दिल्ली पुलिस की छापे मारी में अब तक 1182 किलो पटाखे बरामद
ये हिंदुओं का हिंदुस्तान है??
ये हिंदुओं का हिंदुस्तान है??
सुप्रीम कोर्ट समेत पूरी न्याय व्यवस्था की जांच की जरुरत ...
केवल दिवाली पर दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के औरंगजेबी फैसले को लेकर अभी तक देश में गुस्सा शांत भी नहीं हुआ था कि सुप्रीम कोर्ट ने एक और ऐसा शर्मनाक फैसला सुना दिया है, जिसे देख कर अब तो देश की सर्वोच्च अदालत की निष्ठा पर ही शक होने लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने आज देश की जनता द्वारा चुनी गयी पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार के मुँह पर तमाचा मारते हुए ऐसा बेहूदा फैसला सुनाया है, जिससे देश की सुरक्षा ही खतरे में पड़ गयी है.
जब दिल्ली में प्रदूषण के लिए 64% pet cock जिम्मेदार है तो सुप्रीम कोर्ट के जजों और CPCB की काबलियत पर सवाल खड़े करना जरूरी हो जाता है...पेटकोक यानी पेट्रोलियम उत्पादों से पैदा ऊर्जा। जिससे हर साल 3000 लोग दिल्ली में मरते हैं।
सवाल यह भी खड़ा होता है, यही सुप्रीम कोर्ट जब तीन तलाक पर फैसले से पहले इस्लाम के स्वतंत्र और मजलिसी एक्सपर्ट्स को बुलाकर राय लेती है, वही सुप्रीम कोर्ट, प्रदूषण के निर्णय पर महज एक सरकारी एजंसी की राय पर निर्णय सुना देती है। जबकि कोर्ट का पर्यावरण ज्ञान शून्य है।
वाकई, लोकतंत्र में बहुसंख्य लेकिन बहुमूर्ख समाज को मूर्ख घोषित करने के लिए रायशुमारी की जरूरत नहीं है।
"कभी सुना है कि स्पेन ने भैंसों पर जारी क्रूरता की वजह से भैंस युद्ध पर पाबंदी कर दी हो, या टमाटर की बर्बादी को देख टमाटर की होली (tomatino) पर पाबन्दी लगा दी हो?
ध्यान दीजिए स्पेन एक ईसाई देश होने के बावजूद अपनी मूल, क्षेत्रीय एवम घरेलू संस्कृति को बनाये रखता है। लेकिन क्या हिंदुस्तान में यह चीज़ संभव लग रही है? वामपंथी मीडिया के उल-जुलूल, एक-पक्षीय शोध या साहित्य को पढ़ कर हम और आप अपने विचारों में वही ज़हर घोल रहे है जो ईसाई मिशनरिया चाहती हैं"--
"कभी सुना है कि स्पेन ने भैंसों पर जारी क्रूरता की वजह से भैंस युद्ध पर पाबंदी कर दी हो, या टमाटर की बर्बादी को देख टमाटर की होली (tomatino) पर पाबन्दी लगा दी हो?
ध्यान दीजिए स्पेन एक ईसाई देश होने के बावजूद अपनी मूल, क्षेत्रीय एवम घरेलू संस्कृति को बनाये रखता है। लेकिन क्या हिंदुस्तान में यह चीज़ संभव लग रही है? वामपंथी मीडिया के उल-जुलूल, एक-पक्षीय शोध या साहित्य को पढ़ कर हम और आप अपने विचारों में वही ज़हर घोल रहे है जो ईसाई मिशनरिया चाहती हैं"--
सुप्रीम कोर्ट ने लगाया अड़ंगा
एक ओर बांग्लादेश खुद रोहिंग्यों को म्यांमार वापस भेज रहा है, दूसरी ओर खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट कह रही हैं कि रोहिंग्या आतंकवादी संगठनों से जुड़े हुए हैं. मगर सुप्रीम कोर्ट भारत सरकार के ही खिलाफ खड़ा हो गया है. सबसे बड़ा सवाल है कि कौन सी मानवता की बात कर रहे हैं मी लार्ड ? जिन रोहिंग्यों ने म्यांमार में आतंक मचाया और म्यांमार सेना की कार्रवाई के बाद वहां से भागकर भारत में घुस गए, उनके साथ कौन सी मानवता जोड़कर देख रहे हैं सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश साहब ? रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस म्यांमार भेजने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मानवता को बीच में घुसाते हुए उन्हें निकालने पर रोक लगा दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मानवीय मूल्य हमारे संविधान का आधार है. देश की सुरक्षा और आर्थिक हितों की रक्षा जरूरी है लेकिन, पीड़ित महिलाओं और बच्चों की अनदेखी नहीं की जा सकती. सुप्रीम कोर्ट का ऐसा बेहूदा फैसला देख कर तो खुद भारत सरकार तक दंग रह गयी है.
जिन्होंने म्यांमार में ना केवल बुद्धिस्ट लोगों को मारा बल्कि पूरी की पूरी हिन्दुओं की बस्तियों को ही मार कर सामूहिक कब्रें बना दी, उनके साथ कौन सी मानवता का ढोंग कर रही है शीर्ष अदालत? कश्मीरी पंडितों को उनके ही राज्य से कत्ले-आम करके निष्कासित कर दिया गया, तब कहाँ थी शीर्ष अदालत? तब मानवता का ख्याल नहीं आ रहा था?
शुरू हुआ तारीख पर तारीख का सिलसिला
आतंकियों को मारते हुए आये दिन सेना के जवान शहीद हो रहे हैं, अब रोहिंग्या आतंकियों को भी झेले भारतीय सेना? सेना के जवानों के मानवाधिकार हैं या नहीं? दिवाली पर पटाखें नहीं बिकेंगे, इसकी पुनर्विचार याचिका पर तो एक ही दिन में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए इनका कर दिया. रोहिंग्या के मुद्दे पर तारीख पर तारीख दी जा रही है.
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक़ रोहिंग्या मामला मानवता का बड़ा मुद्दा है. ये मानवीय समस्या है. कोर्ट का कहना है कि. ‘बच्चों, महिलाओं और अक्षम लोगों की सुरक्षा पर विचार करना है. राज्य की भूमिका चौतरफा होती है और ये मानवीय होनी चाहिए. अगर कोई व्यक्ति अपने कार्य से आतंकी है तो उस पर कार्रवाई हो, लेकिन बेकसूर परेशान ना हों.’
इससे पहले केंद्र सरकार ने रोहिंग्या घुसपैठियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक और हलफ़नामा दायर किया था. केंद्र सरकार ने अपने हलफ़नामे में कहा है कि रोहिंग्या को वापस म्यांमार भेजने का फ़ैसला परिस्थितियों, कई तथ्यों को लेकर किया गया है जिसमें राजनयिक विचार, आंतरिक सुरक्षा, कानून व्यस्था, देश के प्रकृतिक संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ और जनसांख्यिकीय परिवर्तन आदि शामिल है.
संविधान नागरिकों के लिए है, ना कि घुसपैठियों के लिए
केंद्र सरकार ने अपने हलफ़नामे में कहा कि रोहिंग्या ने अनुछेद 32 के तहत जो याचिका दाखिल है कि वो सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि अनुछेद 32 देश के नागरिकों के लिए है न कि अवैध घुसपैठियों के लिए. केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा कि कुछ रोहिंग्या देश विरोधी और अवैध गतिविधियों में शामिल है जैसे हुंडी, हवाला चैनल के जरिये पैसों का लेनदेन, रोहिंग्यो के लिए फर्जी भारतीय पहचान संबंधी दस्तावेज़ हासिल करना और मानव तस्करी.
रोहिंग्या अवैध नेटवर्क के जरिये अवैध तरीके से भारत में घुसाते है. बहुत सारे रोहिंग्या पेन कार्ड और वोटर कार्ड जैसे फर्जी भारतीय दस्तावेज हासिल कर चुके हैं. केंद्र सरकार ने ये भी पाया है ISI और ISIS और अन्य चरमपंथी ग्रुप बहूत सारे रोहिंग्यो को भारत के संवेदनशील इलाकों में साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने की योजना का हिस्सा है.
टैक्स देने वाले बहुसंख्यक अब घुसपैठियों को खिलाएंगे खाना
केंद्र सरकार ने अपने हलफ़नामे में ये भी कहा था कि भारत में जनसंख्या काफी ज्यादा है और सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक ढांचा जटिल है ऐसे में अवैध रूप से आए हुए रोहिंग्यो को देश में उपलब्ध संसाधनों में से सुविधाएं देने से देश के नागरिकों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा क्योंकि इससे भारत के नागरिकों और लोगों को रोजगार, आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा से वंचित रहना पड़ेगा. साथ ही इनकी वजह से सामाजिक तनाव बढ़ सकता है और कानून व्यस्था में दिक्कत आएगी.
भारत दुनिया का पहला देश है, जहाँ के अपने नागरिक अपने ही राज्य से निर्वासित घूम रहे हैं और उन पर सुप्रीम कोर्ट के जजों को दया नहीं आ रही है लेकिन रोहिंग्या घुसपैठियों को लेकर दिल पसीजा जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट समेत पूरी न्याय व्यवस्था की जांच की जरुरत
अब ऐसा लगने लगा है कि किसी अन्य की जांच कराने से पहले भारत सरकार को सुप्रीम कोर्ट में बैठे जजों की ही जांच कराने की जरुरत है. इनके और इनके परिवारजनों के अकाउंट, संपत्ति जैसी जानकारियां जुटाने की जरुरत है कि कहीं देश विरोधी तत्व फंडिंग तो नहीं कर रहे हैं?
साथ ही जजों की नियुक्ति करने के अंग्रेजों द्वारा बनाये गए कोलेजियम सिस्टम को जल्द से जल्द ख़त्म करने की जरुरत है, क्योंकि इसका दुरूपयोग काफी वक़्त से हो रहा है. भारत सरकार को यदि काम करने ही नहीं देना है, तो चुनाव कराने का नाटक करने की भी क्या जरुरत है? सुप्रीम कोर्ट के जज सीधे संसद में ही आकर बैठ क्यों नहीं जाते, वही चला लें सीधे सरकार.
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