Saturday, 11 August 2018



मनु_किसी_को_दलित_नहीं_मानते
हिंदुत्व ही है जहाँ डाकू ऋषि बने, जहाँ सम्राट भिक्षुक बने, जहाँ चरवाहा सम्राट बना और जहाँ देवता मनुष्य रूप में जन्मे।

जिस जाति व्यवस्था के लिए मनुस्मृति को दोषी ठहराया जाता है, उसमें जातिवाद का उल्लेख तक नहीं है। महर्षि मनु मानव संविधान के प्रथम प्रवक्ता और आदि शासक माने जाते हैं। मनु की संतान होने के कारण ही मनुष्यों को मानव या मनुष्य कहा जाता है।
मनुस्मृति मानव समाज का प्रथम संविधान है, न्याय व्यवस्था का शास्त्र है। यह वेदों के अनुकूल है। वेद की कानून व्यवस्था अथवा न्याय व्यवस्था को कर्तव्य व्यवस्था भी कहा गया है। उसी के आधार पर मनु ने सरल भाषा में मनुस्मृति का निर्माण किया। वैदिक दर्शन में संविधान या कानून का नाम ही धर्मशास्त्र है। महर्षि मनु कहते है- धर्मो रक्षति रक्षित:। अर्थात जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। यदि वर्तमान संदर्भ में कहें तो जो कानून की रक्षा करता है कानून उसकी रक्षा करता है।
आगे चलकर महर्षि याज्ञवल्क्य ने भी धर्मशास्त्र का निर्माण किया जिसे याज्ञवल्क्य स्मृति के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी काल में भी भारत की कानून व्यवस्था का मूल आधार मनुस्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति रहा है। कानून के विद्यार्थी इसे भली-भांति जानते हैं। राजस्थान हाईकोर्ट में मनु की प्रतिमा भी स्थापित है।
मनु किसी को दलित नहीं मानते। दलित संबंधी व्यवस्थाएं तो अंग्रेजों और आधुनिकवादियों की देन हैं। दलित शब्द प्राचीन संस्कृति में है ही नहीं। चार वर्ण जाति न होकर मनुष्य की चार श्रेणियां हैं, जो पूरी तरह उसकी योग्यता पर आधारित है। प्रथम ब्राह्मण, द्वितीय क्षत्रिय, तृतीय वैश्य और चतुर्थ शूद्र। वर्तमान संदर्भ में भी यदि हम देखें तो शासन-प्रशासन को संचालन के लिए लोगों को चार श्रेणियों- प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ श्रेणी में बांटा गया है। मनु की व्यवस्था के अनुसार हम प्रथम श्रेणी को ब्राह्मण, द्वितीय को क्षत्रिय, तृतीय को वैश्य और चतुर्थ को शूद्र की श्रेणी में रख सकते हैं।
मनु कहते हैं- ‘जन्मना जायते शूद्र:’ अर्थात जन्म से तो सभी मनुष्य शूद्र के रूप में ही पैदा होते हैं। बाद में योग्यता के आधार पर ही व्यक्ति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र बनता है। मनु की व्यवस्था के अनुसार ब्राह्मण की संतान यदि अयोग्य है तो वह अपनी योग्यता के अनुसार चतुर्थ श्रेणी या शूद्र बन जाती है। ऐसे ही चतुर्थ श्रेणी अथवा शूद्र की संतान योग्यता के आधार पर प्रथम श्रेणी अथवा ब्राह्मण बन सकती है। हमारे प्राचीन समाज में ऐसे कई उदाहरण है, जब व्यक्ति शूद्र से ब्राह्मण बना। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के गुरु वशिष्ठ महाशूद्र चांडाल की संतान थे, लेकिन अपनी योग्यता के बल पर वे ब्रह्मर्षि बने। एक मछुआ (निषाद) मां की संतान व्यास महर्षि व्यास बने। आज भी कथा-भागवत शुरू होने से पहले व्यास पीठ पूजन की परंपरा है। विश्वामित्र अपनी योग्यता से क्षत्रिय से ब्रह्मर्षि बने। ऐसे और भी कई उदाहरण हमारे ग्रंथों में मौजूद हैं, जिनसे इन आरोपों का स्वत: ही खंडन होता है कि मनु दलित विरोधी थे।यह तो हिंदू विरोधियों ने इन सत्तर सालो में नैरेशन बना दिया कि मनु-स्मृति में दलितों का विरोध है।
Pawan Tripathi
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जो लोग भी वर्ण को निम्न और उच्च का दर्जा देकर जातिवाद करते हैं, वे इस्लाम की अंतर्निहित उच्च और निम्न वर्गीय जाति व्यवस्था के समर्थक हैं, न कि भारतीय ज्योतिष के...

वर्ण व्यवस्था को मानने वाले सभी सवर्ण कहे जायेंगे, चाहे वो कोई भी वर्ण से हों। वर्ण का निर्धारण जाति के आधार पर करना ही मूर्खता है। वर्ण तो कुंडली में निर्धारित होता है।अगर कुंडली का वर्ण निर्धारण सही है, तो क्या दो दो तरह की वर्णव्यवस्था हिंदुत्व में है?
अगर, कुण्डली की वर्ण व्यवस्था गलत है तो भारतीय ज्योतिष विद्या गलत है?....फिर तो मैकाले को सही मानो?
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भाजपा, आरएसएस के समर्थक ही सेक्युलरवादियों की बातों से बहुत जल्दी प्रभावित होकर भाजपा आरएसएस को गाली देना शुरू कर देते हैं। जबकि सेक्युलरवादी कुछ भी हो जाए, अपने आदर्श व्यक्तियों के खिलाफ कभी नही बोलते। और उनकी बुराई में भी अच्छाई निकाल कर चाशनी लगाकर प्रस्तुत करना जानते हैं। और उनकी शिक्षा व्यवस्था ने 70 सालो से दक्षिणपंथ को घिसा पिटा, प्रतिक्रियावादी, प्रतिगामी(regressive) घोषित कर दिया है। और कहीं ना कही इसी कारण भाजपा आरएसएस समर्थकों के मनमें भी आत्म-संशय रहता है और डरते हैं कि की कहीं उन्हें भी प्रतिगामी ना साबित कर दिया जाए और इसीलिए सार्वजनिक तौर पर अपने विचारों को रखने से डरते हैं। यदि कोई दक्षिणपंथी नेता महज कुछ वर्षों में ही पूरे देश में दक्षिणपंथी सरकारें ला खड़ी कर दे और राजनीति और विचारधारा का पूरा discourse ही बदल दे तो उसको जातिगत आधार पर तमाम दक्षिणपंथी बुद्धिजीवी ही विरोध करने लगते हैं कि ये तो फला जाती का विरोधी है और यह भ्रम भी वामपंथ का फैलाया हुआ है जिसकी चपेट में बहुत तेजी से लोग आ रहे हैं। मोदी भी आजकल यही मार झेल रागे।
Shishu Singh

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