Friday 27 October 2017

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पाकिस्तान के पास जो सबसे बड़ा हथियार है वह उसका परमाणु बम नहीं ...
 वे 33 करोड़ मुसलमान हैं जो हमारे देश में रह रहे हैं....
यह स्ट्रेटेजिक डॉक्ट्राइन 80 के दशक में जनरल जिया-उल-हक ने दी थी. उसने कहा था कि जब भारत में पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमान हैं तो हमें अपने फौजी लड़ने के लिए भेजने की क्या जरूरत है?
तब से पाकिस्तान ने भारत के मुसलमानों को रेडिकलाइज (उग्र) करने में इन्वेस्ट (funding)करना शुरू किया. भारत की कॉन्ग्रेस सरकार ने indirectly एक तरह से समर्थन दे दिया।
अगर बिलकुल कट्टर याने दंगाई मुसलामानों की भी जोड़ेंगे तो ये पूरे भारत की फौजों से तीस - पेंतीस गुना ज्यादा पड़ेंगे। अब अगर पाकिस्तान इन्हें भारत में दंगे-फसाद फैलाने का सिग्नल दे दे, तो आप कैसे संभालोगे?
बाकी के बचे मुसलमान भी या तो मूक दर्शक बनकर हवा का रुख भांपेंगे, या शोर मचाएँगे कि मुसलमानों के साथ कितना अत्याचार हो रहा है. वामपंथी पुरस्कार लौटाने लगेंगे और कांग्रेस जैसे दल सियार की तरह 'हुआँ हुआँ' करने लगेंगे। अगर दो-चार प्रतिशत मुसलमान सचमुच इसके विरोध में भी होंगे तो वे वैसे ही अप्रासंगिक होंगे जैसे 1947 के पहले थे.
भारत के अलग-अलग शहरों में किसी ना किसी बहाने से पचास हजार-एक लाख और ढाई लाख तक मुसलमान मारकाट करने को जुटे हैं, इसलिए कोई कल्पना मत समझिये। हाल ही में पश्चिम बंगाल मालदा की घटना आपके सामने है.
मुंबई के हिंसक प्रदर्शन आप देख चुके भुगत चुके हैं. कभी किसी हिन्दू त्योहार के मौके पर, या कहीं पैगम्बर से गुस्ताखी के विरोध के बहाने से. यह सब उसी मारक हथियार की मिकेनिज्म को दंगे के बहाने पाकिस्तान टेस्ट करता है।
आतंकी हमलों के विरोध में पाकिस्तान पर आस्तीनें चढ़ाना अपनी जगह है. पर कोई लड़ाई छेड़ने से पहले यह सोच लीजिए कि उनके इस हथियार का आपके पास क्या जवाब है? इस लड़ाई को सरकार तो नहीं लड़ पायेगी, सब आपके हाथ होगा, क्योंकि सेना देश के हरेक मोहल्ले में तो नहीं जाएगी।
(पिछले साल की पोस्ट)
अरून शुक्ला
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आर्मी ..मोदी ..और मेरे अनुभव !!!
दौर था वर्ष 1990 .91 का ...उस समय कश्मीर में तैनात सुरक्षावलो के आत्मविश्वास को तत्कालीन सरकार ने अत्यंत कमजोर कर दिया था ...चरम आतंकवाद के दौर में एक आतंकवादी को भी मारने के बाद सुरक्षावलो को तमाम तरह की सफाई और सबूत देने होते थे ......दिन ढलने के बाद रातो को सुरक्षा वलो से मुलाक़ात में उनका दर्द सुनने को मिलता था ...आतंकवाद के खिलाफ सुरक्षावलो के हाँथ लगभग बाँध रक्खे थे सरकार ने ..उस दौर के अर्जित मेरे अनुभव आज भी मेरे जेहन में ज़िंदा है ..समय गुजरता रहा ...
 फिर दौर आया अटल विहारी बाजपेयी की राजग सरकार का ..उस दौर में भी अल्पमत सरकार होने के कारण बैसा माहौल नहीं बन पाया जैसा पिछले तीन सालो में बना .कुछ समय पहले जम्मू श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर रामवन के पास BSF और Army के अधिकारियों से कई मुलाकाते हुयी ....मेरा सवाल था ..पहले के दौर और मोदी सरकार में आप क्या फर्क पाते है ..उत्तर था .हम फायर करने से पहले दो बार नहीं सोचते ,.अब दिल्ली की सरकार हमारे साथ है ...दुश्मन के खिलाफ हमारा फायर अनुपात कभी कभी 01 : 10 का भी होता है ..खैर ये तथ्य हुए थोड़े से पुराने .
.आज बंगाल से बापसी की यात्रा में ट्रेन में कई फौजियों से मुलाक़ात हुयी जिनमे से कुछ सेना में थे और कुछ BSF में .चर्चा के दौरान मेरा वही पुराना सवाल ...मोदी युग में आप कैसा महसूस करते हो भाई ..सभी का उत्तर था .आज तक ऐसा प्रधानमन्त्री नहीं देखा ..OROP , सेना को मिल रहे नए आधुनिक हथियार तथा माहौल महसूस कराता है की सच में दिल्ली में बैठा देश का प्रधान जनसेवक हमारे दर्द और मेहनत को महसूस कर रहा है !

पवन अवस्थी
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