Friday, 15 September 2017

 हिंदूवाद के निशाने पर ब्राह्मण ही क्यों ?
                  यह एक बड़ा षडयंत्र है बहुत बड़ा जिसमे इस्लाम और् ईसाइयत पूरी तरह से संलग्न है। हिन्दू/सनातन को समाप्त करना है तो आखेट ब्राह्मण का करना ही होगा..जब ब्राह्मण आहत हो पूजा, शादी करने नही जाएगा तो वैदिक प्रथा का ह्रास होगा और् हिन्दू/ सनातन कमजोर पड़ेगा। 

ब्राह्मण  यदि अपमानित होगा तो हिन्दू का परिवर्तन बौद्ध, मुस्लिम या ईसाइयत में होगा। .मेरिका का धर्म कभी ईसाइयत नही था यह लादा गया है और् अब इसको बड़ी सरलता से व्यवस्थित कर दिया गया है। मुस्लिम धर्म एक बंद धर्म है जो बहुत लंबे समय तक नही चलेगा...
यहूदियो का नाश...
किसी समय पूरे विश्व में फैले यहूदी धर्म का नाश कोई एक दो साल में नही हुआ। ईसाइयो ने यहूदी धर्म जो हिन्दू धर्म से बहुत मिलता है। जिसमे होली, दीपावली जैसे त्योहार मनाये जाते रहे है बदनाम करने का षडयंत्र शुरू किया गया। इब्राहम के विरुद्ध बहुत भ्रमित बाते फैलाई गई । यहूदियो को क्रूर, चालाक, षड्यंत्रकारी बताने के लिये जगह जगह समारोह, किताबे और् चर्चो में रोज प्रवचन शुरू किए गए। जर्मन का कोई अपना धर्म नही था इसलिए जर्मन के लोग बहुत जल्दी प्रभावित हो गए। यहूदियों के विरुद्ध इतनी घृणा फैलाई गई कि जब यहूदियों का कत्ल करना शुरू किया गया तो किसी ने विरोध नही किया। 
        पूरे विश्व से यहूदी को भगाया जाने लगा। 1947 में बड़ी मुश्किल से इज़राइल मिला जिसपर भी अरब और् फिलिस्तीनी आक्रमण करते रहे आज भी एक छोटे से स्थान और् अपने अस्तित्व के लिये इज़राइल लड़ रहा है। पर आप किसी को हरा सकते है पर ज्ञान नही ले सकते। जैसे ऋषि को राक्षस बहुत परेशान करते थे पर उनका ज्ञान नही ले पाए।
अब यही स्तिथी सनातन के साथ हो रही है। देश विदेश में वैदिक को अपमानित किया जा रहा है। हमारा वेदों को फर्जी, मनगढंत, फूहड़, कल्पनीय (यही शब्द नग्रेजी में उपयोग में लाये जाते है) कहा जाता है। वैदिक काल का समय 5000 साल बताने के पीछे भी यही मंशा थी।

हम अपने ज्ञान में इतने मंत्रमुग्ध है कि कोई क्या कह रहा है इससे हमें कोई अंतर नही पड़ता... यह गंभीर समस्या है...
हमे अपने ज्ञान के अतिरिक्त जानना आवश्यक है कि  हमारा धर्म अच्छा क्यों या बुरा क्यों ? पर संतो का ध्यान इधर कम ही है.. कहना सरल है कि हमे दुसरो के धर्म से क्या लेना हमारा वैदिक उत्तम है...पर प्रामाणिक भी करने के लिये आपको पढ़ना होगा।
                  राजीव मल्होत्रा जैसे विद्वान आज जो स्तिथी दिखा रहे है भयानक है। सनातन में कभी विस्तार, धर्म परिवर्तन का कोई सूत्र नही दिया गया है। ना ही ऐसा किया जाता है। अभी आरएसएस के आने के बाद ही एक शब्द घर वापसी सुनने में आता है। अन्यथा इससे पहले किसी ने कोई प्रयास नही किया
Vithal Vyas
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बिना उत्तेज़ित हुये पढ़े और विचार करें। तर्क़ों का
स्वागत है, कुतर्क़ों का नहीं। सवाल निम्नवत हैं
1. क्या आज़ादी मिलने के बाद भारत का
"धर्म-आधारित" विभाजन हुआ?
जवाब है, हाँ।
2. जब महज़ धर्म के नाम पर मुसलमानों ने भारत
को तोड़ दिया, फिर भारत पर उनका कैसा
हक़?
जवाब है, कोई हक़ नहीं।
3. जब बँटवारे में मुसलमानों को अलग मुस्लिम
राष्ट्र मिला तो क्या हिन्दुओं को अलग हिन्दु
राष्ट्र लेने का हक़ नहीं था?
जवाब है, बिल्कुल था।
4. चलिये छोड़िये, हिन्दुओं को अलग हिन्दु
राष्ट्र नहीं मिला, ये ना-इंसाफ़ी भी
स्वीकार ! कुछ मुसलमानों ने पाक़िस्तान जाने
की बजाय हिन्दुस्तान में रहना पसन्द किया, ये
भी स्वीकार। भारत एक "धर्म-निरपेक्ष" राष्ट्र
घोषित हुआ, स्वीकार। तो क्या इस "धर्म-
निरपेक्ष" राष्ट्र में सभी धर्मों को समान
अधिकार नहीं मिलना चाहिये था? महज़
"अल्पसंख्यक" के नाम पर किसी धर्म-विशेष को
विशेषाधिकार देने का क्या औचित्य था?
जवाब है - हाँ, सभी धर्मों को समान अधिकार
मिलने चाहिये थे। किसी धर्म-विशेष को
विशेषाधिकार देने का कोई औचित्य नहीं
था।
5. अगर आरक्षण देने का कोई प्रावधान था, तो
क्या सभी धर्मों में आरक्षण की समान पद्धति
लागू नहीं होनी चाहिये थी?
जवाब है, हाँ। अगर नीतिगत तरीक़े से सोचा
जाये तो सभी धर्मों के लिये आरक्षण की
समान पद्धति लागू होनी चाहिये थी।
6. चलो, इस मुद्दे को भी नज़र-अंदाज़ करते हैं।
चलो, अल्पसंख्यक के नाम पर दिये जा रहे
विशेषाधिकार भी स्वीकार! अब सवाल ये है
कि क्या मुस्लिम सांवैधानिक ढ़ाँचे के अनुरूप
आज भी "अल्पसंख्यक" हैं?
जवाब है, नहीं। आज वो कुल जन्संख्या का लगभग
20% हो चुके हैं। तो अब वो "अल्पसंख्यक" नहीं हैं।
फ़िर विशेषाधिकारों का कोई औचित्य नहीं
है।
7. अगर मुसलमान "अल्पसंख्यक" हैं तो फ़िर बुद्ध,
जैन, सिंधी, पारसी, सिख आदि क्या हैं? क्या
उन्हें "अल्पसंख्यक" के नाम पर कोई
विशेषाधिकार प्राप्त हैं?
जवाब है, नहीं। वास्तविक अल्पसंख्यकों की
पूर्णतया अनदेखी हो रही है, क्यों कि वो
"वोट-बैंक" नहीं हैं। सरकारी उदासीनता का
आलम ये है कि सिंधी, पारसी आज विलुप्त होने
के कगार पर हैं।
8. जिसे आप धर्म-निरपेक्षता कहते हैं, क्या वो
सिर्फ़ हिन्दुओं के लिये है, मुस्लिमों के लिये
नहीं?
जवाब है, हाँ। ये "धर्म निरपेक्षता" सिर्फ़
हिन्दुओं पर थोपी जाती है। कश्मीर जैसे
मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम, हिन्दुओं को
खदेड़-खदेड़ कर भगाते हैं, उनके लिये कोई "धर्म-
निरपेक्षता" नहीं। जबकि हिन्दु-बहुल क्षेत्रों में
मुस्लिम मज़े से रहते हैं, क्योंकि हिन्दु धर्म-
निरपेक्ष हैं भाई!
सवाल और भी कयी हैं, ये तो महज़ शुरूआती
झांकी है। आशा है कि हिन्दुओं के बीच मौज़ूद
"जयचन्दों" की शायद आँखें खुलें। मुस्लिमों और
हिन्दुओं में सबसे बड़ा फ़र्क़ यही है कि मुस्लिमों
में गद्दार जयचन्दों की संख्या ना के बराबर है,
जबकि हिन्दुओं में कदम-कदम पर जयचन्द मौजूद हैं
जो उसी डाल को साम्प्रदायिक बोलकर
काटने में लगे हैं, जिस पर वो खुद बैठे हैं। इस मामले
में मुसलमान बधाई के पात्र हैं।मुसलमान हिन्दुओ
के जन्मजात दुश्मन ही सही पर हिन्दुओं को उनसे
कुछ सीखना चाहिये।
मौन गुलामी के दलदल में , आज धंसी हैं भारत माँ ,"
"यूं लगता है फिर मुगलों के , बीच फंसी हैं भारत
माँ........"
"केसरिया झंडे मज़ार की , चादर बनकर बैठे हैं ,"
"रामचंद्र के बेटे खुद ही , बाबर बनकर बैठे हैं........"
"हिन्दू कुल में जन्मे लेकिन , ख़ान सरीखे लगते हैं ,"
"ये भारत में तुर्क और , अफगान सरीखे लगते हैं........"


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