Monday, 2 October 2017

प्रत्येक ने कहा कि मैं अकेला क्या कर सकता था ?
*प्लासी का युद्ध जीतने के बाद लॉर्ड क्लाइव ने विजय जुलूस निकालने का फैसला लिया, क्योंकि प्लासी का युद्ध भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना माना गया है। उस विजय जुलूस में सामने तथा अंत में ब्रिटिश सेना में कार्यरतभारतीय सैनिक थे तथा मध्य में सभी ब्रिटिश सैनिक थे।*
विजय जुलूस को देखने हजारों की संख्या में स्थानीय भारतीय जनता मौजूद थी। हजारों भारतीयों के बीच से जब उक्त विजय जुलूस गुजरा तो अचानक लॉर्ड क्लाइव के मन में एक विचार कौंधा, जिससे आतंकित होकर उसके शरीर के रोंगटे खड़े हो गए। पर जैसा उसने मन में कल्पना की थी, वैसा कुछ भी घटित नहीं हुआ तथा शांतिपूर्क विजय जुलूस ने अपना सफर पूरा किया।
लॉर्ड क्लाइव को अत्यन्त आश्चर्य हुआ। उसने सेना के बैरक में जाकर विश्वस्त सैनिकों की एक बैठक ली तथा दूसरे दिन अपने जासूसों को भारतीय जनता के विभिन्न वर्गों में जाकर यह पता लगाने का आदेश दिया कि विजय जुलूस में समस्त ब्रिटश सैनिक जब भारतीयों की भीड़ के मध्य में थे, तब उनके मन में ब्रिटश सैनिकों से बदला लेने की भावना जागृत हुई थी अथवा नहीं ? यदि उनमें प्रतिशोध की भावना जागृत हुई थी, तब उन्होंने ब्रिटिश सैनिकों के विरुद्ध कोई भी कार्रवाई क्यों नहीं की ? विभिन्न वर्गों से जानकारी प्राप्त कर शाम को लौटकर बैरक में अपन रिपोर्ट देने का आदेश दिया ।
सभी जासूसों ने आदेश का पालन किया और शाम को बैरक में लौटकर जो रिपोर्ट दी, उसमें आश्चर्यजनक रूप से समानता एवं एकरूपता थी। प्रत्येक जासूस ने लॉर्ड क्लाइव को रिपोर्ट दी वह निम्नानुसार थी।
*सभी ने कहा कि सभी भारतीयों के मन में ब्रिटिश सैनिकों के प्रति प्रतिशोध की तीव्र भावना जागृत हुई थी। पर प्रत्येक ने कहा कि मैं अकेला क्या कर सकता था ? मुझे तनिक भी भरोसा नहीं था कि ब्रिटिश सैनिकों के विरुद्ध कोइ कार्रवाई करने पर कोई भी मेरा साथ देगा।*
*इस कारण मैं खामोश रहा। भारतीयों में यह एकाकीपन की भावना आज भी प्रचुर मात्रा में विद्यमान होने के कारण वे किसी भी बुराई या गलत बात का विरोध नहीं कर पाते। इतिहास की इस घटना से हमारी आँखें खुल जाना चाहिए और हमें अपने आचरण में सुधार लाने का प्रयास करना चाहिए। सबके मन में समान रूप से* *प्रतिशोध की भावना होने के बावजूद परस्पर अविश्वास की भावना होने के कारण भारतीयों ने एक सुनहरा मौका गँवा दिया था। प्रत्येक व्यक्ति मन में ठाने कि हम कभी दुबारा ऐसा नहीं होने देंगे। यही इस ऐतिहासिक घटना का एकमात्र सही सबक है।*
*सर्वप्रथम आपस में एक दूसरे को नीचा दिखाने से बाज आयें और सब की सुनने की आदत डालें। जय हिन्द !*

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