Tuesday, 5 January 2016

कालिंजर कालजयी किले का रहस्य नीलकंठ मंदिर छिपा है रहस्य :
समुद्र मंथन में मिले कालकूट विष पीने के बाद शिव ने किया दुर्ग में आराम 

इस्लाम शाह की ताजपोशी के बाद किले के अंदर बने कोटि तीर्थ परिसर के मंदिरों को तोड़कर उनके सुंदर नक्काशीदार स्तंभों को मस्जिद बनाए जाने में इस्तेमाल किया गया था।

फोटो में ये सभी चित्र : 800 फीट की ऊंचाई पर स्थित है कालिंजर किला, किले के अंदर स्थापित है नीलकंठ मंदिर ,चट्टान काटकर बनाया गया ‌'स्वर्गारोहण जलाशय , स्तंभों पर लिखी प्रतिलिपी , किले में मौजूद प्राचीन मूर्तियां , नागों ने कराया था नीलकंठ मंदिर का निर्माण , किले में मौजूद नंदी की मूर्ति , विंध्याचल पहाड़ी पर स्थित है कालिंजर का किला

बुंदेलखंड के ऐतिहासिक किले कालिंजर को कालजयी कहा जाए, तो गलत नहीं होगा। प्रागैतिहासिक काल के पेबुल (ये एक पत्थर होता है) यहां मिल चुके हैं। इस किले का वेदों में भी जिक्र किया गया है। कई पौराणिक घटनाएं इस दुर्ग से जुड़ी हुई हैं। इस किले में नीलकंठ मंदिर स्थित है, जहां खजाने का रहस्य छिपा हुआ है। कहा जाता है कि महादेव ने यहीं पर विषपान कर काल की गति को मात दी थी।

मंदिर के ठीक पीछे की तरफ पहाड़ काटकर पानी का कुंड बनाया गया है। इसमें बने मोटे-मोटे स्तंभों और दीवारों पर प्रतिलिपि लिखी हुई है। माना जाता है कि इस प्राचीनतम किले में मौजूद खजाने का रहस्य भी इसी प्रतिलिपि में है, लेकिन आज तक कोई इसका पता नहीं लगा सका है। इस मंदिर के ऊपर पहाड़ है, जहां से पानी रिसता रहता है। बुंदेलखंड सूखे के कारण जाना जाता है, लेकिन कितना भी सूखा पड़ जाए, इस पहाड़ से पानी रिसना बंद नहीं होता है। कहा जाता है कि सैकड़ों साल से पहाड़ से ऐसे पानी निकल रहा है, ये सभी इतिहासकारों के लिए अबूझ पहेली की तरह है।
शिव ने यहां काल की गति को दी थी मात...

कालिंजर का पौराणिक महत्व महादेव के विषपान से है। समुद्र मंथन में मिले कालकूट विष को पीने के बाद शिव ने इसी दुर्ग में आराम करके काल की गति को मात दी थी। महाभारत के युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने यहां कोटतीर्थ में स्नान किया था। वेदों में इसे सूर्य का निवास माना गया है। पद्म पुराण में इसकी गिनती सात पवित्र स्थलों में की गई है। मत्स्य पुराण में इसे उज्जैन और अमरकटंक के साथ अविमुक्त क्षेत्र कहा गया है। जैन ग्रंथों और बौद्ध जातकों में इसे कालगिरी कहा जाता था। वेदों में उल्लेख के आधार पर ही इसे दुनिया का सबसे प्राचीन किला माना गया है।
नागों ने कराया था नीलकंठ मंदिर का निर्माण...

नीलकंठ मंदिर को कालिंजर के प्रांगण में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण और पूजनीय माना गया है। इसका निर्माण नागों ने कराया था। इस मंदिर का जिक्र पुराणों में है। मंदिर में शिवलिंग स्थापित है, जिसे बेहद प्राचीनतम माना गया है। नीलकंठ मंदिर से काल भैरव की प्रतिमा के बगल में चट्टान काटकर जलाशय बनाया गया है। इसे ‌'स्वर्गारोहण जलाशय' कहा जाता है। कहा जाता है कि इसी जलाशय में स्नान करने से कीर्तिवर्मन का कुष्ठ रोग खत्म हुआ था। ये जलाशय पहाड़ से पूरी तरह से ढका हुआ है।
चंदेल राजाओं ने यहां 600 साल तक किया शासन
इसके साथ ही अनेक पौराणिक और ऐतिहासिक प्रसंग कालिंजर फोर्ट से जुड़े हैं। 9वीं शताब्दी में ये किला चंदेल साम्राज्य के अधीन हो गया। यहीं से कालिंजर का ऐतिहासिक काल शुरू हुआ। 15वीं शताब्दी तक इस किले पर चंदेल राजाओं का शासन रहा। माना जाता है कि कालिंजर में चंदेल राजाओं ने सबसे ज्यादा 600 साल तक शासन किया। विंध्याचल की पहाड़ी पर 800 फीट की ऊंचाई पर स्थित ये किला इतिहास के उतार-चढ़ावों का प्रत्यक्ष गवाह है।
भरत ने कराया था कालिंजर का निर्माण

कालिंजर के किले पर जिन राजवंशों ने शासन किया, उसमें दुष्यंत-शकुंतला के बेटे भरत का नाम सबसे पहले आता है। इतिहासकारों के मुताबिक, भरत ने चार किले बनवाए थे, जिसमें से कालिंजर का सबसे ज्यादा महत्व है। 1249 ई. में यहां हैह्य वंशी कृष्णराज का शासन था तो चौथी सदी में ये नागों के अधीन रहा। इसके बाद सत्ता गुप्तों के हाथों में पहुंच गई। फिर यहां चंदेल राजाओं का शासन रहा। इसका अंत 1545 ई. में हुआ।
कभी इस किले में थे चार प्रवेश द्वार

एक समय था, जब कालिंजर चारों ओर से ऊंची दीवार से घिरा था और इसमें चार प्रवेश द्वार थे। इस वक्त कामता द्वार, पन्ना द्वार और रीवा द्वार नाम के सिर्फ तीन गेट ही बचे हैं। किले में आलमगीर दरवाजा, गणेश द्वार, चौबुरजी दरवाजा, बुद्ध भद्र दरवाजा, हनुमान द्वार, लाल दरवाजा और बारा दरवाजा नाम के सात द्वारों से अंदर जा सकते हैं। किले के अंदर राजा और रानी के नाम से शानदार महल बने हुए हैं।
कुछ समय पहले मिले थे कई प्राचीन शिलालेख

कालिंजर विकास संस्थान के संयोजक बीडी गुप्ता ने बताया कि कुछ समय पहले यहां कई प्राचीन शिलालेख मिले थे। इन शिलालेखों के बारे में उन्होंने बताया कि मई, 1545 को शेर शाह की मृत्यु के बाद उनके बेटे इस्लाम शाह की दिल्ली के सिंहासन पर विधिवत ताजपोशी हुई थी। इसके बाद यहां किले के अंदर बने कोटि तीर्थ परिसर के मंदिरों को तोड़कर उनके सुंदर नक्काशीदार स्तंभों को मस्जिद बनाए जाने में इस्तेमाल किया गया था।
dainikbhaskar.com Jan 05, 2016 के अनुसार <<सूर्य की किरण >>












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