है तो क्या अब आप आईएसआईएस या तालिबान की तरह बचाएंगे? क्या इस्लामिक देशों में अब खुदा महफूज है.. क्यों खतरा तो ठेकेदार वहां भी बरकरार बता रहे हैं.. और खून की नदियां लगातार बहा रहे हैं. यह न्याय नहीं, बदला मांगती भीड़ है.

मुझे इस मामले में भी उतना ही भयावह अनुभव हुआ है जितना शार्ली एब्दों के बाद कुछ मित्रों को हुआ था. अभी उसका खून मांग रहे दोस्तों को बता दूं कि ये खून का खेल बहुत खतरनाक है. देश को फिर 1992… 2002… 1984 के दौर में ना ले जाओ.. 1947 का जख्म भले ही भूल गए लेकिन 1991-92 में हमें रथ के पहियों से खुदी खून की नहरें याद हैं. धर्म के ठेकेदारों को हीरो और विलेन भी ना बनाओं क्योंकि इससे विधवा आपकी बहन होगी, गोद सुनी आपकी और हमारी मां की होगी, माथे की बिंदी आपकी और हमारी पत्नी की उतरेगी। मेंहदी वाले हाथों को प्रेम से चूमें ना कि मजहब के नाम पर मेंहदी ही उतार दें..!

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