Wednesday, 11 October 2017

 मांस सेवन हानिकार क्यों है? ***
शोध (रिसर्च) पढ़ेंगे तो ज्ञात होगा कि -
१/- अगर मांस न खाया जाए तो इस धरती पर आज के आबादी से छः गुणा अधिक आबादी के लिए भी पर्याप्त पौष्टिक भोजन उपलब्ध करने की क्षमता इस धरती में है।
२/- मांस निर्यात करने के लिए पहला खर्च पशु पालने में जाता है।
३/- दूसरा जो खाद्य पदार्थ मानव ने परिश्रम कर उत्पन्न किए है उसे वह उस पशु को कई दिनों वा महिनों तक खिलाते है जिसका आंकड़ा आपको अचंभित कर देगा। खिलाए गए अन्न और पाए जाने वाले मांस कि तुलना करें तो जमीन आसमान की अंतर है।
४/- समय आने पर जब वह उस पशु को मारता-काटता है तो उस समय पशु के रुदन से पर्यावरण बहुत ही ( कई % तक) दूषित होती है। पर्यावरण दूषित होने के कई कारणों में यह भी एक अहम कारण है।
५/- फिर उस मांस को पानी से धोया जाता है और इसमें बहुत पानी खर्च होती है एक किलो मांस धोने में कई लीटर पानी लगती है। पानी बरबादी का भी एक अहम कारण है मांस निर्यात।
६/- इस मांस में कई तरह के संक्रामक कीटाणु (virus & bacteria) उत्पन्न होते हैं जो आए दिन इस धरती पर कोई न कोई रोग ला कर कई लोगों को यमराज के हवाले करते रहते है।
६/- मोटापा, हृदय के कई बीमारी एवम् कैंसर होने के अहम कारणों में मांस सेवन भी एक बहुत ही अहम कारण है। मांस भक्षण द्वारा निकला एमोनिया (carcinogenic) मानव कि लम्बी अंतों में लम्बे समय तक रहने के कारण कैंसर की संभावना बढ़ती है।
७/- मांस भक्षण करना पर्यावरण को दूषित करना है और कई प्रकार के प्राणघातक रोगों को निमंत्रण देना है।
और अध्यातमिक दृष्टि से देखें तो -
मासूम प्राणियों को कई प्रकार कष्ट दे कर प्राप्त किया हुआ मांस मन को चंचल बनाता है, उग्र बनाता है, राक्षसी प्रवृति को बढ़ावा देता हैं और आत्मदर्शन में बाधा होती हैं।
*** क्या शाकाहार भोजन उपलब्ध करने में मांस निर्यात जैसे दुष्परिणाम हैं? आप खुद सोचें-विचारें।
पेड़ में भी जीवात्मा (आत्मा) है पर जैसे नाखुन को काटने से व्यक्ति को दर्द नहीं होता उसी तरह आम (या कोई भी फल) तोड़ कर खाने से पेड़ को दर्द नहीं होता क्यों की पेड़ में नस तंत्रिका उन्नत नहीं है।
और काटने वाले पौधों कि बात करें तो, पौधे जब सूख कर जीवमुक्त हो जाते है, तब उन पौधों को काट या उखाड़ कर अन्न निकाली जाति है।
*** लोग मांसा भक्षण क्यों करते है? ***
हमारे महान ऋषियों की दूरदृष्टी कृपा से आर्यावर्त में शाकाहार का ही चलन था। कुछ मांसाहारी लोग हमेशा ही रहे, पर बहुत ही कम रहे।
सत्य ज्ञान से हीन तथाकथित पश्चिमी विद्वानों ने दुष्प्रचार किए कि कई पौष्टिक पदार्थ केवल मांस से ही प्राप्त किया जा सकता है। जबकि आज यह बात उन्हीं पश्चिमी विद्वानों द्वारा पूर्णतया गलत सिद्ध हो गया है। इतना ही नहीं बल्की पश्चिमी शोध से ये भी पता चलता है कि शाकाहार द्वारा प्राप्त प्रोटीन मांसाहार द्वारा प्राप्त प्रोटीन से बहुत ही लाभदायक है। निपक्ष पूर्ण किए गए कई शोध मिल जाएंगे।
यमदूत रूपी और राक्षसी प्रवृति को जन्म देने वाली मांस को कुछ लोग इस अंध विश्वास में खाते है कि ये पौष्टिक आहार है पर अधिकांश लोग केवल और केवल अपने स्वाद रूपी स्वार्थ को पूर्ण करने के लिए खाते है। कोई भी किसी भी कारणवश मांस का सेवन करें, रसायनिक विघटन (chemical changes) अपना धर्म अनुसार घटेगी ही है और मांसभक्षी पर्यावरण दूषित करने एवम् मानव जाति के लिए अहितकारी कई दुष्परिणामों को उत्पन्न करने में सहयोग देने वाले होते है।

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