Thursday, 5 October 2017

हिन्दू वीरांगना रानी दुर्गावती , जिसने अकबर की सेना को तीन बार युद्ध में हराया
भारत के इतिहास में राजपूतो का एक अलग ही इतिहास रहा है जिनके शौर्य का लोहा पूरा भारतवर्ष मानता था | राजपूत अपनी मातृभूमि के लिए जान देने को तत्पर रहते थे | इन्ही राजपूतो में से एक ऐसी रानी भी हुयी थी जिससे आगमन से मुगल तक काँप गये थे | अन्य राजपूतो की तरह रानी दुर्गावती ने भी दुश्मन के सामने कभी घुटने नही टेके थे | रानी दुर्गावती ना केवल एक वीर योद्धा बल्कि एक कुशल शाषक भी थी जिसने अपने शाशनकाल में विश्व प्रसिद्ध इमारतो खजुराहो और कलिंजर का किला बनवाया था |अगर हम भारत की महान और वीर औरतो की बात करे तो रानी लक्ष्मीबाई की तरह रानी दुर्गावती का नाम भी स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है | आइये आज हम आपको उसी वीरांगना रानी दुर्गावती की जीवनी से रूबरू करवाते है |
रानी दुर्गावती का प्रारम्भिक जीवन
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 ईस्वी को एक एतेहासिक राजपुताना परिवार में हुआ था | रानी दुर्गावती के पिता चंदेल राजपूत शाषक राजा सालबान और माँ का नाम माहोबा था | 1542 में दुर्गावती का विवाह गोंड़ साम्राज्य के संग्राम शाह के बड़े बेटे दलपत शाह के साथ करवा दिया गया | इस विवाह के कारण ये दो वंश एक साथ हो गये थे | चन्देल और गोंड के सामूहिक आक्रमण की बदौलत शेर शाह सुरी के खिलाफ धावा बोला गया था जिसमे शेरशाह सुरी की मौत हो गयी थी |
1545 में दुर्गावती ने एक बालक वीर नारायण को जन्म दिया था | बालक के जन्म के पांच साल बाद ही दलपत शाह की मौत हो गयी थी जिससे सिंहासन रिक्त हो गया था और बालक शिशु नारायण अभी गद्दी सम्भालने को सक्षम नही था | दलपत शाह के विरोधी एक योग्य उम्मीदवार की तलाश कर रहे थे तभी रानी दुर्गावती ने राजपाट खुद के हाथो में ले लिया और खुद को गोंड साम्राज्य की महारानी घोषित कर दिया | रगोंड साम्राज्य का कार्यभार अपने हाथो में आते ही उसने सबसे पहले अपनी राजधानी सिंगुरगढ़ से चौरागढ़ कर दी क्योंकि नई राजधानी सतपुड़ा पहाडी पर होने की वजह से पहले से ज्यादा सुरक्षित थी |
रानी दुर्गावती एक वीरांगना के रूप में
रानी दुर्गावती ने अपने पहले ही युद्ध में भारत वर्ष में अपना नाम रोशन कर लिया था | शेरशाह की मौत के बाद सुरत खान ने उसका कार्यभार सम्भाला जो उस समय मालवा गणराज्य पर शाशन कर रहा था | सुरत खान के बाद उसके पुत्र बाजबहादुर ने कमान अपने हाथ में ली जो रानी रूपमती से प्रेम के लिए प्रसिद्ध हुआ था | सिंहासन पर बैठते ही बाजबहादुर को एक महिला शाषक को हराना बहुत आसान लग रहा था इसलिए उसने रानी दुर्गावती के गोंड साम्राज्य पर धावा बोल दिया |
बाज बहादुर की रानी दुर्गावती को कमजोर समझने की भूल के कारण उसे भारी हार का सामना करना पड़ा और उसके कई सैनिक घायल हो गये थे | बाजबहादुर के खिलाफ इस जंग में जीत के कारण अडोस पडोस के राज्यों में रानी दुर्गावती का डंका बज गया था | अब रानी दुर्गावती के राज्य को पाने की हर कोई कामना करने लगा था जिसमे से एक मुगल सूबेदार अब्दुल माजिद खान भी था | ख्वाजा अब्दुल मजिद आसफ खान कारा मणिकपुर का शाषक था जो रानी का नजदीकी साम्राज्य था | जब उसने रानी के खजाने के बारे में सुना तो उसने आक्रमण करने का विचार बनाया |
अकबर से आज्ञा मिलने के बाद आसफ खान भारी फ़ौज के साथ गर्हा की ओर निकल पड़ा | जब मुगल सेना दमोह के नजदीक पहुची तो मुगल सूबेदार ने रानी दुर्गावती से अकबर की अधीनता स्वीकार करने को कहा | तब रानी दुर्गावती ने कहा “कलंक के साथ जीने से अच्छा गौरव के साथ मर जाना बेहतर है | मैंने लम्बे समय तक अपनी मातृभूमि की सेवा की है और अब इस तरह मै अपनी मातृभूमि पर धब्बा नही लगने दूंगी | अब युद्ध के अलावा कोई उपाय नही है ” |रानी ने अपने 2000सैनिको को युद्ध के लिए तैयार किया |
रानी दुर्गावती के सलाहकारो ने रानी को किसी सुरक्षित स्थान पर जाने को कहा जब तक कि उसकी सारी सेना एकत्रित नही हो जाती है | सलाहकारों का मशहोरा मानते हुए रानी नराई के जंगलो की तरफ रवाना हो गयी | इस दौरान असफ खान गर्हा पहुच गया था और गणराज्यो को हथियाने का काम उसने शुरू कर दिया था | जब उसने रानी के बारे में खबर सूनी तो वो अपनी सेना को गर्हा में छोडकर उसके पीछे रवाना हो गया | आसफ खान की हलचल को सुनते हुए रानी ने अपने सलाहकारों और सैनिको को समझाते हुए कहा “हम कब तक इस तरह जंगलो में शरण लेते रहेंगे ” | इस तरह रानी दुर्गावती ने एलन किया कि या तो वो जीतेंगे या वीरो की तरह लड़ते हुए शहीद हो जायेंगे |
अब रानी दुर्गावती ने युद्ध वस्त्र धारण कर सरमन हाथे पर सवार हो गयी | अब भीषण युद्ध छिड गया जिसमे दोनों तरफ के सैनिको को काफी क्षति पहुची | इस युद्ध में रानी विजयी हुयी और उसने भगोड़ो का पीछा किया | दिन के अंत तक उसने अपने सलाहकारों से बात की | उसने दुश्मन पर रात को आक्रमण करने की योजना बनाई क्योंकि सुबह होते ही आसफ खान फिर आक्रमण बोल देगा लेकिन किसी ने उसकी बात नही मानी | लेकिन सुबह उसने जैसा सोचा वैसा ही हुआ और आसफ खान ने हमला बोल दिया | रानी अपने हाथी सरमन के साथ रणभूमि में उतर गयी और युद्ध के लिए तैयार हो गयी |
तीन बार उसने अकबर की सेना को धुल चटाकर हरा दिया था लेकिन इस युद्ध में उनका पुत्र राजा वीर बुरी तरह घायल हो गया था जो मुगलों के साथ वीरता से लड़ रहा था | जब रानी ने ये खबर सूनी तो उसने तुरंत अपने भरोसेमंद आदमियों के साथ अपने पुत्र को सुरक्षित स्थान पर ले जाने को कहा लेकिन इस प्रक्रिया में कई सैनिक राजा वीर के साथ चले गये थे |
Last Moments (24 June 1564)
अब भी रानी बाहादुरी के साथ लड़ रही थी तभी अचानक एक तीर रानी दुर्गावती की गर्दन के एक तरफ घुस गया | रानी दुर्गावती ने बाहुदुरी के साथ वो तीर बाहर निकाल दिया लेकिन उस जगह पर भारी घाव बन गया था | इस तरह एक ओर तीर उनकी गर्दन के अंदर घुस गया जिसको भी रानी दुर्गावती ने बाहर निकाल दिया लेकिन वो बेहोश हो गयी |जब उसे होश आया तो पता चला कि उनकी सेना युद्ध हार चुकी थी | उसने महावत से कहा “मैंने हमेशा से तुम्हारा विश्वास किया है और हर बार की तरह आज भी हार के मौके पर तुम मुझे दुश्मनों के हाथ मत लगने दो और वफादार सेवक की तरह इस तेज छुरे से मुझे खत्म कर दो “|
महावत ने मना करते हुए कहा “मै कैसे अपने हाथो को आपकी मौत के लिए उपयोग कर सकता हुआ , जिन हाथो को हमेशा मैंने आपसे ऊपहार के लिए आगे किया था , मै बस आपके लिए इतना कर सकता हु कि आपको इस रणभूमि से बाहर निकाल सकता हु , मुझे अपने तेज हाथी पर पूरा भरोसा है ” | ये शब्द सुनकर वो नाराज हो गयी और बोली “क्या तुम मेरे लिए ऐसे अपमान को चयन करते हो” तभी रानी दुर्गावती ने चाक़ू निकाला और अपने पेट में घोंप दिया और वीरांगना की तरह वीरगति को प्राप्त हो गयी | इसके बाद आसफ खान ने चौरागढ़ पर हमला बोल दिया तब रानी दुर्गावती का पुत्र उसका सामना करने के लिए आया लेकिन उसे मार दिया गया | रानी दुर्गावती की सारी सम्पति आसफ खान के हाथो में आ गयी | रानी दुर्गावती ने इस तरह 16 सालो तक वीरो की तरह शाषन करते हुए एक मिसाल कायम की जिसे भारतवर्ष कभी नही भुला सकता है |

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