ममता का दमन और #मुगलसराय !!
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1539-40 ई० के करीब हुमायूं की हत्या करने के लिए शेरशाह सूरी की सेना जी-जान से पड़ी हुई थी । जान बचाता हुआ हुंमायू एक हिंदू वृद्ध महिला के झोपड़ी के दरवाजे पर पहुंचा जहां से देवि पाठ संस्कृत श्लोक की आवाज आ रही थी 'अन्यायनिश्चयन्तोमाम येजना:पर्युपासते' हुमायूँ ने दरवाजा खटखटाया।
वृद्ध महिला का नाम ममता था वो ब्राह्म्णी थी। यद्यपि आस पास कुछ मुस्लिम लोग भी रहते थे जिनके घर पर बांस के लट्ठ में बडे गर्व से इस्लामिक हरा झंडा लगा था। परंतु नदी पार करता हुआ हमायुं प्राणों की रक्षा से शरण भी मांगा तो उस ब्राह्म्णी ममता के घर पर ही क्युंकि हुमायूँ को मुस्लमानो का भरोसा करना मतलब अपनी जान को खतरा इस बात को हमायु जानता बखूबी था। हुमायूँ दरवाजे को लगातार खटखटाता रहा , विघ्न को देखकर पाठ रोककर ममता द्वार पर आई देखा एक व्यक्ति सैनिक वेशभूषा में पानी-पानी कहता हुआ बेहोश हो गया। बेसुध उसके दरवाजे पर गिर पडे उस आदमी को ममता ने पानी पिलाया और उसे होश आया। ममता ने कहा बेटा कहां से आ रहे हो कौन हो ??
हुमायुं ने केवल इतना ही कहा मेरे पीछे दुशमन के सैनिक पडे है मुझे बचा लो। ममता ने कहा बेटा चिंता मत कर यहाँ मेरे झोपडी में कोई नहीं आता। थकान से वही फर्श पर लेट गया। देवि ममता ने अपना पाठ पूरा किया उसके पश्चात अतिथि सत्कार में भोजन बनाया उसे भी खिलाया। अगले दिन वो ममता को प्रणाम करता हुआ अपनी राजधानी दिल्ली रवाना हुआ। 22 मई 1545 को शेरशाह की मृत्यु के बाद हुमायूँ पुन: दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ । जब अकबर दिल्ली का बादशाह बना तो उसने देवि ममता उस झोपडी को जबरन तोडकर उसकी जगह एक बहुत बडी इमारत बनवाई ताकि वहां मुसलमान नमाज पढ सके। ममता के आसूं नहीं थम रहे थे जब उसकी झोपडी को मुगल सैनिक तोड रहे थे उस दिन ममता को पता चला कि उस रात जो आदमी शरण मांगा था वो मुगल बादशाह हमायुं था। न जाने वो कब अपने आसूं गिराते तीर्थ पर चली गई और उस इमारत पर अकबर ने लिखवाया था कि “”हिंदुस्तान के बादशाह हमायुं ने अपने जीवनकाल में एक रात इसी जगह पर बिताई थी” अत: आज से इस जगह का नाम मुगलसराय है। लेकिन उसमे ममता के नाम को कहीं जगह नहीं दी गयी । वह जगह मुगलसराय नाम से विख्यात हुआ। उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में शेरशाह ने अलीनगर और गल्लामंडी नामक सराय को कालांतर मे इसे मुगलों की निशानी बताया और आज तक इस जगह का नाम मुगलसराय है। मुगल मरे अंग्रेज आये वो भी गये, हिंदुस्तान आजाद हुआ। कांग्रेस की सरकार 60 वर्ष रही इतना परिवर्तन हुआ पर मुगलसराय का नाम परिवर्तन नही हुआ। इस कलंक को धोने की इच्छा शक्ति मोदी सरकार ने ही दिखाई।
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1539-40 ई० के करीब हुमायूं की हत्या करने के लिए शेरशाह सूरी की सेना जी-जान से पड़ी हुई थी । जान बचाता हुआ हुंमायू एक हिंदू वृद्ध महिला के झोपड़ी के दरवाजे पर पहुंचा जहां से देवि पाठ संस्कृत श्लोक की आवाज आ रही थी 'अन्यायनिश्चयन्तोमाम येजना:पर्युपासते' हुमायूँ ने दरवाजा खटखटाया।
वृद्ध महिला का नाम ममता था वो ब्राह्म्णी थी। यद्यपि आस पास कुछ मुस्लिम लोग भी रहते थे जिनके घर पर बांस के लट्ठ में बडे गर्व से इस्लामिक हरा झंडा लगा था। परंतु नदी पार करता हुआ हमायुं प्राणों की रक्षा से शरण भी मांगा तो उस ब्राह्म्णी ममता के घर पर ही क्युंकि हुमायूँ को मुस्लमानो का भरोसा करना मतलब अपनी जान को खतरा इस बात को हमायु जानता बखूबी था। हुमायूँ दरवाजे को लगातार खटखटाता रहा , विघ्न को देखकर पाठ रोककर ममता द्वार पर आई देखा एक व्यक्ति सैनिक वेशभूषा में पानी-पानी कहता हुआ बेहोश हो गया। बेसुध उसके दरवाजे पर गिर पडे उस आदमी को ममता ने पानी पिलाया और उसे होश आया। ममता ने कहा बेटा कहां से आ रहे हो कौन हो ??
हुमायुं ने केवल इतना ही कहा मेरे पीछे दुशमन के सैनिक पडे है मुझे बचा लो। ममता ने कहा बेटा चिंता मत कर यहाँ मेरे झोपडी में कोई नहीं आता। थकान से वही फर्श पर लेट गया। देवि ममता ने अपना पाठ पूरा किया उसके पश्चात अतिथि सत्कार में भोजन बनाया उसे भी खिलाया। अगले दिन वो ममता को प्रणाम करता हुआ अपनी राजधानी दिल्ली रवाना हुआ। 22 मई 1545 को शेरशाह की मृत्यु के बाद हुमायूँ पुन: दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ । जब अकबर दिल्ली का बादशाह बना तो उसने देवि ममता उस झोपडी को जबरन तोडकर उसकी जगह एक बहुत बडी इमारत बनवाई ताकि वहां मुसलमान नमाज पढ सके। ममता के आसूं नहीं थम रहे थे जब उसकी झोपडी को मुगल सैनिक तोड रहे थे उस दिन ममता को पता चला कि उस रात जो आदमी शरण मांगा था वो मुगल बादशाह हमायुं था। न जाने वो कब अपने आसूं गिराते तीर्थ पर चली गई और उस इमारत पर अकबर ने लिखवाया था कि “”हिंदुस्तान के बादशाह हमायुं ने अपने जीवनकाल में एक रात इसी जगह पर बिताई थी” अत: आज से इस जगह का नाम मुगलसराय है। लेकिन उसमे ममता के नाम को कहीं जगह नहीं दी गयी । वह जगह मुगलसराय नाम से विख्यात हुआ। उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में शेरशाह ने अलीनगर और गल्लामंडी नामक सराय को कालांतर मे इसे मुगलों की निशानी बताया और आज तक इस जगह का नाम मुगलसराय है। मुगल मरे अंग्रेज आये वो भी गये, हिंदुस्तान आजाद हुआ। कांग्रेस की सरकार 60 वर्ष रही इतना परिवर्तन हुआ पर मुगलसराय का नाम परिवर्तन नही हुआ। इस कलंक को धोने की इच्छा शक्ति मोदी सरकार ने ही दिखाई।
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