Thursday, 7 September 2017


 *सब्जी वाला* 🍅
बन्टी और बबली की शादी तो हो चुकी थी, पर दोनों में बन नहीं रही थी,पंडित जी ने पूरे 1100 रुपये लेकर कुंडली के 36 गुण मिलाए थे।
लेकिन यँहा तो शादी के एक साल बाद ही चिकचिक शुरू हो गई थी।
बबली अपने ससुराल वालों के उन अवगुणों का भी पोस्टमार्टम कर लेती थी, जिन्हें कोई और देख ही नहीं पाता था।
लगता था कि अब तलाक, और अब तलाक। पूरा घर तबाह होता नज़र आ रहा था।
बन्टी के मम्मी पापा ही नहीं बबली के मम्मी पापा भी बुरी तरह परेशान थे।
सभी ने कोशिश कर ली कि किसी तरह यह रिश्ता बच जाए, दो परिवार तबाही के दंश से बच जाएं, पर सारी कोशिशें व्यर्थ थीं।
जो भी घर आता,
बबली बन्टी और उसके घरवालों की ढेरों खामियां गिनाती और कहती कि उनके साथ रहना असम्भव है।
अब तो एक प्यारा सा बच्चा भी हो गया था।
लेकिन बबली और बन्टी दोनों एक दूसरे से दूर होते जा रहे थे।
यदि बच्चा नहीं हुआ होता तो अब तक तलाक हो ही जाना था।
उनके कटु रिश्तों की यह कहानी पूरे मुहल्ले में चर्चा का विषय बनी हुई थी।
ऐसे में एक दिन एक आदमी सब्जी बेचता हुआ उनके दरवाज़े पर आया।
बबली घर पर अकेली थी।बन्टी ऑफिस से आया ही नहीं था जबकि मुन्ना अपने दादा दादी के साथ पड़ौस के पार्क में गया हुआ था।
उस दिन घर में सब्जी थी भी नहीं।
सब्ज़ी वाले की आवाज़ सुनकर बबली बाहर आई और बोली,“अरे सब्जी वाले भैया! तुम्हारे पास क्या-क्या सब्जियां हैं?”
“बहन!मेरे पास आलू, बैंगन, टमाटर, भिंडी और गोभी है।”
“जरा दिखाओ तो सब्जियां कैसी हैं?
सब्जी वाले ने सब्जी की टोकरी नीचे रखी।
बबली टमाटर देखने लगी।
सब्जी वाले ने कहा, “बहन आप टमाटर मत लो। इस टोकरी में जो टमाटर हैं, उनमें दो चार खराब हो चुके हैं। आप आलू ले लो।”
“अरे, चाहिए टमाटर तो आलू क्यों ले लूं? तुम टमाटर इधर लाओ, मैं उनमें से जो ठीक हैं उन्हें छांट कर ले लूंगी।”
सब्जी वाले ने टमाटर आगे कर दिए।
बबली खराब टमाटरों को किनारे करने लगी और अच्छे टमाटर उठाने लगी। दो किलो टमाटर हो गया।
फिर उसने भिंडी उठाई।
सब्जी वाला फिर बोला, “बहन, भिंडी भी आपके काम की नहीं। इसमें भी कुछ भिंडी खराब हैं। आप आलू ले लीजिए। वो ठीक हैं।”
“बड़े कमाल के सब्जी वाले हो तुम। तुम बार-बार कह रहे हो आलू ले लो, आलू ले लो। भिंडी, टमाटर किसके लिए हैं? मेरे लिए नहीं है क्या?”
“मैं सारी सब्जियां बेचता हूं। पर बहन,आपको टमाटर और भिंडी ही पसन्द हैं मुझे पता है कि मेरी टोकरी में कुछ टमाटर और कुछ भिंडी खराब हैं, इसीलिए मैंने आपको मना किया। और कोई बात नहीं।”
“पर मैं तो अपने हिसाब से अच्छे टमाटर और भिंडियां छांट सकती हूं। जो ख़राब हैं, उन्हें छोड़ दूंगी। मुझे अच्छी सब्जियों की पहचान है।”
“बहुत खूब बहन। आप अच्छे टमाटर चुनना जानती हैं। अच्छी भिंडियां चुनना भी जानती हैं। आपने ख़राब टमाटरों को किनारे कर दिया। ख़राब भिंडियां भी छांट कर हटा दीं।'
*"पर आप अपने रिश्तों में एक अच्छाई नहीं ढूंढ पा रहीं। आपको उनमें सिर्फ बुराइयां ही बुराइयां नज़र आती हैं।"*
बहन, जैसे आपने टमाटर छांट लिए, भिंडी छांट ली, वैसे ही *रिश्तों से अच्छाई को छांटना सीखिए।* जैसे मेरी टोकरी में कुछ टमाटर ख़राब थे, कुछ भिंडी खराब थीं पर आपने अपने काम लायक छांट लिए, वैसे ही हर आदमी में कुछ न कुछ अच्छाई होती है। उन्हें छांटना आता, तो आज मुहल्ले भर में आपके ख़राब रिश्तों की चर्चा न चल रही होती।”
सब्जी वाला तो चला गया.. पर उस दिन महिला ने *रिश्तों को परखने की विद्या* सीख ली थी।
उस शाम घर में बहुत अच्छी सब्जी बनी। सबने खाई और कहा, *बहू हो तो ऐसी* हो।
मित्रों ऐसा अक्सर होता है न?हम किसी इंसान से उसके किसी एक दोष के कारण घृणा करने लगते हैं जबकि हम जानते हैं कि यह व्यक्ति भला है।
मित्रों *हम अपने दोस्तों सम्बन्धियों के दोषों को ignore करते हुए केवल गुणों को ग्रहण करें तो सम्भवतया हमारे शब्दकोश से घृणा नफरत जैसे शब्द सदा के लिए गायब हो जाएंगे।*
आपश्री की आरोग्यता एवम प्रसन्नता की कामना के साथ........
कुमार अवधेश सिंह

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