Saturday, 9 September 2017

धनुषकोटि ... भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्थवलीय सीमा ...


धनुषकोटि, रामेश्वरम
हिन्दू धर्म से जुड़ा पौराणिक इतिहास बेहद बेहद विस्तारित है। भारत समेत समस्त विश्व में कई ऐसे स्थान हैं, जिनका हिन्दू धर्म से बेहद गहरा रिश्ता रहा है। इन्हीं स्थानों में से एक है धनुषकोटि, जिसका रामायण काल से बहुत गहरा संबंध है।

विभीषण का निवेदन
लंका विजय करने के बाद भगवान राम ने उस राज्य का शासन रावण के छोटे भाई विभीषण को सौंप दिया था। लंका का शासक बनने के बाद विभीषण ने अपने प्रभु राम से यह निवेदन किया कि वे लंका तक आने वाले रामसेतु को तोड़ दें।

सेतु को तोड़ना
विभीषण के निवेदन को स्वीकारते हुए श्रीराम ने अपने धनुष के एक छोर से सेतु को तोड़ दिया। तभी से उस स्थान को धनुषकोटि कहा जाता है। यह स्थान भारत के तमिलनाडु राज्‍य के पूर्वी तट पर स्थित रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित छोटा सा शहर है

सबसे छोटा शहर
यह स्थान श्रीलंका और भारत को एक-दूसरे के साथ जोड़ता है। धनुषकोटि पंबन के दक्षिण-पूर्व और श्रीलंका में तलैमन्ना।र से करीब 18 मील पश्चिछम में स्थित है। धनुषकोटि ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्थवलीय सीमा है, जो पाक जलसन्धि में बालू के टीले पर सिर्फ 50 गज की लंबाई की वजह से विश्वम के सबसे छोटे स्था नों में से एक है।

हिन्दू मान्यताएं
हिन्दू मान्यताओं में धनुषकोटि को बेहद पवित्र स्थान माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि काशी की तीर्थयात्रा तभी पूरी होगी जब महोदधि (बंगाल की खाड़ी) और रत्नााकर (हिंद महासागर) के संगम पर स्थित धनुषकोटि में स्नान और रामेश्वैरम में पूजा संपन्न की जाएगी

शिव भक्त रावण
इतिहास रावण को एक नकारात्मक शक्ति के रूप में ही जानता है लेकिन रावण के भीतर कुछ गुण भी थे। वह एक महान ज्योतिषशास्त्री और शिव भक्त था। कर्म से भले ही वह असुर था लेकिन जन्म से वह एक ब्राह्मण था। धनुषकोटि के विषय में यह भी कहा जाता है कि रावण से युद्ध और विजय के पश्चात भगवान राम ने ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए इस स्थान पर एक यज्ञ भी किया था।

भूतहा स्थान
धनुषकोटि की पहचान बस यही तक सीमित नहीं है, हालांकि रामभक्त पौराणिक महत्व के कारण इस स्थान के दर्शन करने आते हैं, लेकिन इस स्थान का भूतहा कहलाना भी यहां पर्यटकों की संख्या में दिनों दिन इजाफा होने का एक कारण है।

आत्माओं का वास
जी हां, एक तरफ तो धनुषकोटि से भगवान राम का गहरा संबंध है, वहीं दूसरी ओर यहां प्रेत आत्माओं को भी महसूस किए जाने के दावे किए गए हैं। इन दावों के पीछे का कारण है वर्ष 1964 में यहां आया भयंकर चक्रवात, जिसने धनुषकोटि की खूबसूरती को मातम में बदल दिया था।

1964 की त्रासदी
1964 के चक्रवात से पूर्व धनुषकोटि पर्यटकों को खूब लुभाता था, जिसका कारण यहां की खूबसूरती और पौराणिक महत्व था। इस स्थान से सिलोन (श्रीलंका) मात्र 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है इसलिए यहां से प्रतिदिन धनुषकोटि और सिलोन के थलइमन्नाीर के बीच यात्री सेवा और माल वाहन चलते थे। यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों का भी ध्यान रखा जाता था, उनके रहने के लिए होटल, धर्मशालाएं सब कुछ उपलब्ध था। धनुषकोटि का अपना एक रेलवे स्टेशन भी था।

जलसंधि
सन 1964 में आए भयंकर चक्रवात के दौरान 20 फीट की ऊंची लहर पाक जलसंधि से शहर धनुषकोटि पर आक्रमण करते हुए आई और पूरे शहर को तबाह कर गई। सौ लोगों से ज्यादा भरी रेलगाड़ी भी इस चक्रवात की चपेट में आ गई, जिसमें सभी की मौत हो गई।

भयंकर लहरें
इतना ही नहीं करीब 1800 लोग इस चक्रवात की भेंट चढ़ गए थे। यह अनुमान लगाया था कि जब समुद्र से उठी इन लहरों ने रामेश्वरम पर आक्रमण किया था तब इनकी ऊंचाई करीब 8 गज थी।

असामान्य अनुभव
इस दुखद घटना के पश्चात धनुषकोटि की प्राकृतिक सुंदरता तहस-नहस हो गई। इस आपदा के बाद यहां आने वाले लोगों ने कई अजीबोगरीब हलचलें महसूस की, उन्हें अपने आसपास किसी के होने का आभास होता था।

भूतहा शहर
इस चक्रवात के पश्चात जिन लोगों ने यहां आने का साहस किया उनका कहना था कि यहां कुछ तो ऐसा है जो असामान्य है। ऐसे अनुभवों के पश्चात स्वयं तमिलनाडु सरकार ने इस शहर को भूतहा शहर करार देकर इसे निवास के लिए अयोग्य करार दे दिया था। सरकार द्वारा यह भी चेतावनी जारी की गई कि कोई भी व्यक्ति दिन ढलने के पश्चात इस स्थान पर ना रुके। अब यहां सिर्फ कुछ मछुआरे ही रहते हैं।

स्मारक
धनुषकोटि के बस स्टैंड पर आपदा में मारे गए लोगों को समर्पित एक स्मारक बनाया गया है, जिस पर लिखा है “उच्च गति और उच्च ज्वासरीय हवाओं के लहरों के साथ एक तूफानी चक्रवात ने धनुषकोटि को 22 दिसम्बर 1964 की आधी रात से 25 दिसम्बर 1964 की शाम तक तहस-नहस कर दिया, जिससे भारी नुकसान हुआ और धनुषकोटि का पूरा शहर बर्बाद हो गया”।
9 hrs 
 

No comments:

Post a Comment