.क्या हम ही शरणार्थी...?
एक गांव में गायों का एक अच्छा खासा तबेला था। वहां सभी गायें सुख चैन से रहती और दूध देती रहती थी।
☆एक दिन बहुत जोरों की बारीश होने लगी और उसी बारीश कि रात में एक भीगता हुआ "कुत्ता" तबेले के बाहर आया। कुत्ता ने एक गाय से पुछा,
"मांजी, हम भीगे-भूखे हैं, तोहार तबेला में शरण के लिए आ जाए का??? एक कोना में पडल रहेंगे। देख ना, बाहर कितनी जोरों से बारिश हो रही है??"
गाय स्वभाव वश कुत्ते को तबेले में शरण देने को राजी होती हैं।
"मांजी, हम भीगे-भूखे हैं, तोहार तबेला में शरण के लिए आ जाए का??? एक कोना में पडल रहेंगे। देख ना, बाहर कितनी जोरों से बारिश हो रही है??"
गाय स्वभाव वश कुत्ते को तबेले में शरण देने को राजी होती हैं।
☆थोडे दिनो बाद एक "सांप" आता है, वो भी गाय से शरण मांगता है। उससे पहले तो कुत्ता ही बोल देता है,
"हाँ हाँ, आ जाओ अंदर, यहां बहुत जगह है।" हालांकि बेचारी गाय को बुरा लगता है, फिर भी स्वभाव वश वो शांत ही रहती है। ⁉️💢
"हाँ हाँ, आ जाओ अंदर, यहां बहुत जगह है।" हालांकि बेचारी गाय को बुरा लगता है, फिर भी स्वभाव वश वो शांत ही रहती है। ⁉️💢
☆फिर तो समय बीतने के साथ साथ इसी तरह से बिच्छू-सुअर-लोमडी-शियाल-भालू-गधा-ऊंट आदि भी "तबेले की स्वामिनी" गाय को पूछे बिना, सिर्फ तबेले में मौजूद एक दूसरे शरणार्थियों को पूछ पूछ कर तबेले में शरण के बहाने घूसते जाते हैं।
☆अब तबेला में रहने वालों की संख्या अधिक हो जाने से सबसे पहले इन्हीं "शरणार्थियों" को ही बड़ा कष्ट होने लगता हैं। तब भी तबेले की सभी गायें तो बेचारी मुश्किलों झेलते रहते चुप ही रहती हैं।
☆एक रात अंधेरे में सारी शरणार्थी प्रजाति मिल कर फैसला करती हैं, "ये तबेले में सबसे ज्यादा जगह तो ई गायें ने ही घेर ली है। तो क्यों न ईन सब को यँहा से भगा ना दें ?" और दुसरे दिन ही सब शरणार्थी प्रजाति ने इकठ्ठे मिल कर, तबेले की अधिकारी सभी "भोली भाली गायों" को सभी तरह के हथकंडे अपना कर तबले से ही बाहर कर दिया !
अब शरण मांगने की बारी बेचारी गायें की हैं ! पर बेचारी गायें को कोई कहीं भी घुसने नहीं देता ! जाए तो कहां जाएं? वो बेचारी गायें आज पाकिस्तानी-बांग्लादेशी-कश्मीरी हिन्दू व पंडित कहलाती हैं।
जो स्वयं आज शरणार्थी बन गई हैं..!
देश खुद का अपना!! पर अब हैं पराये, कहीं आप वही तो नहीं सोच रहें है...?? जो आप वही सोच रहें है... तो एकदम सही सोच रहें है...!
देश खुद का अपना!! पर अब हैं पराये, कहीं आप वही तो नहीं सोच रहें है...?? जो आप वही सोच रहें है... तो एकदम सही सोच रहें है...!
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