Saturday, 16 September 2017

"चेखव" ने एक कहानी लिखी थी।
एक गांव में एक आदमी इतना "मूर्ख" था, इतना मूढ़ था कि सारा गांव यही मानता था कि अगर कभी पूरे संसार मूर्खो की प्रतिस्पर्धा होगी तो यह आदमी ही प्रथम आएगा।
वह स्वयं भी आश्वस्त था कि वह "महामूर्ख" है। इसीलिये वह लोगों के बीच बात करने से भी डरता था! लोग उसका मुंह खुलते ही बोलते थे, "क्या मूर्खों वाली बात कर दी"!!
बेचारे मुर्खराज बड़े उदास होकर, एक फकीर के पास गए और उनसे पूछा "मैं क्या करूँ?? मैं ऐसा प्रसिद्ध मूर्ख हूं कि मैं कहीं भी एक शब्द नहीं बोल पाता। कुछ बोलते ही लोग चुप करा देते हैं और कहते हैं, "क्या मूर्खता कर रहा है बीच में मत बोला कर, चुप रहा कर!! इस तरह मुझे चुप करा देते हैं।"
फकीर ने कहा, "तुम एक काम करो, आज से किसी भी बात के लिए हां मत कहना। जो भी तुम देखो, उसकी 'निंदा' करना।"
उस मूर्ख ने कहा, "लेकिन वे लोग मेरी सुनेंगे ही नहीं।"
फकीर ने कहा, "तुम इस बात की चिंता ही मत करो। यदि वे कहें कि यह चित्र बड़ा सुंदर है। तो तुम कहना, यह चित्र और सुंदर?? इससे ज्यादा असुंदर चित्र पहले कभी नहीं देखा। यदि वे कहें ये उपन्यास बड़ा मौलिक है। तो तुम कहना, यह सिर्फ पुनरुक्ति है। हजारों बार यही कहानी लिखी जा चुकी है। इसे सिद्ध करने की कोशिश मत करना। सिर्फ हर चीज को इंकार करना, यही आधारभूत दर्शन बना लो। यदि कोई कहे, ये रात बड़ी सुंदर है, चांद बड़ा सुंदर है तो तुम कहना, इसको तुम सुंदरता कहते हो?? वे इसका खण्डन नहीं कर पायेंगे। याद रखना, वे खण्डन को प्रमाणित नहीं कर सकते!!!"
वह आदमी लौट कर वापस गांव गया। उसने हर बात के लिए ना' कहना शुरू कर दिया। एक सप्ताह, में गांव में खबर फैल गई!!
"हम लोग बहुत गलत थे। वह आदमी तो मूर्ख नहीं है। वह तो बड़ा भारी आलोचक है। वह तो प्रतिभावान व्यक्ति है।"
'ना' कहने के लिए किसी "बुद्धिमत्ता" की जरूरत नहीं है।
यदि आप महान प्रतिभाशाली कन्हैया कुमार, उमर खालिद, बुरखा दत्त, रविश कुमार, केजरीवाल या ऐसे ही कामरेड, कम्युनिस्ट, वामी, कांगी .. जैसा बनना चाहते हैं। तो केवल हिंदू धर्म का विरोध करिये, इंकार करिए, "आलोचक" बन जाइए।
किसी भी बात के लिए "हां" कहने की सोचा ही मत करिए।जो कुछ भी कोई "दूसरा" कहे, उसे पूरी तरह से नकार दीजिए।
कोई भी इस बात के विरुद्ध साबित नहीं कर सकता, क्योंकि किसी बात को साबित करना बड़ा कठिन है।
नकार देना सबसे सरल युक्ति है।

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