**रामनवमी का महत्व **
त्रेता युग में अत्याचारी रावन के अत्याचारो से हर तरफ हाहाकार मचा हुआ था । साधू संतो का जीना मुश्किल हो गया था । अत्याचारी रावण ने अपने प्रताप से नव ग्रहों और काल को भी बंदी बना लिया था । कोई भी देव या मानव रावण का अंत नहीं कर पा रहा था । तब पालनकर्त्ता भगवान विष्णु ने राम के रूप में अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में जन्म लिया । यानि भगवान श्री राम भगवान विष्णु के ही अवतार थे।
मंगल भवन अमंगल हारी,
दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि ॥
दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि ॥
अगस्त्यसंहिताके अनुसार चैत्र शुक्ल नवमीके दिन पुनर्वसु नक्षत्र,कर्कलग्नमें जब सूर्य अन्यान्य पाँच ग्रहोंकी शुभ दृष्टिके साथ मेषराशिपर विराजमान थे, तभी साक्षात् भगवान् श्रीरामका माता कौसल्याके गर्भसे जन्म हुआ।चैत्र शुक्ल नवमी का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। आज ही के दिन तेत्रा युग में रघुकुल शिरोमणि महाराज दशरथ एवं महारानी कौशल्या के यहाँ अखिल ब्रम्हांड नायक अखिलेश ने पुत्र के रूप में जन्म लिया था।
दिन के बारह बजे जैसे ही सौंदर्य निकेतन, शंख, चक्र,गदा, पद्म धारण किए हुए चतुर्भुजधारी श्रीराम प्रकट हुए तो मानो माता कौशल्या उन्हें देखकर विस्मित हो गईं। उनके सौंदर्य व तेज को देखकर उनके नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे।
श्रीराम के जन्मोत्सव को देखकर देवलोक भी अवध के सामने फीका लग रहा था। देवता, ऋषि,किन्नार, चारण सभी जन्मोत्सव में शामिल होकर आनंद उठा रहे थे। आज भी हम प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल नवमी को राम जन्मोत्सव मनाते हैं और राममय होकर कीर्तन, भजन, कथा आदि में रम जाते हैं।
रामजन्म के कारण ही चैत्र शुक्ल नवमी को रामनवमी कहा जाता है। रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना का श्रीगणेश किया था।भगवान श्रीराम जी ने अपने जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना बताया पर उससे उनका आशय यह था कि आम इंसान शांति के साथ जीवन व्यतीत कर सके और भगवान की भक्ति कर सके। उन्होंने न तो किसी प्रकार के धर्म का नामकरण किया और न ही किसी विशेष प्रकार की भक्ति का प्रचार किया।
रामनवमी,भगवान राम की स्मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं, और इन्हें”मर्यादा पुरुषोतम” कहा जाता है। रामनवमी को राम के जन्मदिन की स्मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण (मनुष्य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्य (राम का शासन)शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन, श्रद्धालु बड़ी संख्या में उनके जन्मोत्सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। इस महान राजा की काव्य तुलसी रामायण में राम की कहानी का वर्णन है।
उस दिन जो कोई व्यक्ति दिनभर उपवास और रातभर जागरणका व्रत रखकर भगवान् श्रीरामकी पूजा करता है,तथा अपनी आर्थिक स्थितिके अनुसार दान-पुण्य करता है,वह अनेक जन्मोंके पापोंको भस्म करनेमें समर्थ होता है।
रामनवमी के मौके पर भारत ही क्या विदेशों के मंदिरों में भी शोभा देखते ही बनती है। ऐसा लगता है पूरी दुनिया श्री राम की भक्ति में डूबी हुई है। हिन्दू धर्म में राम का नाम बहुत महत्त्व रखता है। हिन्दू होने के कारण मैंने भी बचपन से यही देखा है कि किस तरह मेरे घर में कोई भी पूजा राम नाम और ॐ जय जगदीश की आरती के बिना पूरी नहीं होती है। अरे! एक राम का नाम पत्थर पर लिख कर पूरी सेना ने इतना बड़ा समुन्दर पार कर लिया था तो हमारी नैया तो पार लग ही जाएगी। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है, जिन्होंने पृथ्वी से पाप और असूरों का नाश करने के लिए जन्म लिया था। भगवान राम कोई और नहीं बल्कि विष्णु भगवान के ही अवतार हैं। और जब बात स्वयं श्री राम के जन्म की हो तो उत्साह और जोश और भी बढ़ जाता है।
भगवान श्री राम की जन्मकुंडली का विवेचन /फलादेश—-
भगवान राम का जन्म कर्क लगन में हुआ था। उनके लगन में उच्च का गुरु एवं स्वराशी का चंद्रमा था । भगवान श्री राम का जन्म दोपहर के 12 बजे हुआ था, इसी कारण भगवान राम विशाल व्यक्तित्व के थे और उनका रूप अति मनहोर था ।
दिन के बारह बजे जैसे ही सौंदर्य निकेतन, शंख, चक्र,गदा, पद्म धारण किए हुए चतुर्भुजधारी श्रीराम प्रकट हुए तो मानो माता कौशल्या उन्हें देखकर विस्मित हो गईं। उनके सौंदर्य व तेज को देखकर उनके नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे।
श्रीराम के जन्मोत्सव को देखकर देवलोक भी अवध के सामने फीका लग रहा था। देवता, ऋषि,किन्नार, चारण सभी जन्मोत्सव में शामिल होकर आनंद उठा रहे थे। आज भी हम प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल नवमी को राम जन्मोत्सव मनाते हैं और राममय होकर कीर्तन, भजन, कथा आदि में रम जाते हैं।
रामजन्म के कारण ही चैत्र शुक्ल नवमी को रामनवमी कहा जाता है। रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना का श्रीगणेश किया था।भगवान श्रीराम जी ने अपने जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना बताया पर उससे उनका आशय यह था कि आम इंसान शांति के साथ जीवन व्यतीत कर सके और भगवान की भक्ति कर सके। उन्होंने न तो किसी प्रकार के धर्म का नामकरण किया और न ही किसी विशेष प्रकार की भक्ति का प्रचार किया।
रामनवमी,भगवान राम की स्मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं, और इन्हें”मर्यादा पुरुषोतम” कहा जाता है। रामनवमी को राम के जन्मदिन की स्मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण (मनुष्य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्य (राम का शासन)शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन, श्रद्धालु बड़ी संख्या में उनके जन्मोत्सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। इस महान राजा की काव्य तुलसी रामायण में राम की कहानी का वर्णन है।
उस दिन जो कोई व्यक्ति दिनभर उपवास और रातभर जागरणका व्रत रखकर भगवान् श्रीरामकी पूजा करता है,तथा अपनी आर्थिक स्थितिके अनुसार दान-पुण्य करता है,वह अनेक जन्मोंके पापोंको भस्म करनेमें समर्थ होता है।
रामनवमी के मौके पर भारत ही क्या विदेशों के मंदिरों में भी शोभा देखते ही बनती है। ऐसा लगता है पूरी दुनिया श्री राम की भक्ति में डूबी हुई है। हिन्दू धर्म में राम का नाम बहुत महत्त्व रखता है। हिन्दू होने के कारण मैंने भी बचपन से यही देखा है कि किस तरह मेरे घर में कोई भी पूजा राम नाम और ॐ जय जगदीश की आरती के बिना पूरी नहीं होती है। अरे! एक राम का नाम पत्थर पर लिख कर पूरी सेना ने इतना बड़ा समुन्दर पार कर लिया था तो हमारी नैया तो पार लग ही जाएगी। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है, जिन्होंने पृथ्वी से पाप और असूरों का नाश करने के लिए जन्म लिया था। भगवान राम कोई और नहीं बल्कि विष्णु भगवान के ही अवतार हैं। और जब बात स्वयं श्री राम के जन्म की हो तो उत्साह और जोश और भी बढ़ जाता है।
भगवान श्री राम की जन्मकुंडली का विवेचन /फलादेश—-
भगवान राम का जन्म कर्क लगन में हुआ था। उनके लगन में उच्च का गुरु एवं स्वराशी का चंद्रमा था । भगवान श्री राम का जन्म दोपहर के 12 बजे हुआ था, इसी कारण भगवान राम विशाल व्यक्तित्व के थे और उनका रूप अति मनहोर था ।
लग्न में उच्च का गुरु होने से वह मर्यादा पुरुषोतम बने । चौथे घर में उच्च का शनि तथा सप्तम भाव में उच्च का मंगल था, अतः भगवान श्री राम मांगलिक थे । इसके कारण उनका वैवाहिक जीवन कष्टों से भरा रहा । उनकी कुंडली के दशम भाव में उच्च का सूर्य था, जिससे वे महा प्रतापी थे ।
कुल मिलकर भगवान राम के जन्म के समय चार केन्द्रो में चार उच्च के ग्रह विराजमान थे।आश्चर्य की बात यह है कि जैसी कुंडली भगवान राम की थी वैसी ही रावण की भी थी। राम की कुंडली कर्क लगन थी और रावन की मेष।
कुल मिलकर भगवान राम के जन्म के समय चार केन्द्रो में चार उच्च के ग्रह विराजमान थे।आश्चर्य की बात यह है कि जैसी कुंडली भगवान राम की थी वैसी ही रावण की भी थी। राम की कुंडली कर्क लगन थी और रावन की मेष।
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