Saturday 16 September 2017

काला पहाड़ बांग्लादेश

काला पहाड़ बांग्लादेश ! यह नाम स्मरण होते ही भारत के पूर्व में एक बड़े भूखंड का नाम स्मरण हो उठता है ! जो कभी हमारे देश का ही भाग था ! जहाँ कभी बंकिम के ओजस्वी आनंद मठ, कभी टैगोर की हृद्यम्य कवितायेँ, कभी अरविन्द का दर्शन, कभी वीर सुभाष की क्रांति ज्वलितहोती थी ! आज बंगाल प्रदेश एक मुस्लिम राष्ट्र के नाम से प्रसिद्द है ! जहाँ हिन्दुओं की दशा दूसरे दर्जें के नागरिकों केसमान हैं ! क्या बंगाल के हालात पूर्व से ऐसे थे ? बिलकुल नहीं ! अखंड भारतवर्ष की इस धरती पर पहले हिन्दू सभ्यता विराजमान थी! कुछ ऐतिहासिक भूलों ने इस प्रदेश को हमसे सदा के लिए दूर करदिया ! एक ऐसी ही भूल का नाम कालापहाड़ है ! बंगाल के इतिहास में काला पहाड़ का नाम एक अत्याचारी के नाम से स्मरण किया जाता है ! काला पहाड़ का असली नाम कालाचंद राय था ! कालाचंद राय एक बंगाली ब्राहण युवक था ! पूर्वी बंगाल के उस वक्त के मुस्लिम शासक की बेटी को उससे प्यार हो गया ! बादशाह की बेटी ने उससे शादी की इच्छा जाहिर की ! वह उससे इस कदर प्यार करती थी कि उसने इस्लाम छोड़कर हिंदू विधि से शादी करने को तैयार हो गई ! हिन्दू धर्म के ठेकेदारों को जब पता चला कि कालाचंद राय एक मुस्लिम राजकुमारी से शादी कर उसे हिंदू बनाना चाहता है ! तो उन्होंने कालाचंद का विरोध किया! उन्होंने उस मुस्लिम युवती के हिंदू धर्म में आने का न केवल विरोध किया, बल्कि कालाचंद राय को भी जाति बहिष्कार की धमकी दी ! कालाचंद राय को अपमानित किया गया! अपने अपमान से क्षुब्ध होकर कालाचंद गुस्से से आग बबुला हो गया और उसने इस्लाम स्वीकारते हुए उस युवती से निकाह कर उसके पिता के सिंहासन का उत्तराधिकारी हो गया ! अपने अपमान का बदला लेते हुए राजा बनने से पूर्व ही उसने तलवार के बल पर हिन्दुओं को मुसलमान बनाना शुरू किया ! उसका एक ही नारा था मुसलमान बनो या मरो! पूरे पूर्वी बंगाल में उसने इतना कत्लेआम मचाया कि लोग तलवारके डर से मुसलमान होते चले गए ! इतिहास में इसका जिक्र है कि पूरे पूर्वी बंगाल को इस अकेले व्यक्ति ने तलवार के बल पर इस्लाम में धर्मांतरित कर दिया ! यह केवल उन मूर्ख, जातिवादी, अहंकारी व हठधर्मी हिन्दू धर्म के ठेकेदारों को सबक सिखाने के उददेश्य से किया गया था ! उसकी निर्दयता के कारण इतिहास उसे काला पहाड़ के नाम से जानती है ! अगर अपनी संकीर्ण सोच से ऊपर उठकर कुछ हठधर्मी ब्राह्मणों ने कालाचंद राय का अपमान न किया होता तो आज बंगाल का इतिहास कुछ ओर ही होता !सन्दर्भ - भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी),भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 91संस्कृति के चार अध्याय: रामधारीसिंह दिनकरपाकिस्तान का आदि और अंत: बलराज मधोक कश्मीर का इस्लामीकरणकश्मीर: शैव संस्कृति के ध्वजावाहक एवं प्राचीन काल से ऋषि कश्यप की धरती कश्मीर आज मुस्लिम बहुल विवादित प्रान्त के रूप में जाना जाता हैं ! 1947 के बाद से धरती पर स्वर्ग सी शांति के लिए प्रसिद्द यह प्रान्त आज शांत नहीं रहा ! इसका मुख्य कारण पिछले 700 वर्षों में घटित कुछ घटनाएँ हैं जिनका परिणाम कश्मीर का इस्लामीकरण होना हैं ! कश्मीर में सबसे पहले इस्लाम स्वीकार करने वाला राजा रिंचन था ! 1301 ई. में कश्मीर केराजसिंहासन पर सहदेव नामक शासक विराजमान हुआ ! कश्मीर में बाहरी तत्वों ने जिस प्रकार अस्त व्यस्तता फैला रखी थी, उसे सहदेव रोकने में पूर्णत: असफल रहा ! इसी समय कश्मीर में लद्दाख का राजकुमार रिंचन आया, वह अपने पैत्रक राज्य से विद्रोही होकर यहां आया था ! यह संयोग की बात थी कि इसी समय यहां एक मुस्लिम सरदार शाहमीर स्वात (तुर्किस्तान) से आया था ! कश्मीर के राजा सहदेव ने बिना विचार किये और बिना उनकी सत्यनिष्ठा की परीक्षा लिए इन दोनों विदेशियों को प्रशासन में महत्वपूर्ण दायित्व सौंप दिये ! यह सहदेव की अदूरदर्शिता थी, जिसके परिणाम आगे चलकर उसी के लिए घातक सिद्घ हुए ! तातार सेनापति डुलचू ने 70,000 शक्तिशाली सैनिकों सहित कश्मीर पर आक्रमण कर दिया ! अपने राज्य को क्रूर आक्रामक की दया पर छोडक़र सहदेव किश्तवाड़ की ओर भागगया ! डुलचू ने हत्याकांड का आदेशदे दिया ! हजारों लोग मार डाले गये ! कितनी भयानक परिस्थितियों में राजा ने जनता को छोड़ दिया था, यह इस उद्घरण से स्पष्ट हो गया ! राजा की अकर्मण्यता और प्रमाद के कारण हजारों लाखों की संख्या में हिंदू लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ गया ! जनता की स्थिति दयनीय थी ! राजतरंगिणी में उल्लेख है-‘जब हुलचू वहां से चला गया, तो गिरफ्तारी से बचे कश्मीरी लोग अपने गुप्त स्थानों से इस प्रकारबाहर निकले, जैसे चूहे अपने बिलों से बाहर आते हैं ! जब राक्षस डुलचू द्वारा फैलाई गयी हिंसा रूकी तो पुत्र को पिता न मिला और पिता को पुत्र से वंचित होना पड़ा, भाई भाई से न मिल पाया! कश्मीर सृष्टि से पहले वाला क्षेत्र बन गया ! एक ऐसा विस्तृत क्षेत्र जहां घास ही घास थी और खाद्य सामग्री न थी ! सन्दर्भ - राजतरंगिणी,जोनाराज पृष्ठ 152-155 इस अराजकता का सहदेव के मंत्री रामचंद्र ने लाभ उठाया और वह शासक बन बैठा , परंतु रिंचन भी इस अवसर का लाभ उठाने से नही चूका ! जिस स्वामी ने उसे शरण दी थी उसकेराज्य को हड़पने का दानव उसके हृदय में भी उभर आया और भारी उत्पात मचाने लगा ! रिंचन जब अपनेघर से ही बागी होकर आया था, तो उससे दूसरे के घर शांत बैठे रहने की अपेक्षा भला कैसे की जा सकती थी ? उसके मस्तिष्क में विद्रोह का परंपरागत कीटाणु उभर आया, उसने रामचंद्र के विरुद्ध विद्रोह कर दिया ! रामचंद्र ने जबदेखा कि रिंचन के हृदय में पाप हिलोरें मार रहा है, और उसके कारणअब उसके स्वयं के जीवन को भी संकटहै तो वह राजधानी छोडक़र लोहर के दुर्ग में जा छिपा ! रिंचन को पता था कि शत्रु को जीवित छोडऩा कितना घातक सिद्ध हो सकता है ? इसलिए उसने बड़ी सावधानी से काम किया और अपने कुछ सैनिकों को गुप्त वेश में रामचंद्र को ढूंढने के लिए भेजा ! जब रामचंद्रमिल गया तो उसने रामचंद्र से कहलवाया कि रिंचन समझौता चाहता है ! वार्तालाप आरंभ हुआ तो छल करते हुए रिंचन ने रामचंद्र की हत्या करा दी ! इस प्रकार कश्मीर पर रिंचन का अधिकार हो गया ! यह घटना 1320 की है ! उसने रामचंद्र की पुत्री कोटा रानी सेविवाह कर लिया था ! इस प्रकार वह कश्मीर का राजा बनकर अपना राज्य कार्य चलाने लगा ! कहते है कि अपने पिता के हत्यारे से विवाह करने के पीछे कोटा रानी का मुख्य उद्देश्य उसके विचार परिवर्तन कर कश्मीर की रक्षा करना था ! धीरे धीरे रिंचन उदास रहने लगा ! उसे लगा कि उसने जो किया वह ठीक नहीं था ! उसके कश्मीर के शैवों के सबसे बड़े धर्मगुरु देवास्वामी के समक्ष हिन्दू बनने का आग्रह किया ! देवास्वामी ने इतिहास की सबसे भयंकर भूल करी और बुद्ध मत से सम्बंधित रिंचन को हिन्दू समाज का अंग बनाने से मना कर दिया !(सन्दर्भ - राजतरंगिणी, जोनराजा पृष्ठ 20-21 )रिंचन के लिए उत्पन्न हुई परिस्थितियां बहुत ही अपमानजनक थी ! जिससे उसे असीम वेदना और संताप ने घेर लिया ! देवास्वामी की अदूरदर्शिता ने मुस्लिम मंत्री शमशीर को मौका दे दिया ! उसने रिंचन को सलाह दी की अगले दिन प्रात: आपको जो भी धर्मगुरु मिले ! आप उसका मत स्वीकार कर लेना ! अगले दिन रिंचन जैसे ही सैर को निकला, उसे मुस्लिम सूफी बुलबुल शाह अजान देते मिला ! रिंचन को अंतत: अपनी दुविधा का समाधान मिल गया ! उससे इस्लाम मेंदीक्षित होने का आग्रह करने लगा !बुलबुलशाह ने गर्म लोहा देखकर तुरंत चोट मारी और एक घायल पक्षी को सहला कर अपने यहां आश्रय दे दिया ! रिंचन ने भी बुलबुल शाह का हृदय से स्वागत किया ! इस घटना के पश्चात कश्मीर का इस्लामीकरण आरम्भ हुआ जो लगातार 500 वर्षों तक अत्याचार, हत्या, धर्मान्तरण आदि के रूप में सामने आया !यह अपच का रोग यही नहीं रुका ! कालांतर में महाराज गुलाब सिंह के पुत्र महाराज रणबीर सिंह गद्दी पर बैठे ! रणबीर सिंह द्वारा धर्मार्थ ट्रस्ट की स्थापना कर हिन्दू संस्कृति को प्रोत्साहन दिया ! राजा के विचारों से प्रभावित होकर राजौरी पुंछ के राजपूत मुसलमान और कश्मीर के कुछ मुसलमान राजा के समक्ष आवदेन करने आये कि उन्हें मूल हिन्दू धर्म में फिर से स्वीकार कर लिया जाये ! राजा ने अपने पंडितों से उन्हें वापिसमिलाने के लिया पूछा तो उन्होंनेस्पष्ट मना कर दिया ! एक पंडित तो राजा के विरोध में यह कहकर झेलम में कूद गया की राजा ने अगर उसकी बात नहीं मानी तो वह आत्मदाह कर लेगा ! राजा को ब्रह्महत्या का दोष लगेगा ! राजा को मज़बूरी वश अपने निर्णय को वापिस लेना पड़ा ! जिन संकीर्ण सोच वाले लोगों ने रिंचन को स्वीकार न करके कश्मीर को 500 वर्षों तक इस्लामिक शासकों के पैरों तले रुंदवाया था, उन्हीं ने बाकि बचे हिन्दू कश्मीरियों को रुंदवाने के लिए छोड़ दिया ! इसका परिणाम आज तक कश्मीरी पंडित भुगत रहे हैं !सन्दर्भ - व्यथित कश्मीर; नरेंदर सहगल पृष्ठ 59 पाकिस्तान के जनक जिन्ना और इक़बाल पाकिस्तान ! यह नाम सुनते ही 1947 के भयानक नरसंहार और भारत होना स्मरण हो उठता हैं ! महाराज राम के पुत्र लव द्वारा बसाई गई लाहौर से लेकर सिख गुरुओं की कर्मभूमि आज पाकिस्तान के नाम सेएक अलग मुस्लिम राष्ट्र के रूप में जानी जाती हैं ! जो कभी हमारे अखंड भारत देश का भाग थी ! पाकिस्तान के जनक जिन्ना का नाम कौन नहीं जानता ! जिन्ना को अलग पाकिस्तान बनाने का पाठ पढ़ाने वाला अगर कोई था तो वो थासर मुहम्मद इक़बाल ! मुहम्मद इक़बाल के दादा कश्मीरी हिन्दू थे ! उनकानाम था तेज बहादुर सप्रु ! उस समय कश्मीर पर अफगान गवर्नर अज़ीम खानका राज था ! तेज बहादुर सप्रु, खानके यहाँ पर राजस्व विभाग में कार्य करते थे ! उन पर घोटाले का आरोप लगा ! उनके समक्ष दो विकल्प रखे गए ! पहला था मृत्युदंड का विकल्प दूसरा था इस्लाम स्वीकार करने का विकल्प ! उन्होंने धर्म परिवर्तन कर इस्लाम ग्रहण कर लिया, और अपना नाम बदल कर स्यालकोट आकर रहने लगे(सन्दर्भ -R.K. Parimu, the author of History of Muslim Rule in Kashmir, and Ram Nath Kak, writing in his autobiography, Autumn Leaves ) इसी निर्वासित परिवार में मुहम्मद इक़बाल का जन्म हुआ था ! कालांतर में यही इक़बाल पाकिस्तान के जनक जिन्ना का मार्गदर्शक बना !मुहम्मद अली जिन्ना गुजरात के खोजा राजपूत परिवार में पैदा हुआथा ! कहते हैं उनके पूर्वजों को इस्लामिक शासन काल में पीर सदरुद्दीन ने इस्लाम में दीक्षित किया था ! इस्लाम स्वीकार करने पर भी खोजा मुसलमानों का चोटी, जनेऊ आदि से प्रेम दूर नहीं हुआ था ! इस्लामिकशासन गुजर जाने पर खोजा मुसलमानों के द्वारा भारतीय संस्कृति को स्वीकार करने की उनकी वर्षों पुरानी इच्छा फिर सेजाग उठी ! उन्होंने उस काल में भारत की आध्यात्मिक राजधानी बनारस के पंडितों से शुद्ध होने की आज्ञा मांगी ! हिन्दुओं का पुराना अपच रोग फिर से जाग उठा ! उन्होंने खोजा मुसलमानों की मांग को अस्वीकार कर दिया ! इस निर्णय से हताश होकर जिन्ना के पूर्वजों ने बचे हुए हिन्दू अवशेषों को सदा के लिए तिलांजलि दे दी, एवं उनका मन सदा के लिए हिन्दुओं के प्रति द्वेष और घृणासे भर गया ! इसी विषाक्त माहौल में उनके परिवार में जिन्ना का जन्म हुआ ! जो स्वाभाविक रूप से ऐसे माहौल की पैदाइश होने के कारण पाकिस्तान का जनक बना !(सन्दर्भ - युगद्रष्टा भगत सिंह और उनके मृत्युंजय पुरखे- वीरेंदर संधु। वीरेंदर संधु अमर बलिदानी भगत सिंह जी की भतीजी है)अगर हिन्दू धर्म के ठेकेदारों नेशुद्ध कर अपने से अलग हुए भाइयों को मिला लिया होता तो आज देश की क्या तस्वीर होती ! आप स्वयं अंदाजा लगा सकते है ! अगर सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में ऐसी ऐसी अनेक भूलों को जाना जायेगा तो मन व्यथित होकर खून के आँसू रोने लगेगा ! संसार के मागर्दर्शक, प्राचीन ऋषियों की यह महान भारत भूमि आज किन हालातों में हैं, यह किसी से छुपानहीं हैं ! क्या हिन्दुओं का अपच रोग इन हालातों का उत्तरदायी नहीं हैं ? आज भी जात-पात, क्षेत्र- भाषा, ऊंच-नीच, गरीब-अमीर, छोटा-बड़ा आदि के आधार पर विभाजित हिन्दू समाज क्या अपने बिछुड़े भाइयों को वापिस मिलाने की पाचक क्षमता रखता हैं? यह एक भीष्म प्रश्न है ? क्यूंकि देश की सम्पूर्ण समस्यायों का हल इसी अपच रोग के निवारण में हैं !एक मुहावरा की "बोये पेड़ बबुल के आम की चाहत क्यों" भारत भूमि पर सटीक रूप से लागु होती हैं !

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