नेशनल सेक्यूरिटी एडवाइजर'(N.S.A.) 'अजित डोवाल' जी को वो लोग भी आज गरिया रहे है जिन्हें ये भी नही पता कि उनके 'पापा' के जमाने में 10 साल तक 'N.S.A.' कौन था ? वैसे भी जो सरकार 10 साल 'प्रधानमंत्री' के बिना चली हो वहाँ N.S.A. की जरूरत भी क्या थी ?
26/11 मुंबई हमले के समय जो सरकार में बैठे लोग 'NSG कमांडोस्' को वक्त पर 'ऐरोप्लेन' मुहैय्या नही करवा पाये थे.. मानेसर से मुंबई जाने के लिये..आज वो पठानकोट में दो दिन पहले पहूंचे 'कमांडो' और'गरूड़' को नजरअदांज कर अपनी राजनीति करने में लगे है.
'कंधार विमान अपहरण' को याद करिये और साथ ही तब की विपक्ष कांग्रेस और मिडीया का रवैय्या भी याद करिये.
सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस ने सरकार द्वारा सुझाये विकल्प पर हामी भरी थी..और बाहर आकर मिडीया के सामने ठीक उलट कहा था कि..'लोगों की जान बचाना भी जरूरी है, साथ ही आतंकवादीयों की नाजायज मांगें भी नही माननी चाहिये जबकि अंदर सरकार के फैसले का समर्थन किया था.
मिडीया ने भी 'कंधार विमान अपहरण' को देश का संकट या देश पर हूवा हमला ना बताकर.. सारा फोकस विमान यात्रियों के रोने-तड़पने और अटलजी के घर के आगे परिवारजनों के किये जा रहे प्रदर्शन पर लगा दिया था. जिससे सरकार पर अनआवश्यक दबाव पड़ा और दूसरे, लंबे चलने वाले विकल्प छोड़कर.. जल्दबाजी में जो फैसला लेना पड़ा..वो आप सब जानते ही हो. मिडीया कितना गैरजिम्मेदार है ये पहला बड़ा उदाहरण था.
इसके बाद '26/11 मुंबई हमले' को याद करिये और विपक्षी पार्टी भाजपा की भूमिका पूरे पाँच दिन चलें ऑपरेशन के दौरान याद करिये. दिल्ली में भी और महाराष्ट्र में भी भाजपा-शिवसेना के मौन को याद करिये. नेट पर सबकुछ उपलब्ध है. आपको उस संकट के समय भाजपा के किसी भी छोटे-बड़े नेता का हमले के समय 'सरकार विरोध' में कोई बयान आपको नही मिलेगा...यहाँ तक की बाद में कांग्रेसीयों ने सवाल भी उठाये थे कि 'राज ठाकरे' कहाँ गायब थे पाँच दिन.?? कांग्रेसीयों वो गायब नही थे..चुप रहकर, शांत रहकर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे ना कि तुम्हारे जैसे आज की तरह ..पठानकोट में ऑपरेशन जारी था और तुम सरकार को कोसने में जी-जान से लगे पड़े थे, चुप रहने की बजाये.
टीआरपी-खोर (गैर जिम्मेदार) मिडीया की हालत क्या थी २६/११ के वक्त ? आतंकवादियों को मददगार लाइव कवरेज में सिर्फ यही बचा था कि राजदिप या बरखा दत्त 'ताज होटल' में घूसकर आतंकवादीयों से ये पूछते कि.....'भायजान आप चार दिन से बिना खाये-पिये लड़ रहे है, हमारे दर्शक जानना चाहते है कि इतनी एनर्जी आपको कैसे मिलती है.'??
'पठानकोट हमले' के वक्त कांग्रेस ने सिर्फ राजनीति ही की है जैसे कंधार और कारगिल के समय की थी. कम से कम बांग्लादेश यूद्ध और मुंबई हमले के समय विपक्ष के देशहित के व्यवहार से कांग्रेस ने कुछ तो सिखा होता ?
लोकसभा चुनाव में 'मोदी सरकार' बनने से यह तो साफ हो ही गया था कि कांग्रेस अब सत्ता संभालने लायक नही बची है लेकिन इन १८ महिनों की हरकतों से देश के लोगों को यह भी समझ में आ गया है कि.....'कांग्रेस अब विपक्ष में रहने लायक भी नही बची है.'
26/11 मुंबई हमले के समय जो सरकार में बैठे लोग 'NSG कमांडोस्' को वक्त पर 'ऐरोप्लेन' मुहैय्या नही करवा पाये थे.. मानेसर से मुंबई जाने के लिये..आज वो पठानकोट में दो दिन पहले पहूंचे 'कमांडो' और'गरूड़' को नजरअदांज कर अपनी राजनीति करने में लगे है.
'कंधार विमान अपहरण' को याद करिये और साथ ही तब की विपक्ष कांग्रेस और मिडीया का रवैय्या भी याद करिये.
सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस ने सरकार द्वारा सुझाये विकल्प पर हामी भरी थी..और बाहर आकर मिडीया के सामने ठीक उलट कहा था कि..'लोगों की जान बचाना भी जरूरी है, साथ ही आतंकवादीयों की नाजायज मांगें भी नही माननी चाहिये जबकि अंदर सरकार के फैसले का समर्थन किया था.
मिडीया ने भी 'कंधार विमान अपहरण' को देश का संकट या देश पर हूवा हमला ना बताकर.. सारा फोकस विमान यात्रियों के रोने-तड़पने और अटलजी के घर के आगे परिवारजनों के किये जा रहे प्रदर्शन पर लगा दिया था. जिससे सरकार पर अनआवश्यक दबाव पड़ा और दूसरे, लंबे चलने वाले विकल्प छोड़कर.. जल्दबाजी में जो फैसला लेना पड़ा..वो आप सब जानते ही हो. मिडीया कितना गैरजिम्मेदार है ये पहला बड़ा उदाहरण था.
इसके बाद '26/11 मुंबई हमले' को याद करिये और विपक्षी पार्टी भाजपा की भूमिका पूरे पाँच दिन चलें ऑपरेशन के दौरान याद करिये. दिल्ली में भी और महाराष्ट्र में भी भाजपा-शिवसेना के मौन को याद करिये. नेट पर सबकुछ उपलब्ध है. आपको उस संकट के समय भाजपा के किसी भी छोटे-बड़े नेता का हमले के समय 'सरकार विरोध' में कोई बयान आपको नही मिलेगा...यहाँ तक की बाद में कांग्रेसीयों ने सवाल भी उठाये थे कि 'राज ठाकरे' कहाँ गायब थे पाँच दिन.?? कांग्रेसीयों वो गायब नही थे..चुप रहकर, शांत रहकर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे ना कि तुम्हारे जैसे आज की तरह ..पठानकोट में ऑपरेशन जारी था और तुम सरकार को कोसने में जी-जान से लगे पड़े थे, चुप रहने की बजाये.
टीआरपी-खोर (गैर जिम्मेदार) मिडीया की हालत क्या थी २६/११ के वक्त ? आतंकवादियों को मददगार लाइव कवरेज में सिर्फ यही बचा था कि राजदिप या बरखा दत्त 'ताज होटल' में घूसकर आतंकवादीयों से ये पूछते कि.....'भायजान आप चार दिन से बिना खाये-पिये लड़ रहे है, हमारे दर्शक जानना चाहते है कि इतनी एनर्जी आपको कैसे मिलती है.'??
'पठानकोट हमले' के वक्त कांग्रेस ने सिर्फ राजनीति ही की है जैसे कंधार और कारगिल के समय की थी. कम से कम बांग्लादेश यूद्ध और मुंबई हमले के समय विपक्ष के देशहित के व्यवहार से कांग्रेस ने कुछ तो सिखा होता ?
लोकसभा चुनाव में 'मोदी सरकार' बनने से यह तो साफ हो ही गया था कि कांग्रेस अब सत्ता संभालने लायक नही बची है लेकिन इन १८ महिनों की हरकतों से देश के लोगों को यह भी समझ में आ गया है कि.....'कांग्रेस अब विपक्ष में रहने लायक भी नही बची है.'
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