Saturday, 7 October 2017

*"अल - तकिया"*
 इसने इस्लाम के प्रचार प्रसार में जितना योगदान दिया है उतना  सैंकड़ों हजारों  की सेनायें नहीं कर पायीं ।इस हथियार का नाम है अल-तकिया... यदि इस्लाम के प्रचार,प्रसार अथवा बचाव के लिए किसी भी प्रकार का झूठ, धोखा , द्रऋह करना पड़े - सब धर्म स्वीकृत है। इस प्रकार अल - तकिया ने मुसलामानों को सदियों से बचाए रखा है ।
मुसलमानों के विश्वासघात के  उदाहरण -
1 -मुहम्मद गौरी ने 17 बार कुरआन और इस्लाम की कसम खाई थी कि भारत पर हमला नहीं करेगा, लेकिन हमला किया।
2 -अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तोड़ के राणा रतन सिंह को दोस्ती के बहाने बुलाया फिर क़त्ल कर दिया।
3 -औरंगजेब ने शिवाजी को दोस्ती के बहाने आगरा बुलाया फिर धोखे से कैद कर लिया।
4 -औरंगजेब ने कुरआन और इस्लाम की कसम खाकर श्री गोविन्द सिंह को आनद पुर से सुरक्षित जाने देने का वादा किया था फिर हमला किया था।
5 -अफजल खान ने दोस्ती के बहाने शिवाजी की ह्त्या का प्रयत्न किया था ।
6-मित्रता की बातें कहकर पाकिस्तान ने कारगिल पर हमला किया था। लोगों का विश्वास उठ चूका है मुसलमानों से..
एक ऐसी कौम जो गैर-मुस्लिमों को खत्म करने के लिए और इस्लाम को फैलाने के लिए अल्लाह, कुरआन, इस्लाम और मुहम्मद की झूठी क़सम खा लेते ताकि लोग उनपे विश्वास करें ये सच बोल रहा हैं फिर उस कसम को तोड़ घात लगाकर और मौका देखकर वार करते हैं। और ये ऐसी स्थिति है जिसको मुसलमान खुद समझ नहीं पा रहे हैं.. सिर्फ भारत की बात नहीं दुनिया के हर कोने में मुसलमानों को शक की नज़र से देखा जा रहा है.. मगर मुसलमान खुद हकीकत से मुह फेरे बैठे हैं.. ये स्थिति बहुत खतरनाक है और विचार करने योग्य है..मुसलमानों ने खुद दुनिया दो हिस्सों में बाँट राखी है एक मुस्लिम समाज और दूसरा गैर मुस्लिम समाज..
 
भाई भाई बोलने की सारी बातें बेईमानी है
परेशानी इस्लाम की शिक्षा से शुरू होती है.. इस्लामिक नज़रिए से दुनिया ही दो हिस्सों में बटी है .. अब सब लोग समझ चुके हैं.. काफिर, मुशरिक, मुनकिर.. अब लोगों को समझ आ गया है. अब बच्चा बच्चा जानता है कि काफिर किसको कहते हैं.. और फिर आप बोलते हो की लोग नफरत क्यों कर रहे हैं ? काफिर शब्द गाली की तरह इस्तेमाल करोगे फिर लोगों को समझोगे की काफिर मतलब सिर्फ वो जो अल्लाह को न माने. और शब्द के पीछे जो घृणा छिपी है उसको कैसे छिपाओगे ?लोग अब पढ़ रहे हैं और उनको पता है की कट्टर लोगों का दिल पूरे दुनिया में शरीया लागू करने में लगा है..

मुसलमानों को पूरी दुनिया के मुसलमानों की फ़िक्र रहती है.. जितना आक्रोश आपको इस्राईल पर आता है उतना आपको अपने देश में हुवे किसी और हादसे पर नहीं आता है..
लोग गूगल , ट्विटर , फेसबुक पर उसकी पैरवी करते हैं आप औरंगजेब और गौरी की तारीफ करो और लोग ये न समझ पाए की आपके दिल में क्या है ?अगर दिल में कुछ और हो और ज़बान पर कुछ और तो छोटे बच्चे भी आपकी नियत भांप जाते हैं .. बाकी दुनिया तो बड़ी और समझदार है ...लोग कैसे मान जाएँ की आप औरंगजेब की तारीफ़ करके उसकी शिक्षाओं को नहीं अपनाओगे भविष्य में?
मैं इस्लाम को इंसानियत का मज़हब उस दिन मानूंगा जिस दिन सऊदी अरब में मंदिर और गुरूद्वारे बनाने की इजाज़त मिलेगी और लोग खुले आम पूजा कर सकेंगे.. इस बात की कोई दलील ही नहीं दी जा सकती है की वो इस्लामिक देश है.. किसका इस्लामिक देश कैसा देश? अगर हम वहां दुसरे धर्मो को जगह नहीं दिलवा सकते हैं तो कम से कम वकालत तो न करें इस बात की.. भारत में बैठ के बोलोगे की सऊदी की पाक ज़मीन पर मंदिर नहीं बन सकता और फिर यहाँ लोग आपको गले लगा लेंगे।

No comments:

Post a Comment