जयपुर दंगे से सबक ले सरकार..
यह पोस्ट शोर जिहाद पर है, जिसे अज़ान कहा जाता है. जान बूझकर शोर जिहाद कह रहा हूँ क्योंकि जिस तरह से स्ट्रेटेजिक पोजीशंस पर मस्जिदें बाँधी जा रही हैं, जिस साइज की मीनारे बन रही हैं और जिस वोल्यूम के लाउडस्पीकर उनपर बैठाये जा रहे हैं, इसके लिए यही नाम सही है.
ऐसा नहीं कि अजान मधुर नहीं होता, बहुत मधुर अजान मैंने सुने हैं, रोंगटे खड़े हो जाते हैं. बाई चांस कहीं से गुजरते मधुर अजान सुनने मिला तो रुक कर पूरी तन्मयता से उस आवाज को एन्जॉय भी करता हूँ. लेकिन भाय लोग, आप लोगों के ज्यादातर अजान कर्णकर्कश आवाज में ही सुनाये देते हैं जो वहां से भाग खड़े होने को प्रोत्साहित करते हैं.
अब शोर जिहाद की बात करें, क्यों इसे मैं शोर जिहाद कह रहा हूँ.
कभी गूगल मैप्स में अपने एरिया की मस्जिदों के लोकेशन देखिये. पहले भी इस बात पर लिख चुका हूँ कि वे हमेशा स्ट्रेटेजिक लोकेशन होते हैं. रास्ता ब्लॉक करने की क्षमता, तथा दंगे में कंट्रोल रूम की तरह काम करने की क्षमता बिलकुल सही होती है, स्थानिक पुलिस थाणे से भी अधिक. आर्मी के किसी अधिकारी से मित्रता है तो उससे मैप पर ये लोकेशंस का स्ट्रेटेजिक पोटेंशियल जान लीजिये, आप की नींद हराम होगी यह गारंटी है. जाकर उन मस्जिदों को देख आइये, ध्यान दीजिये कितने दूर से आप को उनके मीनार दिखने लगते हैं. जान लीजिये कि उनको भी उतने ही दूर से आप दिखेंगे तथा ऊपर से दूर का व्यू उस से भी बड़ा मिलेगा. बूझे कछु ?
कभी पुलों के ऊपर से पैदल टहलिए, जाते समय एक बाजू इत्मीनान से देखते जाइए, आते वक़्त दूसरी बाजू उतने ही इत्मीनान से देखिये. मस्जिदें नोट कीजिये, कितनी नयी हैं, मीनारों की हाईट कितनी है और कितने दूर से अजान सुनाई देती है. अब जरा उन एरिया में भी घूम आइये, मस्जिदों का बाहर से तो मुआइना कीजिएगा . अगर नयी लकदक मस्जिद है तो अंदाजा लगाइए खर्चा कितना आया होगा. बस्ती घूमियेगा देखिये कोई पुरानी मस्जिद भी होगी, उसके मीनारों की भी हाईट देख आइयेगा. मस्जिद की मंजिलें भी देखिये, एरिया में मुसलमान कितने है और अन्य कितने यह भी जानिएगा. अजान के समय जाइयेगा, पांच बार होती तो है ही, कोई एक तो मिलना ही है. मार्क कीजिये कितना दूर तक कितना जोर से सुनाई देता है. नसीब साथ दे तो लाउडस्पीकर भी देख आइयेगा, कितने क्षमता के हैं.
वैसे अगर कभी कोई सरकार इन नयी मस्जिदों का ऑडिट करवायेगी तो माल, मजदूर के लिए पैसा लोकल कितना और बाहरी कितना यह देखना रोचक रहेगा. साथ साथ यह भी देखा जाए कि इनके लाउडस्पीकरों की क्षमता कितनी है. अच्छा, कब खरीदे हैं ये ? कोर्ट ने साउंड लिमिट तय करने के पहले या बाद में ? क्या कहा, रिसीट खो गई ? कोई बात नहीं, मॉडल से भी उसका साल तो समझ में आ ही जाएगा तो यह भी तय हो जाएगा कि कोर्ट के आदेश का कितना सम्मान किया गया है. कारण भी पूछा जाए तो बेहतर होगा.
मस्जिदें चकाचक होंगी तो उस एरिया के घर देखिये, क्या इस एरिया से इतनी जकात निकलती होगी ऐसी मस्जिद बनाने या यह पैसे उम्मत के नाम से बाहर से आये होंगे ? अगर बाहर से आये हैं तो क्या गरीबों के घर सुधारे नहीं जा सकते थे जो चकाचक मस्जिद पर खर्च किये गए हैं ? क्या हिन्दुओं के हर धार्मिक खर्च में गरीबों के मुंह से छीना निवाला देखनेवाले किसी वामपंथी ने इसपर चूं भी की है कभी ?
बड़ी दो तीन मंजिला मस्जिदें बनती हैं वहां एरिया का मुस्लिम पोप्युलेशन का डाटा देखिये, क्या उतना पोप्युलेशन है या फिर वहां ला बसाना है ? लाकर बसायेंगे तो स्थानिक काफिरों का क्या ?
यही पर शोर जिहाद की बात कर रहा हूँ. फजर की नमाज आप की नींद तोड़ रही है और पुलिस डेसीबेल नापने से या कम्प्लेंट रजिस्टर करने से भी कतरा रही है और आप को कोई बेशर्मी से दांत चियारकर यह सलाह दे रहा है कि आप कहीं और चले जाएँ, तो भाई मेरे, अब तक तो शोर जिहाद क्या होता है समझ ही गए होंगे ? यही आप को दो आयत और एक हदीस भी पढ़वा देते हैं, बात और स्पष्ट हो जायेगी.
आयत है १३:४१ जिसे मैं आयत उल कैराना कहता हूँ, जहाँ कहा गया है कि हम (काफिरों के) चारो और से जमीं घटाते चले आते हैं और उन्हें यह समझ में नहीं आता. दूसरी आयत ९:१२० है जहाँ यह भी कहा गया है कि काफिरो को कष्ट हो ऐसा कर्म करो तो आप के नाम के आगे एक सुकर्म लिखा जाएगा.
बूझे कछु? अब हदीस पढ़िए : बुखारी 53:392 - अबु हुरैरा ने कहा - हम मस्जिद में थे और रसूल बाहर आए और हमसे कहा, "चलो, यहूदियों के यहाँ चलते हैं." हम बैतुल मिदरस तक चले गए. वहाँ उन्होने (यहूदियों को) कहा - अगर आप इस्लाम कुबूल करेंगे तो सुरक्षित रहेंगे. आप यह जान लीजिये कि यह दुनिया अल्लाह और उसके रसूल की मालकियत है और मैं आप को इस मुल्क से खदेड़ देना चाहता हूँ. तो अगर आप में से किसी के पास कोई संपत्ति है तो उसे उस संपत्ति को बेच डालने की इजाजत है. वर्ना आप ये जान लें कि यह दुनिया अल्लाह और उसके रसूल की मालकियत है.
अब तो शोर जिहाद समझ ही गए होंगे, क्या नहीं ? अच्छा, कभी किसी ऊँचे बिल्डिंग के टॉप फ्लोर से चारों और देखिये कितनी मस्जिदें उग आयी हैं. अगर आप उनके भोम्पुओं से निकलते आवाज को सीधा लाइन में जाते visualize कर सकते हैं तो आप को समझ आयेगा कि कैसे वे एक दूसरे को क्रिस क्रोस करते हैं और कोई कोना अछूता नहीं रहता. इसका परिणाम यह भी होता है कि काफिर को चारों दिशाओं से घिरे जाने की फीलिंग हो आती है जो आज के दिनों में उसको असुरक्षित बनाती है. परेशानी तो परेशानी, जब आप को यह भी अहसास कराया जाता है कि इसे रोकने में कानून, पुलिस या नेता आप की कोई मदद नहीं करेंगे तब एक असहायता की भावना बलवती होती है जो धैर्य तोड़ती है.
शब्द चुराए बगैर जिम्मेदारी से सीधी बात कर रहा हूँ, ये एक बड़ी insecure feeling होती है यह कई मित्रों से बात करने के बाद कह रहा हूँ.
इसका दोहरा परिणाम होता है, आदमी घर बेचकर निकल जाने का मन बना लेता है लेकिन उसे घर का दाम औनापौना ही मिलता है. अभी अभी जो हदीस पढी उसका सम्बन्ध समझ में आया ही होगा ? चलिये, कोई बात नहीं, इस पोस्ट को शेयर-कोपी पेस्ट करने की हिम्मत दिखायें, देखिये आप के कितने रिश्तेदार, दोस्त या सखिया अपना दर्द इसमें पाती हैं ? कितनों का अनुभव है यह खुद ही जान लीजिये अगर आप अबतक भुक्त भोगी नहीं हैं.
जिहाद इस्लाम का दायरा बढाने के लिए किया जाता है. आजतक अहिंसक नहीं रहा. हाँ, हमेशा खूनखराबा नहीं हुआ, लेकिन हिंसा के लिए यह आवश्यक नहीं कि रक्तपात ही हो. अजानास्त्र भी काफी परिणामकारक है शोर जिहाद मे
साभार
संजय कुमार रणवां
संजय कुमार रणवां
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