बौद्धिक सोशल एनिमल गौरी लंकेश के पक्षधरों में हैं....
क्या घोषणा की है पूर्व JNU विद्यार्थी कन्हैया ने यदि, उस की बहन भगवे कपड़े पहनेगी तो, वह उस के कपड़े फाड़ देगा !!
क्या घोषणा की है पूर्व JNU विद्यार्थी कन्हैया ने यदि, उस की बहन भगवे कपड़े पहनेगी तो, वह उस के कपड़े फाड़ देगा !!
निर्भीक, साहसी, अभिव्यक्ति की आज़ादी की प्रतीक और अब ' शहीद ' पत्रकार गौरी लंकेश की फेसबुक पर लिखी यह पोस्ट देखी जिसमें उसने अपनी मां को सेक्स की आज़ादी देने जैसी बात लिखी थी.
यह हैं वाम पंथ ।बेशर्म, बेहया किस्म के लिबरल बौद्धिक सोशल एनिमल हैं,
'तेज तर्रार ' और 'कामरेड ' पत्रकार तरुण तेजपाल के बारे में कोर्ट ने बलात्कार का मामला दर्ज करने करने का जो आदेश दिया है, उसके बारे में तो सभी जानते ही है .
.पूरे मामले मे शर्मनाक पहलू यह है कि इस पत्रकार ने जिस लड़की के साथ बलात्कार की कोशिश की थी, वो लड़की न सिर्फ इसके साथ काम कर चुके इसके दोस्त की बेटी थी, बल्कि वो इसकी बेटी की सहेली भी थी. भारतीय परिवेश में दोस्त की बेटी और बेटी की सहेली को अपनी बेटी समान ही माना जाता है. खैर...जैसा कि इस देश में बेशर्म, बेहया किस्म के लिबरल बौद्धिक सोशल एनिमल हैं, जाहिर है, उस समय भी इसे बचाने के लिए वे पूरी ढिठाई से उतर पड़े थे.
उस दौर में अंग्रेजी न जानने वाले बौद्धिक बेशर्मों को जूठन के रूप में जो मिलता था वो था-जनसत्ता. इसके संपादक थे ओम थानवी . ओम थानवी के संपादन में ही उन दिनों जनसत्ता में नियमित रूप से लिखने वाले एक बुद्धिजीवी पत्रकार थे-राजकिशोर . उन्होंने इस मुद्दे पर एक आलेख लिखा, जिसका शीर्षक 'क्या क्षमा का मोल नहीं' या क्या क्षमा का कोई मूल्य नहीं जैसा कुछ था. इस आलेख में लुके-छुपे शब्दों में भारतीय परंपरा में क्षमा के महत्व को बताते हुए तेजपाल के संदर्भ में , बल्कि उसके पक्ष में कहा गया कि अब, जब उसने माफी मांग ली है तो उसे क्षमा कर देना चाहिए. गौर कीजिए,बेटी की उम्र की लड़की से बलात्कार के आरोपी के पक्ष में माहौल बनाने वाला यह आलेख उस ओम थानवी ने छापा था, जो खुद एक युवा बेटी के पिता थे / हैं . ......
.यह प्रकरण आज उस समय याद आया,जब ' निर्भीक, साहसी, अभिव्यक्ति की आज़ादी की प्रतीक और अब ' शहीद ' पत्रकार गौरी लंकेश की फेसबुक पर लिखी यह पोस्ट देखी जिसमें उसने अपनी मां को सेक्स की आज़ादी देने जैसी बात लिखी थी. इस पोस्ट से बलात्कार, तेजपाल और ओम थानवी याद आए और याद आया कि ओम थानवी भी गौरी लंकेश के पक्षधरों में हैं.
यह हैं वाम पंथ ।बेशर्म, बेहया किस्म के लिबरल बौद्धिक सोशल एनिमल हैं,
'तेज तर्रार ' और 'कामरेड ' पत्रकार तरुण तेजपाल के बारे में कोर्ट ने बलात्कार का मामला दर्ज करने करने का जो आदेश दिया है, उसके बारे में तो सभी जानते ही है .
.पूरे मामले मे शर्मनाक पहलू यह है कि इस पत्रकार ने जिस लड़की के साथ बलात्कार की कोशिश की थी, वो लड़की न सिर्फ इसके साथ काम कर चुके इसके दोस्त की बेटी थी, बल्कि वो इसकी बेटी की सहेली भी थी. भारतीय परिवेश में दोस्त की बेटी और बेटी की सहेली को अपनी बेटी समान ही माना जाता है. खैर...जैसा कि इस देश में बेशर्म, बेहया किस्म के लिबरल बौद्धिक सोशल एनिमल हैं, जाहिर है, उस समय भी इसे बचाने के लिए वे पूरी ढिठाई से उतर पड़े थे.
उस दौर में अंग्रेजी न जानने वाले बौद्धिक बेशर्मों को जूठन के रूप में जो मिलता था वो था-जनसत्ता. इसके संपादक थे ओम थानवी . ओम थानवी के संपादन में ही उन दिनों जनसत्ता में नियमित रूप से लिखने वाले एक बुद्धिजीवी पत्रकार थे-राजकिशोर . उन्होंने इस मुद्दे पर एक आलेख लिखा, जिसका शीर्षक 'क्या क्षमा का मोल नहीं' या क्या क्षमा का कोई मूल्य नहीं जैसा कुछ था. इस आलेख में लुके-छुपे शब्दों में भारतीय परंपरा में क्षमा के महत्व को बताते हुए तेजपाल के संदर्भ में , बल्कि उसके पक्ष में कहा गया कि अब, जब उसने माफी मांग ली है तो उसे क्षमा कर देना चाहिए. गौर कीजिए,बेटी की उम्र की लड़की से बलात्कार के आरोपी के पक्ष में माहौल बनाने वाला यह आलेख उस ओम थानवी ने छापा था, जो खुद एक युवा बेटी के पिता थे / हैं . ......
.यह प्रकरण आज उस समय याद आया,जब ' निर्भीक, साहसी, अभिव्यक्ति की आज़ादी की प्रतीक और अब ' शहीद ' पत्रकार गौरी लंकेश की फेसबुक पर लिखी यह पोस्ट देखी जिसमें उसने अपनी मां को सेक्स की आज़ादी देने जैसी बात लिखी थी. इस पोस्ट से बलात्कार, तेजपाल और ओम थानवी याद आए और याद आया कि ओम थानवी भी गौरी लंकेश के पक्षधरों में हैं.
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