Thursday, 16 August 2018

राष्ट्रीय सुरक्षा : नेहरू और इंदिरा से ऊंचा अटल बिहारी वाजपेयी का कद

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को प्रायः ‘लिबरल’ या ‘नेहरूवियन’ विरासत को ढोने वाला कहा जाता है.
उनकी कविताओं तथा विनम्र विनोदी स्वभाव के कारण कुछ लोग उन्हें हिंदुत्व का उदारवादी चेहरा कहते हैं.
इस उदारवादी छवि के पीछे एक कुशल रणनीतिज्ञ, भविष्य द्रष्टा और संस्थान निर्माता भी छुपा हुआ है जो आज भी जनता की आँखों से ओझल है.
देश की डांवाडोल राजनैतिक व्यवस्था को स्थिरता प्रदान करने तथा आर्थिक नीतियों के अतिरिक्त अटल जी की नीतियों का एक पक्ष ऐसा है जिस पर बहुत कम विमर्श हुआ है. वह क्षेत्र है: राष्ट्रीय सुरक्षा.
राष्ट्रीय सुरक्षा क्या है?
भारत के राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय (NDC) के अनुसार “किसी राष्ट्र की राष्ट्रीय सुरक्षा उसके राजनैतिक लचीलेपन एवं परिपक्वता, मानव संसाधन, आर्थिक ढाँचे एवं क्षमता, तकनीकी दक्षता, औद्योगिक आधार एवं संसाधनों की उपलब्धता, तथा अंत में सैन्य शक्ति के समुचित व आक्रामक सम्मिश्रण से प्रवाहित होती है.”
राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ राष्ट्रीय शक्ति की अवधारणा अंतर्निहित है. राष्ट्रीय शक्ति की अवधारणा तब बलवती होती है जब हम राष्ट्रीय सुरक्षा के मूल्यों को संस्थागत स्वरूप दे देते हैं.
भारतीय तटरक्षक बल के पूर्व महानिदेशक एवं रणनीतिक चिंतक डॉ प्रभाकरण पलेरी ने अपनी पुस्तक National Security: Imperatives and Challenges में राष्ट्रीय सुरक्षा के पन्द्रह घटक बताये हैं.
वे इस प्रकार हैं- सैन्य सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा, संसाधनों की सुरक्षा, सीमा सुरक्षा, जनसांख्यिकीय सुरक्षा, प्राकृतिक आपदा से सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, भूरणनीतिक सुरक्षा, सूचना सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा, जातीय/सामुदायिक सुरक्षा, पर्यावरण सुरक्षा, साइबर सुरक्षा तथा ज़ीनोम सुरक्षा.
अटल जी की नीतियों का इन घटकों के आधार पर विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाए तो हम पाएंगे कि उन्होंने पाँच-छः वर्षों के अपने गिरते-पड़ते कार्यकाल में राष्ट्रीय सुरक्षा को बल प्रदान करने हेतु ऐसे बहुत से संस्थान स्थापित किये जिन्होंने राष्ट्रीय शक्ति को पुष्ट किया.
सबसे पहले सैन्य सुरक्षा को लेते हैं. सन् 1998 में परमाणु परीक्षण कर अटल जी ने विश्व समुदाय के सम्मुख गरज कर कहा कि भारत अब परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है.
ध्यातव्य है कि पूर्व राजनयिक महाराजकृष्ण रसगोत्र के अनुसार जॉन एफ केनेडी भारत को परमाणु परीक्षण करने में सहायता प्रदान करने के इच्छुक थे.
भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष होमी भाभा ने भी नेहरु से कहा था कि हम परमाणु परीक्षण करने में सक्षम हैं किन्तु नेहरु में इतनी काबिलियत नहीं थी कि अंतर्राष्ट्रीय दबाव को झेल सकें.
सन् 1974 में इंदिरा गांधी ने जब प्रथम परमाणु परीक्षण किया तब भी भारत को अणुशक्ति संपन्न राष्ट्र घोषित नहीं किया और विश्व से मुँह छिपाने के लिए कह दिया कि हमारे परमाणु अस्त्र तो शांति के लिए हैं.
इस दृष्टि से अटल जी का कद जवाहरलाल और इंदिरा से भी ऊँचा हो जाता है क्योंकि उन्होंने परमाणु परीक्षण के पश्चात अमरीका से राजनयिक सम्बन्ध प्रगाढ़ किये और प्रतिबंधों का डट कर सामना किया. परमाणु अस्त्रों की देख-रेख तथा समुचित प्रबंधन के लिए सेना की ‘Strategic Forces Command’ बनाई गयी.
किसी भी अन्य लोकतांत्रिक देश की भांति भारत के परमाणु अस्त्रों पर अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री का होता है. अटल जी के कार्यकाल में आणविक अस्त्रों पर नागरिक नियन्त्रण के संस्थान के रूप में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में ‘नाभिकीय कमान प्राधिकरण’ (Nuclear Command Authority) की स्थापना की गयी.
परमाणु अस्त्र बना लेना ही बड़ी बात नहीं थी. भारत कब और किन परिस्थितियों में इन अस्त्रों का प्रयोग करेगा यह निर्धारित करने के लिए भारत की नाभिकीय-अस्त्र नीति (Nuclear Doctrine) लिखी गयी.
कारगिल युद्ध के पश्चात ‘कारगिल समीक्षा समिति’ गठित की गयी थी. उसमें पाया गया कि नियन्त्रण रेखा के समीप भारत की गुप्तचर क्षमता कमज़ोर है. समिति के सुझावों पर अमल करते हुए ‘Defence Intelligence Agency’ बनाई गयी.
युद्धकाल में सशस्त्र सेनाओं के सभी अंग एकीकृत कमान द्वारा संचालित हों इसके लिए ‘Integrated Defence Staff’ का गठन किया गया. इस मुख्यालय में चीफ ऑफ़ स्टाफ कमिटी और उसके अध्यक्ष एकीकृत युद्ध नीति तथा उच्च रक्षा प्रबंधन पर शोध करते हैं. चीफ ऑफ़ स्टाफ कमिटी के अंतर्गत सन् 2001 में अंडमान निकोबार में सशस्त्र सेनाओं की प्रथम संयुक्त कमान बनाई गयी.
अटल जी के कार्यकाल से पूर्व प्रायः देखा गया था कि विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय से प्राप्त सुरक्षा सम्बंधी विचार व गुप्त सूचनाएँ शीर्ष स्तर पर जॉइंट इंटेलिजेंस कमिटी (JIC) में एक स्थान पर एकत्र होकर भी सजग होने हेतु नीति निर्माताओं को सही दिशा नहीं दे पाती थीं.
इन मंत्रालयों के पास देश की सुरक्षा का कार्यभार होने के बावजूद आन्तरिक तथा बाह्य सुरक्षा में कमियों को पहचान कर उसके कारणों का सटीक विश्लेषण कर प्रधानमंत्री को सलाह देने का कार्य कोई नहीं कर पाता था.
रॉ, आईबी इत्यादि एजेंसियों से ढेरों सूचनाएँ प्रतिदिन प्राप्त होती हैं. इनमें से किस सूचना पर कार्यवाही की जाए इसका निर्धारण ठीक प्रकार से नहीं हो पाता था. इसलिए अटल जी ने प्रधानमंत्री कार्यालय में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार’ पद का सृजन किया.
इसके साथ ही देश में राष्ट्रीय सुरक्षा नीति निर्धारण हेतु सर्वोच्च संस्था ‘राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद’ (National Security Council) की स्थापना की गयी. अमरीका आदि देशों की तर्ज पर सन् 1998 में स्थापित की गयी ‘रासुप’ तीन अंगों वाली परिषद् है जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं.
प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का पूरा कामकाज देखते हैं. इस परिषद के तीन अंग इस प्रकार हैं- ‘Strategic Policy Group’, Secretariat (Joint Intelligence Committee) और National Security Advisory Board.
स्ट्रेटेजिक पॉलिसी ग्रुप में सभी महत्वपूर्ण मंत्रालयों के सचिव, सशस्त्र सेनाओं के अध्यक्ष, गुप्तचर सेवाओं के अध्यक्ष, डीआरडीओ के प्रमुख, रिज़र्व बैंक के गवर्नर तथा परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष होते हैं. इनका कार्य है देश के लिए दीर्घकालिक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का दस्तावेज तैयार करना.
रासुप बनने के पश्चात एक आध राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीतिक दस्तावेज बने भी थे किन्तु अटल जी की सरकार जाने के बाद कोई विस्तृत नीति सामने नहीं आई. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) में अकादमिक जगत के विशेषज्ञ और रिटायर हो चुके अधिकारियों को आमंत्रित किया जाता है ताकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा पर अपने सुझाव दे सकें.
ताजा समाचार के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा सचिवालय (NSCS) को फरवरी 2017 में 333 करोड़ आवंटित किये गये हैं. यह अब तक दी गयी सबसे अधिक राशि है. मोदी सरकार में NSC कितनी तेज़ी से कार्य कर रही है यह इसी से पता चलता है कि फरवरी 2017 में NSC ने साइबर खतरे से निबटने के लिए त्रिस्तरीय सुझाव दिए हैं. NSC चाहती है कि भारत में उत्पन्न डेटा देश के बाहर न जाए.
देखें ये लेख : National Security Council proposes 3-pronged plan to protect Internet users
परमाणु अस्त्र सैन्य क्षमता के ही द्योतक नहीं है अपितु वैज्ञानिक मेधा के भी प्रतीक हैं. इंदिरा गांधी के कार्यकाल के बाद वैज्ञानिक समुदाय देश के शीर्ष नीति निर्माताओं से कट गया था. देश में किस विषय पर शोध हो रहा है अथवा होना चाहिए इस पर प्रधानमंत्री को सलाह देने का कार्य कौन करता भला?
इसलिए अटल जी ने प्रधानमंत्री रहते हुए ‘भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार’ (Principal Scientific Advisor to GoI) के पद का सृजन किया. सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंगों और सुरक्षा एजेंसियों को टेक्निकल इंटेलिजेंस जुटाने के लिए National Technical Research Organisation की स्थापना सन् 2004 में की गयी. यह साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम था.
आज नरेंद्र मोदी और अजित डोभाल के नेतृत्व में NTRO अमरीका की नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी की तर्ज पर क्रिप्टोलॉजी के क्षेत्र में उन्नत शोधकार्य कर रही है और साइबर वैज्ञानिकों की नयी भर्तियाँ भी कर रही है.
ज्ञातव्य है कि यूपीए सरकार में NTRO नकारा सरकारी अधिकारियों के ‘डंपयार्ड’ के रूप में परिवर्तित हो गयी थी. अटल जी के कार्यकाल में सन् 1999 में आपदा प्रबन्धन को महत्वपूर्ण मानते हुए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की गयी थी.
तत्पश्चात 2001 में गुजरात में आये भूकम्प से सीख लेते हुए प्राकृतिक आपदा प्रबंधन हेतु एक पृथक संस्थान के निर्माण पर बल दिया गया जिसके फलस्वरूप 2005 में ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण’ (NDMA) की स्थापना की गई.
आंतरिक सुरक्षा की बात करें तो अटल जी ने संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाकर ‘पोटा’ कानून पास करवाया था. यह भारत का प्रथम कानून था जिसमें ‘आतंकवाद’ को परिभाषित किया गया था और आतंकी संगठनों की सूची लिखी हुई थी. यह स्वतंत्र भारत के सबसे महत्वपूर्ण कानूनों में से एक था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 3 मार्च 2015 को राज्य सभा में दिए गए वक्तव्य के अनुसार अटल जी के समय एक योजना थी Multi Purpose National Identity Card Project. इसी योजना को नया नाम देकर यूपीए सरकार में UIDAI कर दिया गया. इसी योजना के फलस्वरूप आधार कार्ड बन रहे हैं.
अटल जी के समय सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना थी जिसे मनरेगा बना दिया गया. अटल जी के ही कार्यकाल में फ्रीडम ऑफ़ इनफार्मेशन एक्ट (2000-02) पास हुआ था जिसे बाद में राईट टू इनफार्मेशन एक्ट बना दिया गया.
खाद्य सुरक्षा के सन्दर्भ में अटल जी के समय अन्त्योदय अन्न योजना थी जो बाद में फ़ूड सिक्यूरिटी एक्ट बन गयी. इसी प्रकार सर्व शिक्षा अभियान को यूपीए सरकार में बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के कानून में परिवर्तित किया गया.
अटल जी की स्वर्णिम जयंती ग्राम स्वराज योजना को नेशनल रूरल लाइवलीहुड मिशन का नाम दिया गया. टोटल सैनिटेशन कैंपेन को यूपीए सरकार ने निर्मल भारत अभियान बना दिया. स्पेशल इकोनोमिक ज़ोन की नीति भी सन् 2000 में अटल जी के समय आई थी.
प्रधानमन्त्री ग्राम सड़क योजना, स्वर्णिम चतुर्भुज, तटीय क्षेत्रों को जोड़ने वाली सागरमाला परियोजना समेत अटल सरकार की सभी योजनायें अपने परिवर्तित स्वरूप में ही सही किंतु भारतीय नागरिकों को आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य एवं जनसांख्यिकीय सुरक्षा प्रदान करने का कार्य कर रही हैं.
भारत के सॉफ्ट पावर के विस्तार के लिए अटल जी ने सन् 2003 में प्रवासी भारतीय दिवस आरंभ किया था. भारत इज़रायल सम्बंधों के विशेषज्ञ निकोलस ब्लारेल लिखते हैं कि जून सन् 2000 में लाल कृष्ण आडवाणी आधिकारिक इज़रायल यात्रा पर गए थे जिसके फलस्वरूप इज़रायली इंटेलिजेंस एजेंसी मोसाद से औपचारिक सम्बंध बने और इंटेलिजेंस रिपोर्ट साझा करने पर सहमति बनी. ईरान में चाबहार समझौते का प्रारूप भी अटल जी के समय ही बना था.
निश्चित ही मैंने बहुत से बिंदु छोड़ दिए हैं. यह लेख लिखने का ध्येय मात्र अटल जी की प्रशंसा करना नहीं है. मूल विचार यह है कि अटल जी की नीतियों पर रचनात्मक एवं गम्भीर शोध होना चाहिए. उस व्यक्ति को दुर्बल समझना मनोवैज्ञानिक दुर्बलता है और कुछ नहीं.

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