Tuesday, 17 October 2017

भारत के कांग्रेस  मुक्त होने का प्रमुख कारण  हिन्दू और हिन्दुत्व से चिड़ ...
 सेक्यूलर के भेष में मुस्लिम-ईसाई दल... हिन्दू संस्कृति एवं परंपराओं को समाप्त करने के लिये प्रतिबद्ध 
सत्तर के अन्तिम दशक में जब मोरार जी देसाई की सरकार थी और लालकृष्ण अडवानी सूचना और प्रसारण मंत्री थे । केबिनट मिनिस्ट्री की मीटिंग होती थी जिसमे विपक्षी दल भी आते थे ।
मीटिंग की शुरुवात में ही एक वरिष्ठ कांग्रेस उठा और अपनी बात रखते हुए कहा कि ये रोज़ सुबह साढ़े छ बजे जो रेडिओ पर जो भक्ति संगीत बजता है, वो देश की धर्म निरपेक्षता के लिए खतरा है, इसे बंद किया जाना चाहिए। उसके कुछ सालों बाद बनारस हिन्दू युनिवेर्सिटी के नाम से हिन्दू शब्द हटाने की मांग भी उठी ।
लेकिन जब आडवाणी जी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से मुस्लिम शब्द हटाने का भी प्रस्ताव रखा तो मांग अचानक फुर्र हो गयी । तब से फिर कभी दुबारा जिक्र नही हुआ ।
अस्सी के दशक में भारत में पहली बार रामायण जैसे हिन्दू धार्मिक सीरियलों का दूरदर्शन पर प्रसारण शुरू हुआ और नब्बे का दशक आते आते महाभारत ने ब्लैक एंड वाईट टेलीविजन पर अपनी पकड मजबूत कर ली ।
जब रविवार को DD1 पर रामायण शुरू होता था ..तो देश की गलियां सुनी हो जाती थी ।
अपने आराध्य को टीवी पर देखने की ऐसी दीवानगी थी ।
रामायण और महाभारत इन दोनों धार्मिक सीरियलों ने नब्बे के दशक में हुए राम जन्मभूमि आन्दोलन के पक्ष में माहौल बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई थी । पर धर्म को अफीम समझने वाले कम्युनिस्टों से ये ना देखा गया और
नब्बे के दशक में कम्युनिस्टों ने इस बात की शिकायत राष्ट्रपति से की, कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में एक समुदाय के प्रभुत्व को बढ़ावा देने वाली चीज़े दूरदर्शन जैसे राष्ट्रीय चैनलों पर कैसे आ सकती है ??
इससे हिन्दुत्ववादी माहौल बनता है जो कि धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा है ।
इसी वजह से डरकर कोंग्रेस सरकार को उन दिनों अकबर दी ग्रेट टीपू सुलतान, अलिफ़ लैला और ईसाईयों के लिए “दयासागर" जैसे धारावाहिकों की शुरुवात भी दूरदर्शन पर करनी पड़ी ।
धीरे धीरे बिना किसी प्रचार व खबर के स्कूलों में रामायण और हिन्दू प्रतीकों और परम्पराओं को नष्ट करने के लिए सरस्वती वंदना कोंग्रेस शासन में ही बंद कर दी गई ।
महाराणा प्रताप की जगह अकबर का इतिहास पढ़ाना शुरू किया गया जो कांग्रेस सरकार की अनोखी देन थीं ।
केन्द्रीय विद्यालय (KV) का लोगो दीपक से बदल कर चाँद तारा रखने का सुझाव कांग्रेस का ही था ।
भारतीय लोकतंत्र में हर वो परम्परा या प्रतीक जो हिंदुओं के प्रभुत्व को बढ़ावा देता है, को सेकुलरवादियों के अनुसार धर्म निरपेक्षता के लिए खतरा है किसी सरकारी समारोह में दीप प्रज्वलन करने का भी ये विरोध कर चुके है ।
इनके अनुसार दीप प्रज्वलन कर किसी कार्य का उद्घाटन करना धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है, जबकि ईसाई पैटर्न से रिबन काटकर उद्घाटन करने से देश में एकता आती है ?
ये भूल गए है कि ये देश पहले भी हिन्दू राष्ट्र था और आज भी ये सेल्फ डिक्लेयर्ड हिन्दू नेशन है ।
आज भी भारतीय संसद के मुख्यद्वार पर “धर्म चक्र प्रवार्ताय" अंकित है,
 राज्यसभा के मुख्यद्वार पर “सत्यं वद –धर्मम चर“ अंकित है ।
भारतीय न्यायपालिका का घोष वाक्य है “धर्मो रक्षित रक्षितः“. 
और सर्वोच्च न्यायलय का अधिकारिक वाक्य है
 “यतो धर्मो ततो जयः ...“यानी जहाँ धर्म है वही जीत है ।
हाँ, सत्यम शिवम् सुन्दरम को समाचार से  कांग्रेस द्वारा हटा दिया गया है ।
ये भूल गए हैं कि आज भी सेना में किसी जहाज या हथियार टैंक का उद्घाटन नारियल फोड़ कर ही किया जाता है । ये भूल गए है कि भारत की आर्थिक राजधानी में स्थित बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में आज भी दिवाली के दिन लक्ष्मी गणेश की ही पूजा होती है । ये कम्युनिस्ट भूल गए है कि खुद के प्रदेश जहाँ कम्युनिस्टों का 34 साल शासन रहा वो बंगाल वहां आज भी घर घर में दुर्गा पूजा होती है । ये भूल गए है कि इस धर्म निरपेक्ष मुल्क में भी दिल्ली के रामलीला मैदान में खुद भारत के प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति राम लक्ष्मण की आरती उतारने लगे हैं ।

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