Thursday, 21 September 2017

.आइंस्टीन का सापेक्षिता का सिद्धांत और वेद...!
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वेदो के भाष्य पुराणों में एक कथा है..... कुछ इस प्रकार कि राजा रैवतक की पुत्री का नाम रेवती था। वह सामान्य कद के पुरुषों से बहुत लंबी थी, राजा उसके विवाह योग्य वर खोजकर थक गये और चिंतित रहने लगे। थक हारकर वो योगबल के द्वारा पुत्री को लेकर ब्रह्मलोक गए।
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राजा जब वहां पहुंचे तब गन्धर्वों का गायन समारोह चल रहा था, राजा ने गायन समाप्त होने की प्रतीक्षा की।
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गायन समाप्ति के उपरांत ब्रह्मदेव ने राजा को देखा और पूछा कहो, कैसे आना हुआ?
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राजा ने कहा हे ब्रह्मदेव..... मेरी पुत्री के लिए किसी वर को आपने बनाया अथवा नहीं??????
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ब्रह्मा जी जोर से हँसे और बोले जब तुम आये तब तक तो नहीं...... पर जिस कालावधि में तुमने यहाँ गन्धर्वगान सुना उतनी ही अवधि में पृथ्वी पर 27 चतुर्युग बीत चुके हैं और 28 वां द्वापर समाप्त होने वाला है....अब तुम वहाँ जाओ...... और कृष्ण के बड़े भाई बलराम से इसका विवाह कर दो... अच्छा हुआ कि तुम रेवती को अपने साथ लाए जिससे इसकी आयु नहीं बढ़ी।
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अब विज्ञान की ओर आइए.... प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन की एक थ्योरी पढ़ाई जाती है... थ्योरी आफ रिलेटिविटी ....
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आर्थर सी क्लार्क ने आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी की व्याख्या में एक पुस्तक लिखी है मैन एंड स्पेस, उसमे गणना है कि 10 वर्ष का बालक यदि प्रकाश की गति वाले यान में बैठकर एंड्रोमेडा गैलेक्सी का एक चक्कर लगाये.... तो वापस आने पर उसकी आयु मात्र 66 वर्ष की होगी जबकि धरती पर 40 लाख वर्ष बीत चुके होंगे।....
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अब आप स्वयं सोचिए.... जो बात वैज्ञानिकों को जानने में इतना समय लगा... वो बात काफी पहले ही सनातन वैदिक ग्रंथों में सन्निहित थी....यानि कि तब के विद्वान इसके बारे में काफी कुछ जानते थे,,,,
और इस महान सनातन धर्म के होते हुए धरती को चपटी बताने वाले मजहब के लोग अपने धर्म को श्रेष्ठ बतायें तो इससे बड़ा मजाक कुछ नहीं हो सकता...!

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