गजवा-ए-हिन्द का ये सच! आँखों के सामने होने के बावजूद भी नहीं जानते करोड़ों हिन्दू...
गजवा-ए-हिन्द का मतलब होता है इस्लाम कि भारत पर विजय। और इस की तैयारी जोरो पर है। एक जगह जहाँ मिडिया हिन्दुओ का ध्यान बाटने में लगी है, वही दूसरी और यह कोशिशें ज़ोरों पर है,फर्क सिर्फ यह है इन कोशिशों को सेकुलर चोला पहनाया जा रहा है।
काफिरों को जीतने के लिए किये जाने वाले युद्ध को “गजवा” कहते हैं और जो इस युद्ध में विजयी रहता है उसे “गाजी” कहते हैं। जब भी किसी आक्रान्ता और अक्रमंनकारी के नाम के सामने गाजी लग जाता है, उसका यह मतलब होता है कि निश्चय ही वह हिन्दुओ का व्यापक नर संहार करके इस्लाम के फैलाव में लगा था।
हिन्दुओ की सबसे बड़ी कमजोरी है की हम अपने ही धर्म के बारे में बहुत कम जानते हैं और फिर भी अपने को सेकुलर कहते है। पर क्या हम सेकुलर का मतलब भी जानते है ? कभी भी कोई मुस्लिम अपने को सेकुलर नहीं कहेगा, फिर चाहे वह नेता हो या आम नागरिक। पर वह एक भीड़ को सेकुलर भाषण जरुर दे सकता है। कहा जाता है कि मुहीम के लिए लड़के इस तरह तैयार किए जा रहें है कि वह पुलिस और फ़ौज से मुकाबला कर पाएंगे और हर आम गैर मुस्लिम पर भारी पड़ेंगे।
यह बहुत ही चिंता कि बात है क्यूंकि गजवा-ए-हिन्द का मतलब है की भारत में सभी गैर मुस्लिम पर इस्लामिक शरिया कानून लागु किया जायेगा, जिसका साफ़ साफ शब्दों में यह मतलब हुआ कि:
“इनको मारकर ख़तम कर दो या इनको इस्लाम स्वीकार कराओ”
या
“उन्हें तब तक जिन्दा रखो जब तक अपनी कमाई का एक हिस्सा “जजिया कर” के रूप में इस्लामिक सरकार को देते रहे”
“इनको मारकर ख़तम कर दो या इनको इस्लाम स्वीकार कराओ”
या
“उन्हें तब तक जिन्दा रखो जब तक अपनी कमाई का एक हिस्सा “जजिया कर” के रूप में इस्लामिक सरकार को देते रहे”
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, मुग़ल यह कोशिश एक बार पहले कर चुके है, जिसका बड़ा उदाहरण “ताजमहल” है, जो एक शिवमंदिर था और उसे?
गजवा-ए-हिन्द को और तफ्शीश से समझिये:
1- अल-तकिय्या
इस अवस्था में जब एक मुस्लिम कमजोर हो जाता है, तब उसे काफिरों यानि गैर-मुस्लिमों से झूठ बोलना और उन्हें धोखा देना कि पूरी इज़ाज़त होती है। इस अवस्था से मुस्लमान अपने को अंदरूनी तौर से मजबूत रखेंगे और काफिरों से अपनी अंदरूनी जानकारियों से दूर रखेंगे। इसके चलते नेहरुद्दीन जवाहिरी और मैमूना बेगम, राजीव का असली धर्म आज भी किसी को नहीं पता है।
1- अल-तकिय्या
इस अवस्था में जब एक मुस्लिम कमजोर हो जाता है, तब उसे काफिरों यानि गैर-मुस्लिमों से झूठ बोलना और उन्हें धोखा देना कि पूरी इज़ाज़त होती है। इस अवस्था से मुस्लमान अपने को अंदरूनी तौर से मजबूत रखेंगे और काफिरों से अपनी अंदरूनी जानकारियों से दूर रखेंगे। इसके चलते नेहरुद्दीन जवाहिरी और मैमूना बेगम, राजीव का असली धर्म आज भी किसी को नहीं पता है।
2- काफिरों के मन में भय भरना
इस मुकाम को हासिल करने के लिए काफिरों पर धोखे से हमला करना और उनकी हत्या करना, जायज़ होगा। उनपर झुण्ड बनाकर किसी एक जगह पर हमला करा जायेगा। और ऐसा तो पिछले ३-४ सालों से भारत में जारी है। कितने ही गैर मुस्लिम अगुआ और आक्रामक नेताओं को मौत के घात उतर दिया गया है। इससे लोगों के दिल में डर बना रहता है। और सार्वजनिक रूप से आम हिन्दू इसके खिलाफ जबान नहीं खोलते।
इस मुकाम को हासिल करने के लिए काफिरों पर धोखे से हमला करना और उनकी हत्या करना, जायज़ होगा। उनपर झुण्ड बनाकर किसी एक जगह पर हमला करा जायेगा। और ऐसा तो पिछले ३-४ सालों से भारत में जारी है। कितने ही गैर मुस्लिम अगुआ और आक्रामक नेताओं को मौत के घात उतर दिया गया है। इससे लोगों के दिल में डर बना रहता है। और सार्वजनिक रूप से आम हिन्दू इसके खिलाफ जबान नहीं खोलते।
3- हथियारों का जखीरा इकठ्ठा करना
इस मुहीम के मुसलमानों का मानना है काफ़िर को जितनी पीड़ा दायक मृत्यु दी जाये और वो भी दूसरे काफ़िर को दिखाकर) वह उतना ज्यादा प्रभावित होता है। हथियार इकठ्ठा करने का काम अदनान खगोशी और उसके बाद बहुत से मुस्लिम तस्कर पिछले ४० साल से कर रहे हैं। सबसे ज्यादा हथियार सोवियत संघ से मुस्लिम देशों के टूटने के बाद भारत में लाये गए, अनुमान के अनुसार पूर्व सोवियत देशों से १ करोड़ AK-47 गायब हुयीं मगर आज तक उनका कोई पता नहीं है! ये हथियार मुख्यतः भारत में है और कुछ अफ़ग़ानिस्तान में।
इस मुहीम के मुसलमानों का मानना है काफ़िर को जितनी पीड़ा दायक मृत्यु दी जाये और वो भी दूसरे काफ़िर को दिखाकर) वह उतना ज्यादा प्रभावित होता है। हथियार इकठ्ठा करने का काम अदनान खगोशी और उसके बाद बहुत से मुस्लिम तस्कर पिछले ४० साल से कर रहे हैं। सबसे ज्यादा हथियार सोवियत संघ से मुस्लिम देशों के टूटने के बाद भारत में लाये गए, अनुमान के अनुसार पूर्व सोवियत देशों से १ करोड़ AK-47 गायब हुयीं मगर आज तक उनका कोई पता नहीं है! ये हथियार मुख्यतः भारत में है और कुछ अफ़ग़ानिस्तान में।
4- समय समय पर काफिरों की ताकत का अंदाज़ा करना
ताकत का अंदाज़ा लगाने के लिए दंगो का सहारा लिया जाता है। यह प्रतिरोध का आंकना बहुत दिनों से चल रहा है और इसका उदाहरण जम्मू के किश्तवाड़ में देखने को मिला है। छोटी-छोटी बातों पर बड़ा झगड़ा करवाया जायेगा, और जब काफिर एक जुट हो जायेंगे तो उनकी ताकत का पता लग जायेगा।
ताकत का अंदाज़ा लगाने के लिए दंगो का सहारा लिया जाता है। यह प्रतिरोध का आंकना बहुत दिनों से चल रहा है और इसका उदाहरण जम्मू के किश्तवाड़ में देखने को मिला है। छोटी-छोटी बातों पर बड़ा झगड़ा करवाया जायेगा, और जब काफिर एक जुट हो जायेंगे तो उनकी ताकत का पता लग जायेगा।
5- ठिकाने या शिविर बनाना
इस काम के लिए धर्म का सहारा लिया जायेगा और दूसरे धर्म पर इस्लाम को सच्चा धर्म बताकर लोगों को आस्थावान बनाया जायेगा। इससे लोग मुस्लिमों पर विश्वास कर्नेगे और उन पर शक नहीं करेंगे। इन इलाकों से गैर मुस्लिमों को दूर रखा जायेगा, जिस से उन्हें गतिविधियों की जानकारी मिल नहीं पायेगी। इस काम के लिए बस्तियों और मस्जिदों को इस्तेमाल किया जायेगा। लोगों को इकठ्ठा करा जायेगा और उन्हें भड़काकर काफिरों का सफाया करने के लिए भेजा जायेगा। उद्देश्य सभी काफिरों को भगाना होगा, ताकि उन्हें संवेदनशील सूचनाएँ न मिल पाएं।
“क्योंकि इस्लाम की असली ताकत “अल-तकिय्या” ही है।”
इस काम के लिए धर्म का सहारा लिया जायेगा और दूसरे धर्म पर इस्लाम को सच्चा धर्म बताकर लोगों को आस्थावान बनाया जायेगा। इससे लोग मुस्लिमों पर विश्वास कर्नेगे और उन पर शक नहीं करेंगे। इन इलाकों से गैर मुस्लिमों को दूर रखा जायेगा, जिस से उन्हें गतिविधियों की जानकारी मिल नहीं पायेगी। इस काम के लिए बस्तियों और मस्जिदों को इस्तेमाल किया जायेगा। लोगों को इकठ्ठा करा जायेगा और उन्हें भड़काकर काफिरों का सफाया करने के लिए भेजा जायेगा। उद्देश्य सभी काफिरों को भगाना होगा, ताकि उन्हें संवेदनशील सूचनाएँ न मिल पाएं।
“क्योंकि इस्लाम की असली ताकत “अल-तकिय्या” ही है।”
6- सरकारी सुरक्षा तंत्र को कमजोर करना
इस काम के लिए तो खुद सरकारें शामिल हैं। सच तो यह है कि सेकुलर सरकारें खुद इस काम को समर्थन दे रही हैं। अगर किसी फौजी के पास १२०० गज कारगर रेंज की असाल्ट रायफल है, वह यह जान ले कि यह जेहादियों पर गुलेल चलने के बराबर है। इशरत जहाँ और सोहराबुद्दीन केस इसी का भाग है, यह दोनों केस इस्लामिक शक्तियों के इशारे पर हुए थे।
इस काम के लिए तो खुद सरकारें शामिल हैं। सच तो यह है कि सेकुलर सरकारें खुद इस काम को समर्थन दे रही हैं। अगर किसी फौजी के पास १२०० गज कारगर रेंज की असाल्ट रायफल है, वह यह जान ले कि यह जेहादियों पर गुलेल चलने के बराबर है। इशरत जहाँ और सोहराबुद्दीन केस इसी का भाग है, यह दोनों केस इस्लामिक शक्तियों के इशारे पर हुए थे।
7- व्यापक दंगे
यह गजवा-ए-हिन्द का अंतिम उद्देश्य है और इस में बहुत कम समय में ज्यादा से ज्यादा काफ़िर या गैर मुस्लिम मर्दों को मौत के घाट उतरा जायेगा। गजवा-ए-हिन्द के लिए पाकिस्तान का भारत पर आक्रमण सबसे उपयुक्त समय होगा, और ऐसा पाकिस्तानी वेबसाइटों पर बार-बार देखने को मिलता है। जेहादी लड़कों के मरने पर युवा जेहादियों को ७२ सुन्दर जवान हुर्रें मिलने की बात कई बार कही गई है। और वह जीत जाता है तो जवान काफ़िर महिलाओं के साथ सहवास करने के अनंत मौके प्रदान किए जायेंगे!
यह गजवा-ए-हिन्द का अंतिम उद्देश्य है और इस में बहुत कम समय में ज्यादा से ज्यादा काफ़िर या गैर मुस्लिम मर्दों को मौत के घाट उतरा जायेगा। गजवा-ए-हिन्द के लिए पाकिस्तान का भारत पर आक्रमण सबसे उपयुक्त समय होगा, और ऐसा पाकिस्तानी वेबसाइटों पर बार-बार देखने को मिलता है। जेहादी लड़कों के मरने पर युवा जेहादियों को ७२ सुन्दर जवान हुर्रें मिलने की बात कई बार कही गई है। और वह जीत जाता है तो जवान काफ़िर महिलाओं के साथ सहवास करने के अनंत मौके प्रदान किए जायेंगे!
यही अंतहीन सिलसिला पिछले १४०० सालों से चल रहा है। पहले हमारे देश कि सनातनी जड़ें गहरी थीं, जिस कारण हम ऐसे खतरों का सामना बड़ी अच्छी तरह से कर पाते थे। लेकिन आज के दिन झूठे इतिहास और गलत पढ़ाई तथा चर्चों ने हिंदुत्व को बहुत आघात पहुँचाया है।
गजवा-ए-हिन्द की प्रक्रिया कश्मीर में आज़माई जा चुकी है १००% सफल रही है, जम्मू में इसका ट्रायल चल रहा है। बीच में ईसाइयत के इनके खेल को कमजोर ज़रूर किया था लेकिन अब दोबारा इसने गति पकड़ ली है।
गजवा-ए-हिन्द की प्रक्रिया कश्मीर में आज़माई जा चुकी है १००% सफल रही है, जम्मू में इसका ट्रायल चल रहा है। बीच में ईसाइयत के इनके खेल को कमजोर ज़रूर किया था लेकिन अब दोबारा इसने गति पकड़ ली है।
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