सख्त चेतावनी के बाद हरकत में आई ऑटो इंडस्ट्री, इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर तैयारी तेज
नई दिल्ली. भारत सरकार ने 2030 तक भारत के सभी नये वाहनों को इलेक्ट्रिक बेस्ड बनाने का लक्ष्य रखा है। इसके चलते आॅटो पार्ट निर्माता और कार निर्माता कंपनियों ने भी अपनी योजनाओं को लेकर तैयारी शुरू कर दी है। सरकारी अधिकारी के मुताबिक, नई आॅटो पॉलिसी प्रक्रिया में है और इसके तहत भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए रोडमैप तैयार किया जाएगा। इस पॉलिसी को 2017 खत्म होने से पहले सार्वजनिक किया जा सकता है।
आॅटो इंडस्ट्री के डेटा पर नजर डालें तो भारत दुनिया का तेजी से उभरता हुआ कार बाजार है। एक वित्त वर्ष में यहां तकरीबन 30 लाख पेट्रोल और डीजल कारें बिक जाती हैं, जिनके मुकाबले इलेक्ट्रिक कारों की सेल्स न के बराबर है। महिंद्रा ऐंड महिंद्रा भारत में एकमात्र आॅटो कंपनी है जो कि इलेक्ट्रिक कार देश में बनाती है। आगामी कुछ वर्षों में टाटा मोटर्स भी इलेक्ट्रिक कारों का निर्माण शुरू कर सकती है।
इंजन मेकर कंपनी कमिन्स इंडिया भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के सल्यूशन पर शोध के लिए निवेश कर रही है। वहीं ह्यूंदै मोटर कंपनी ने भी तैयारी शुरू कर दी है। पिछले साल एक इलेक्ट्रिक बस लॉन्च करने वाली कंपनी अशोक लेलंड ने भारतीय स्टार्ट अप, सन मोबिलिटी के साथ पार्टनरशिप की है तकि बसों, कारों और ट्रक्स के लिए बैटरी स्वैपिंग तकनीक को विकसित किया जा सके।
कमिन्स इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर अनंत तलाउलिकार के मुताबिक, ''हम पहले इलेक्ट्रिक कारों में इस्तेमाल होने वाली तकनीक का अध्ययन करेंगे। तकनीक के तेजी से विस्तार के लिए हम आॅटो कंपनियों से पार्टनरशिप करने के लिए तैयार हैं''
भारत में इलेक्ट्रिक वाहन इसलिए भी महंगे हैं क्योंकि भारत में बैटरीज की कीमत काफी ज्यादा है। इन्हें भारत में नहीं बनाया जा रहा है। कारमेकर कंपनियों के मुताबिक, भारत में चार्जिंग स्टेशनों की कमी के चलते भी यहां इलेक्ट्रिक वाहनों के सपने को मूर्त रूप दे पाने में आसानी नहीं हो रही है। इसके बावजूद भारत सरकार किसी भी तरीके से भारतीय आॅटो इंडस्ट्री को पूरी तरह से इलेक्ट्रिक बनाने पर कायम है।
इसी संदर्भ में सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने गुरुवार को आॅटो कंपनियों को सख्त चेतावनी भी दी थी। उन्होंने कहा था कि कंपनियां इलेक्ट्रिक और अन्य वैकल्पिक ईंधन चलित वाहनों पर आधारित वाहन बनाएं वर्ना आॅटो नीति के चलते उन्हें परिणाम भुगतने होंगे।
नई दिल्ली. भारत सरकार ने 2030 तक भारत के सभी नये वाहनों को इलेक्ट्रिक बेस्ड बनाने का लक्ष्य रखा है। इसके चलते आॅटो पार्ट निर्माता और कार निर्माता कंपनियों ने भी अपनी योजनाओं को लेकर तैयारी शुरू कर दी है। सरकारी अधिकारी के मुताबिक, नई आॅटो पॉलिसी प्रक्रिया में है और इसके तहत भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए रोडमैप तैयार किया जाएगा। इस पॉलिसी को 2017 खत्म होने से पहले सार्वजनिक किया जा सकता है।
आॅटो इंडस्ट्री के डेटा पर नजर डालें तो भारत दुनिया का तेजी से उभरता हुआ कार बाजार है। एक वित्त वर्ष में यहां तकरीबन 30 लाख पेट्रोल और डीजल कारें बिक जाती हैं, जिनके मुकाबले इलेक्ट्रिक कारों की सेल्स न के बराबर है। महिंद्रा ऐंड महिंद्रा भारत में एकमात्र आॅटो कंपनी है जो कि इलेक्ट्रिक कार देश में बनाती है। आगामी कुछ वर्षों में टाटा मोटर्स भी इलेक्ट्रिक कारों का निर्माण शुरू कर सकती है।
इंजन मेकर कंपनी कमिन्स इंडिया भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के सल्यूशन पर शोध के लिए निवेश कर रही है। वहीं ह्यूंदै मोटर कंपनी ने भी तैयारी शुरू कर दी है। पिछले साल एक इलेक्ट्रिक बस लॉन्च करने वाली कंपनी अशोक लेलंड ने भारतीय स्टार्ट अप, सन मोबिलिटी के साथ पार्टनरशिप की है तकि बसों, कारों और ट्रक्स के लिए बैटरी स्वैपिंग तकनीक को विकसित किया जा सके।
कमिन्स इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर अनंत तलाउलिकार के मुताबिक, ''हम पहले इलेक्ट्रिक कारों में इस्तेमाल होने वाली तकनीक का अध्ययन करेंगे। तकनीक के तेजी से विस्तार के लिए हम आॅटो कंपनियों से पार्टनरशिप करने के लिए तैयार हैं''
भारत में इलेक्ट्रिक वाहन इसलिए भी महंगे हैं क्योंकि भारत में बैटरीज की कीमत काफी ज्यादा है। इन्हें भारत में नहीं बनाया जा रहा है। कारमेकर कंपनियों के मुताबिक, भारत में चार्जिंग स्टेशनों की कमी के चलते भी यहां इलेक्ट्रिक वाहनों के सपने को मूर्त रूप दे पाने में आसानी नहीं हो रही है। इसके बावजूद भारत सरकार किसी भी तरीके से भारतीय आॅटो इंडस्ट्री को पूरी तरह से इलेक्ट्रिक बनाने पर कायम है।
इसी संदर्भ में सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने गुरुवार को आॅटो कंपनियों को सख्त चेतावनी भी दी थी। उन्होंने कहा था कि कंपनियां इलेक्ट्रिक और अन्य वैकल्पिक ईंधन चलित वाहनों पर आधारित वाहन बनाएं वर्ना आॅटो नीति के चलते उन्हें परिणाम भुगतने होंगे।
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