इनकी कमर क्यों नहीं टूट रहीं?
इन माओवादियों का संधर्षरत माओवादियों से कानून के लिए स्वीकार संबंध प्रमाणित करना आसान नहीं है। किंतु मुझे इनके माओवादी होने में कोई संदेह है ही नहीं। मुझे आश्चर्य इस बात पर भी है कि अपने को गांधीजन कहने वाले इन माओवादियों का समर्थन कर रहे हैं।
लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आता कि भाजपा की केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें इतने समय से कर क्या रहीं हैं। केन्द्र में आपकी सरकार, 18 राज्यों मंे आपकी सरकार, इतनी पुलिस, खुफिया एजेंसियां, सीबीआई, एनआईए...सब आपके हाथ में। आपको यह पता ही नहीं कि किस तरह माओवाद को शहरों तक विस्तारित करने तथा जंगलों में लड़ने वालों को हर तरह का खुराक देने के लिए छद्म नामों से संगठन बनाकर पूरे देश में काम किया जा रहा है। इतने दिनों मंें तो कुछ भी किया जा सकता था। ये सब इस समय जेल में होते, कुछ भागे फिर रहे होते, इनकी कमर टूट गई होती। इसका मतलब है सरकार के पास माओवादियों की वैचारिक तथा संसाधनिक शक्ति के इस मूल स्रोत को खत्म करने की कोई योजना इन सवा चार सालांें में बनी ही नहीं।
विरोधी तो आपके खिलाफ चिल्लाएंगे ही। आप कार्रवाई करेंगे तब भी और न करेंगे तब भी। कार्रवाई क्यों नहीं हुई? इसका जवाब तो मिलना चाहिए।
पुणे पुलिस ने जो सबूत जुटाए हैं वो इनके देशव्यापी विस्तार तथा षडयंत्र को दर्शाते हैं। क्या अब भी ऐसा नहीं लगता कि इसकी राष्ट्रीय स्तर पर छानबीन और कार्रवाई होनी चाहिए? तो शहरी माओवादियों के पूरे मामले को एनआईए जैसी केन्द्रीय एजेंसी को क्यों नहीं सौंपा जा रहा? उच्चतम न्यायालय में इतने घाघ वकील खड़े हैं इनको बचाने के लिए। उनके सामने पुणे पुलिस की सीमा है। भाजपा के सैंकड़ों वकील दिल्ली मंे हैं। इनमें से कोई उस दिन बहस करने नहीं गया। इसे आप क्या कहेंगे।
हमारे एक मित्र टिप्पणी कर रहे हैं कि वामपंथी मजबूत हैं। विचित्र है। आज वे केवल केरल में शासन चला रहे हैं। इनके मुख्य गढ़ विश्वविद्यालय प्रशासन में अब आपने तथाकथित अपने विचार के लोगों को भरा है। वहंा इनकी कमर क्यों नहीं टूट रहीं? अकादमी में आप इनको कमजोर कर सकते थे। नहीं किया तो दोष किसका है? सरकारी सांस्कृतिक-सामाजिक-कला-युवा-सभी संस्थानों में आपके पास योग्य लोगों को रखने का अवसर था। वे सब अपने-अपने स्तरों पर वैचारिकी का जवाब देते। आपने अपने अनुसार रखा भी है। ये सब क्या कर रहे हैं? एक-एक आदमी को, जिसकी योग्यता पता नहीं क्या है कई विश्वविद्यालयों के अकादमिक परिषदों में हैं। मानो लोग ही नहीं हो। जिन लोगों के पास अपनी दृष्टि ही नहीं। केवल मिल गए पद का सुख भोगना है वे कुछ कर ही नहीं सकते।
भाजपा पर आईए तो यह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है। इनके सामने वामपंथ की राजनीतिक औकात क्या है? अगर आप आज इनसे मुकाबला कर इन्हें राजनीतिक और वैचारिक स्तर पर हौंसला पस्त की स्थिति में नहीं ला पाए तो फिर क्या कहा जा सकता है। कुछ महीेने शेष है। हे सरकार के नीति-नियंताओं, सत्ता के मद से बाहर आइए और कुछ करिए। आपको जनादेश यही सब करने के लिए मिला था इसे न भूलिए। देश की एकता-अखंडता, शांति-स्थिरता के लिए ही नहीं, विचार प्रदूषण, संस्कृति रक्षा तथा विकास को अबाधित रुप से आगे बढ़ाने के लिए भी हर तरह के माओवाद का समूल नाश आवश्यक है।
इन माओवादियों का संधर्षरत माओवादियों से कानून के लिए स्वीकार संबंध प्रमाणित करना आसान नहीं है। किंतु मुझे इनके माओवादी होने में कोई संदेह है ही नहीं। मुझे आश्चर्य इस बात पर भी है कि अपने को गांधीजन कहने वाले इन माओवादियों का समर्थन कर रहे हैं।
लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आता कि भाजपा की केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें इतने समय से कर क्या रहीं हैं। केन्द्र में आपकी सरकार, 18 राज्यों मंे आपकी सरकार, इतनी पुलिस, खुफिया एजेंसियां, सीबीआई, एनआईए...सब आपके हाथ में। आपको यह पता ही नहीं कि किस तरह माओवाद को शहरों तक विस्तारित करने तथा जंगलों में लड़ने वालों को हर तरह का खुराक देने के लिए छद्म नामों से संगठन बनाकर पूरे देश में काम किया जा रहा है। इतने दिनों मंें तो कुछ भी किया जा सकता था। ये सब इस समय जेल में होते, कुछ भागे फिर रहे होते, इनकी कमर टूट गई होती। इसका मतलब है सरकार के पास माओवादियों की वैचारिक तथा संसाधनिक शक्ति के इस मूल स्रोत को खत्म करने की कोई योजना इन सवा चार सालांें में बनी ही नहीं।
विरोधी तो आपके खिलाफ चिल्लाएंगे ही। आप कार्रवाई करेंगे तब भी और न करेंगे तब भी। कार्रवाई क्यों नहीं हुई? इसका जवाब तो मिलना चाहिए।
पुणे पुलिस ने जो सबूत जुटाए हैं वो इनके देशव्यापी विस्तार तथा षडयंत्र को दर्शाते हैं। क्या अब भी ऐसा नहीं लगता कि इसकी राष्ट्रीय स्तर पर छानबीन और कार्रवाई होनी चाहिए? तो शहरी माओवादियों के पूरे मामले को एनआईए जैसी केन्द्रीय एजेंसी को क्यों नहीं सौंपा जा रहा? उच्चतम न्यायालय में इतने घाघ वकील खड़े हैं इनको बचाने के लिए। उनके सामने पुणे पुलिस की सीमा है। भाजपा के सैंकड़ों वकील दिल्ली मंे हैं। इनमें से कोई उस दिन बहस करने नहीं गया। इसे आप क्या कहेंगे।
हमारे एक मित्र टिप्पणी कर रहे हैं कि वामपंथी मजबूत हैं। विचित्र है। आज वे केवल केरल में शासन चला रहे हैं। इनके मुख्य गढ़ विश्वविद्यालय प्रशासन में अब आपने तथाकथित अपने विचार के लोगों को भरा है। वहंा इनकी कमर क्यों नहीं टूट रहीं? अकादमी में आप इनको कमजोर कर सकते थे। नहीं किया तो दोष किसका है? सरकारी सांस्कृतिक-सामाजिक-कला-युवा-सभी संस्थानों में आपके पास योग्य लोगों को रखने का अवसर था। वे सब अपने-अपने स्तरों पर वैचारिकी का जवाब देते। आपने अपने अनुसार रखा भी है। ये सब क्या कर रहे हैं? एक-एक आदमी को, जिसकी योग्यता पता नहीं क्या है कई विश्वविद्यालयों के अकादमिक परिषदों में हैं। मानो लोग ही नहीं हो। जिन लोगों के पास अपनी दृष्टि ही नहीं। केवल मिल गए पद का सुख भोगना है वे कुछ कर ही नहीं सकते।
भाजपा पर आईए तो यह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है। इनके सामने वामपंथ की राजनीतिक औकात क्या है? अगर आप आज इनसे मुकाबला कर इन्हें राजनीतिक और वैचारिक स्तर पर हौंसला पस्त की स्थिति में नहीं ला पाए तो फिर क्या कहा जा सकता है। कुछ महीेने शेष है। हे सरकार के नीति-नियंताओं, सत्ता के मद से बाहर आइए और कुछ करिए। आपको जनादेश यही सब करने के लिए मिला था इसे न भूलिए। देश की एकता-अखंडता, शांति-स्थिरता के लिए ही नहीं, विचार प्रदूषण, संस्कृति रक्षा तथा विकास को अबाधित रुप से आगे बढ़ाने के लिए भी हर तरह के माओवाद का समूल नाश आवश्यक है।
No comments:
Post a Comment