शिया और सुन्नी आपस में क्यों झगड़ते हैं?
शिया और सुन्नी विवाद इस्लामी इतिहास का सबसे पुराना विवाद है. एक ही धर्म, विचार और रीति रिवाज होने के बावजूद इन दोनों धड़ों के बीच एक बड़ी खाई है. यह खाई कब, कैसे और क्यों बनी, चलिए जानते हैं इन्हीं सवालों के जबाव.
शिया और सुन्नी विवाद इस्लामी इतिहास का सबसे पुराना विवाद है. एक ही धर्म, विचार और रीति रिवाज होने के बावजूद इन दोनों धड़ों के बीच एक बड़ी खाई है. यह खाई कब, कैसे और क्यों बनी, चलिए जानते हैं इन्हीं सवालों के जबाव.
विवाद की शुरुआत
इस विवाद की शुरुआत 632 ईसवी में पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के बाद हुई. उन्होंने अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किए बिना की दुनिया को अलविदा कह दिया था. इसलिए सवाल खड़ा हुआ कि तेजी से फैलते धर्म का नेतृत्व कौन करेगा.
उत्तराधिकार पर झगड़ा
कुछ लोगों का ख्याल था कि नेता आम राय से चुना जाए जबकि दूसरे चाहते थे कि पैगंबर के किसी वंशज को ही खलीफा बनाया जाए. खलीफा का पद पैगंबर मोहम्मद के ससुर और विश्वासपात्र रहे अबु बकर को मिला जबकि कुछ लोग उनके चचेरे भाई और दामाद अली को नेतृत्व सौंपने के हक में थे.
कुछ लोगों का ख्याल था कि नेता आम राय से चुना जाए जबकि दूसरे चाहते थे कि पैगंबर के किसी वंशज को ही खलीफा बनाया जाए. खलीफा का पद पैगंबर मोहम्मद के ससुर और विश्वासपात्र रहे अबु बकर को मिला जबकि कुछ लोग उनके चचेरे भाई और दामाद अली को नेतृत्व सौंपने के हक में थे.
मतभेद गहराए
अबु बकर और उनके दो उत्तराधिकारियों की मौत के बाद अली को खलीफा बनाया गया था. लेकिन तब तक दोनों धड़ों में मतभेद बहुत गहरा चुके थे. लेकिन फिर कुफा की मस्जिद में अली को जहर से बुझी तलवार से कत्ल कर दिया गया. यह जगह मौजूदा इराक में है.
अबु बकर और उनके दो उत्तराधिकारियों की मौत के बाद अली को खलीफा बनाया गया था. लेकिन तब तक दोनों धड़ों में मतभेद बहुत गहरा चुके थे. लेकिन फिर कुफा की मस्जिद में अली को जहर से बुझी तलवार से कत्ल कर दिया गया. यह जगह मौजूदा इराक में है.
सत्ता संघर्ष
अली की मौत के बाद उनके बेटे हसन खलीफा बने. लेकिन जल्द ही उन्होंने विरोधी धड़े के नेता माविया के लिए खलीफा का पद छोड़ दिया. सत्ता संघर्ष में हसन के भाई हुसैन और उनके बहुत से रिश्तेदारों को 680 में इराक के करबला में कत्ल कर दिया गया था.
अली की मौत के बाद उनके बेटे हसन खलीफा बने. लेकिन जल्द ही उन्होंने विरोधी धड़े के नेता माविया के लिए खलीफा का पद छोड़ दिया. सत्ता संघर्ष में हसन के भाई हुसैन और उनके बहुत से रिश्तेदारों को 680 में इराक के करबला में कत्ल कर दिया गया था.
मातम
हुसैन की शहादत उनके अनुयायी का मुख्य सिद्धांत बन गई. हर साल मोहर्रम के महीने में शिया लोग मातमी जुलूस निकालते हैं और उस घटना पर शोक जताते हैं. जुलूस में शामिल लोग अपने आपको कष्ट देते हुए और विलाप करते हुए सड़कों से गुजरते हैं.
हुसैन की शहादत उनके अनुयायी का मुख्य सिद्धांत बन गई. हर साल मोहर्रम के महीने में शिया लोग मातमी जुलूस निकालते हैं और उस घटना पर शोक जताते हैं. जुलूस में शामिल लोग अपने आपको कष्ट देते हुए और विलाप करते हुए सड़कों से गुजरते हैं.
कब खत्म हुई खिलाफत
सुन्नी मानते हैं कि अली से पहले पद संभालने वाले तीनों खलीफा सही और पैगंबर की सुन्नाह यानी परंपरा के सच्चे अनुयायी थे. अब्दुलमेजीद द्वितीय आखिरी खलीफा थे. पहले विश्व युद्ध के बाद ऑटोमान साम्राज्य के पतन के साथ ही खिलाफत भी समाप्त हो गई.
सुन्नी मानते हैं कि अली से पहले पद संभालने वाले तीनों खलीफा सही और पैगंबर की सुन्नाह यानी परंपरा के सच्चे अनुयायी थे. अब्दुलमेजीद द्वितीय आखिरी खलीफा थे. पहले विश्व युद्ध के बाद ऑटोमान साम्राज्य के पतन के साथ ही खिलाफत भी समाप्त हो गई.
कैसे पड़े नाम
सुन्नाह यानी परंपरा को मानने वाले सुन्नी कहलाए जबकि शियाओं को उनका नाम "शियान अली" से मिला, जिसका अर्थ होता अली के अनुयायी. इस तरह दोनों की धड़ों का मूल एक ही है. लेकिन पैगंबर मोहम्मद के उत्तराधिकार और विरासत पर उनके रास्ते जुदा हो गए.
सुन्नाह यानी परंपरा को मानने वाले सुन्नी कहलाए जबकि शियाओं को उनका नाम "शियान अली" से मिला, जिसका अर्थ होता अली के अनुयायी. इस तरह दोनों की धड़ों का मूल एक ही है. लेकिन पैगंबर मोहम्मद के उत्तराधिकार और विरासत पर उनके रास्ते जुदा हो गए.
कितने शिया और कितने सुन्नी
दुनिया में अब 1.5 अरब से ज्यादा मुसलमान हैं. इनमें 85 से 90 फीसदी संख्या सुन्नी हैं जबकि 10 प्रतिशत शिया हैं. संख्या से हिसाब से देखा जाए तो दुनिया भर में सवा अरब से ज्यादा सुन्नी हैं, वहीं शियाओं की तादाद 15 से 20 करोड़ मानी जाती है.
दुनिया में अब 1.5 अरब से ज्यादा मुसलमान हैं. इनमें 85 से 90 फीसदी संख्या सुन्नी हैं जबकि 10 प्रतिशत शिया हैं. संख्या से हिसाब से देखा जाए तो दुनिया भर में सवा अरब से ज्यादा सुन्नी हैं, वहीं शियाओं की तादाद 15 से 20 करोड़ मानी जाती है.
भेदभाव, शोषण, शिकायतें
सऊदी अरब, मिस्र और जॉर्डन समेत दुनिया के एक बड़े हिस्से में सुन्नी मुसलमान रहते हैं. वहीं ईरान, इराक, बहरीन, अजरबैजान और यमन में शिया बहुसंख्यक हैं. सुन्नी शासन वाले देशों में शिया अकसर भेदभाव और शोषण की शिकायत करते हैं.
सऊदी अरब, मिस्र और जॉर्डन समेत दुनिया के एक बड़े हिस्से में सुन्नी मुसलमान रहते हैं. वहीं ईरान, इराक, बहरीन, अजरबैजान और यमन में शिया बहुसंख्यक हैं. सुन्नी शासन वाले देशों में शिया अकसर भेदभाव और शोषण की शिकायत करते हैं.
प्रतिद्वंद्वी
ईरान 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद एक अहम शिया ताकत के तौर पर उभरा है जिसे सुन्नी सरकारें और खास कर खाड़ी देशों की सरकारें अपने लिए चुनौती समझती हैं. मध्य पूर्व में ईरान और सऊदी अरब को एक दूसरे का प्रतिद्वंद्वी माना जाता है.
ईरान 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद एक अहम शिया ताकत के तौर पर उभरा है जिसे सुन्नी सरकारें और खास कर खाड़ी देशों की सरकारें अपने लिए चुनौती समझती हैं. मध्य पूर्व में ईरान और सऊदी अरब को एक दूसरे का प्रतिद्वंद्वी माना जाता है.
सियात की धुरी
मध्य पूर्व के देशों के बीच अकसर शिया सुन्नी विवाद सियासत की धुरी होता है. ईरान जहां शिया विद्रोहियों और शासकों का समर्थन करता है, वहीं सऊदी अरब सुन्नी धड़े के साथ मजबूत से खड़ा रहता है. ईरान और यमन के संकट इसकी एक मिसाल है
मध्य पूर्व के देशों के बीच अकसर शिया सुन्नी विवाद सियासत की धुरी होता है. ईरान जहां शिया विद्रोहियों और शासकों का समर्थन करता है, वहीं सऊदी अरब सुन्नी धड़े के साथ मजबूत से खड़ा रहता है. ईरान और यमन के संकट इसकी एक मिसाल है
टकराव
ईरान के साथ जब पश्चिमी देशों ने परमाणु समझौते पर डील की तो सऊदी अरब उसका बड़ा आलोचक था. ईरान और सऊदी अरब आए दिन एक दूसरे पर बयान दागते रहते हैं. कूटनीतिक तनाव के बीच सऊदी अरब ने 2016 में ईरानी लोगों को अपने यहां हज पर भी नहीं आने दिया था.
#REUTERS डी डब्ल्यू
ईरान के साथ जब पश्चिमी देशों ने परमाणु समझौते पर डील की तो सऊदी अरब उसका बड़ा आलोचक था. ईरान और सऊदी अरब आए दिन एक दूसरे पर बयान दागते रहते हैं. कूटनीतिक तनाव के बीच सऊदी अरब ने 2016 में ईरानी लोगों को अपने यहां हज पर भी नहीं आने दिया था.
#REUTERS डी डब्ल्यू
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