Friday 15 September 2017


 बच्चों के सर पर हाथ फेरते प्यार सेअपनी मातृ भाषा में , बातें करें...
 इन पांच समय में बच्चों से इंग्लिश न बोलें 
1- सुबह बिस्तर से बच्चों को उठाते हुए प्यार भरी मीठी डाँट से बच्चे को जगाएं, प्यार से सर पर हाथ फ़ेरे कुछ अपनेपन के शब्द बोलें।
2- स्कूल जाते वक़्त भी प्यार से शुभ वाक्य, गायत्री मन्त्र और अच्छे प्यार भरे वातावरण में विदा करें।
3- स्कूल से घर आने पर भी प्यार से व्यवहार करें, स्कूल में आज क्या हुआ पूँछते हुए बातें करें।
4- यदि बच्चा आपको किसी भी समय परेशान, उलझन, क्रोध में दिखे तो उसे प्यार से मातृभाषा में परिस्थिति को हैंडल करें।
5- सोते वक़्त भी बच्चे के साथ अंग्रेजी में बात न करें, मातृभाषा का कोई अच्छा सा साहित्य पढ़े, कुछ अच्छे संस्कार दें, अच्छी नैतिक शिक्षा की कहानी सुनाते हुए प्यार से सुलाएं।
 मातृभाषा बोलेंगे तो बच्चों को इंग्लिश बोलने के लिए कैसे प्रेरित करेंगे?
 सिर्फ इन पांच वक्तों के लिए मातृभाषा के प्रयोग की बात की है, बाक़ी पूरे दिन इंग्लिश बोलिये। घर को घर रहने दीजिये होटल का रिसेप्शन एरिया, स्कूल की क्लास मत बनाइये। एयर होस्टेस की तरह आर्टिफिशियल हंसी और इंग्लिश् भाषा में अपने बच्चों को कस्टमर की तरह हैंडल मत कीजिये। उन्हें शरीर हिंदुस्तानी और दिमाग़ से अंग्रेज मत बनाइये। उन्हें अंग्रेजी भाषा सिखाइये लेकिन उन्हें अंग्रेज़ियत और पाश्चात्य सभ्यता मत सिखाइये। भारतीय संस्कृति से यदि उन्हें नहीं जोड़ा तो बड़े होकर उनकी हालत धोबी के कुत्ते की तरह होगी, वो न घर के(भारतीय) रहेंगे और न घाट(विदेशी) के रहेंगें। खिचड़ी व्यक्तित्व उन्हें उलझनों से भर देगा, जीवन मूल्यों की परिभाषाये, सही ग़लत की परिभाषा ही यदि बदल गयी, तो निर्णय उनका सही कैसे होगा?
याद रखिये, आपके बचपन में दिए अच्छे संस्कार और सद्गुण ही भविष्य में आपको छाया देंगें, बच्चे आपका सम्मान करेंगे और आपको बच्चों का साथ मिलेगा, और सुसंस्कारी बच्चे देश के विकास को गति देंगें।
वैसे भी सच्चे प्रेम की अभिव्यक्ति हो या क्रोध की अभिव्यक्ति, दोनों मातृभाषा में ही बेहतर और ओरिजनल तरीके से व्यक्त की जा सकती हैं। 😇
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

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