Tuesday, 19 September 2017

kahani

सन 2002 की एक रात को मेरे हाथ पुराना रीडर डाइजेस्ट हाथ लगा. पहले कभी पढा होगा मगर भूल गया हूंगा इसलिए तुरंत देखने लगा. उसमें एक आर्टिकल था एक टीवी स्टार ने लिखा है “जितनी भलाई आप कर सकते हैं उतनी आप करते चलो क्योंकि अच्छाई कभी फालतू नहीं जाती”
 उस फिल्म स्टार ने एक कहानी कही कि ‘एक व्यक्ति ने घर के खिड़की से रास्ते के उस पार एक छोटा सा रेस्टोरेंट था उसके दरवाजों की पैड़ियों को एक 18 साल के लड़के को साफ़ करते हुए देखा। वो 18 साल का लड़का उसको परिचित लगा उसने गौर से सोचा तो ध्यान आया उसके पिता जी के साथ उससे मिला था पिता जी नाम, फ़ोन नंबर उसके पास था उसने फ़ोन किया तुरंत और कहा तुम्हारे लड़के को मैं देख रहा हूं वो रेस्टोरेंट की पैड़ियां साफ कर रहा है, 18 साल का है, पढने की उम्र है उसको तुमने नौकरी पर क्यों लगाया तो पिता जी ने उसको कहा मुझे वेतन कम मिलता है और मुझे इतना बड़ा परिवार चलाना है, पढ़ने की उसकी इच्छा है और उसकी इच्छा का समर्थन मेरे मन में है भी लेकिन उसको मैं पैसा नहीं दे सकता इसलिए वो ये सारे काम करके पैसे इकट्ठा कर रहा है।
उस व्यक्ति को ये बात मन में रह गई उसने फ़ोन रख दिया और जाकर उस लड़के को कहा तुम्हारा काम होने के बाद रात को सामने मैं रहता हूं मुझे मिलकर जाना रात को लड़का आया तो उसने पूछा तुम पढ़ना चाहते हो? उस लड़के ने उत्तर दिया हाँ पढ़ना चाहता हूं व्यक्ति ने बोला कितना खर्चा होता है पूरा तुम्हारा बताओं, लड़के ने हिसाब लगाकर बताया उसने कहा देखों आगे की शिक्षा तुम्हे दूसरे जगह करनी होगी और वहां तुमको रहने के लिए खर्च लगेगा, खाने के लिए लगेगा सब जोड़ो उसने सब जोड़ा। व्यक्ति ने कहा कल से ये काम छोड़ दो और पढ़ने के लिए चले जाओ तुम्हारा खर्चा मैं करूंगा बालक खुश हो गया.
आगे व्यक्ति ने कहा देखों मैं तुम्हे दान नहीं दे रहा हूं तुम पढ़-लिखकर जब कमाने लगोगे तो जैसे तुमको बनता है वैसे हफ्तों में पूरा पैसा वापस करना है तुमको ये पहली शर्त है, दूसरी शर्त है अगर किसी की तुम्हारे जैसी परिस्थिति दिखती है तो जो मैं तुम्हारे लिए कर रहा हूं वैसा तुमको उसके लिए करना पढ़ेगा और तीसरी शर्त है मैंने तुम्हे जो पढ़ाया और खर्च किया ये बात जीवन में किसी तीसरे व्यक्ति को नहीं बताना है, इसे गुप्त रखना है। आगे 5 साल तक प्रतिवर्ष नौ सौ डॉलर उस बच्चे का खर्च उस व्यक्ति ने दिया फिर वो अपनी कहानी बताने वाला कहता है आगे वो बच्चा बड़ा हुआ, अच्छा कमाने लगा और उसने दो ही वर्षों में उसका पूरा पैसा वापस कर दिया. उस शर्त का उसने तुरंत पालन किया दूसरी शर्त का भी वो पालन करता है कठिनाई में फंसे व्यक्तियों की वो सहायता करता है बिना शर्त केवल तीसरी शर्त का पालन उसने नहीं किया। उसने ये कहानी लेख में लिखकर बताई वो जो पैड़ी साफ करने वाला लड़का था मैं ही था ये दायित्व बोध है. मेरे लिए किसी ने किया, मुझे भी करना है. ऐसी भावना यदि सबके मन में हो तो समाज में कोई गरीब नही रहेगा और सभी के सपने पूरे हो सकेंगे.

No comments:

Post a Comment